अनंत विजय

स्वास्थ्य क्षेत्र की सभी समस्याओं और चुनौतियों का ज़वाब है नयी स्वास्थ्य नीति

सरकार ने नई स्वास्थ्य नीति की घोषणा संसद में कर दी है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह एक बड़ा ऐतिहासिक कदम है। लेकिन मीडिया में उसे वह तवज्जो नहीं मिली, जो मिलनी चाहिए थी। नरेन्द्र मोदी की अगुआई में देश ने आजादी के बाद सही मायनों में दो बुनियादी चीजों पर खास ध्यान दिया है – शिक्षा और स्वास्थ्य। नयी स्वास्थ्य नीति पूर्णतः जनोन्मुखी है। एक तो सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्यों केंद्रों में साधारण रोगों के लिए

पस्त संगठन और मस्त नेताओं के बीच बदहाल कांग्रेस

2014 के बाद से जब भी कोई चुनाव होता है और उसमें कांग्रेस को हार मिलती है तो राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े होने लगते हैं । राजनीतिक विश्लेषकों के अलावा कांग्रेस के नेता भी उनके नेतृत्व को लेकर प्रत्यक्ष तौर पर तो नहीं, लेकिन संगठन की चूलें आदि कसने के नाम पर सवाल उठाने लगते हैं । इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी में एक सौ तीस साल पुरानी पार्टी की अगुवाई को लेकर कोई स्पार्क

साईबाबा की सज़ा पर उनकी पत्नी की प्रतिक्रिया से निकलते संदेश

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और उसके नतीजों के कोलाहल के बीच एक बेहद अहम खबर लगभग दब सी गई । राजनीतिक विश्लेषकों ने इस खबर को उतनी तवज्जो नहीं दी जितनी मिलनी चाहिए थी । उस खबर पर प्राइम टाइम में उतनी बहस नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी । वह खबर थी दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज के शिक्षक जी साईबाबा और चार अन्य को देश के खिलाफ युद्ध

स्थानीय निकायों में मजबूत होती भाजपा

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में अब चंद दिन ही शेष रह गए हैं । राजनीतिक विश्लेषक इस चुनाव के नतीजे को लेकर तरह-तरह का आंकलन कर रहे हैं । बौद्धिक जुगाली के लिए हर तरह के जातिगत और अन्य आंकड़ों का इस्तेमाल किया जा रहा है । भारतीय जनता पार्टी की नीतियों का लंबे समय से विरोध करनेवाले व्यक्ति और संस्थाएं भी इस बात पर एकमत दिखती हैं कि उत्तर प्रदेश में भारतीय

सावरकर के समग्र मूल्यांकन की दरकार

रविवार को विनायक दामोदकर सावरकर की इक्यावनवीं पुण्यतिथि थी । इस देश में हिंदुत्व शब्द को देश की भौगोलिकता से जोड़नेवाले इस शख्स की विचारधारा पर वस्तुनिष्ठ ढंग से अब तक काम नहीं हुआ है । सावरकर की विचारधारा को एम एस गोलवलकर और के बी हेडगेवार की विचारधार और मंतव्यों से जोड़कर उनकी एक ऐसी छवि गढ़ दी गई है जो दरअसल उनके विचारों से मेल नहीं खाती है ।

जश्न-ए-रेख्ता में कट्टरपंथियों ने किया तारिक फ़तेह का विरोध, खामोश क्यों हैं सेकुलर ?

बीते रविवार तो दिल्ली में जश्न-ए-ऱेख्ता खत्म हुआ । उर्दू भाषा के इस उत्सव में काफी भीड़ इकट्ठा होती है । बॉलीवुड सितारों से लेकर मंच के कवियों की महफिल सजती है । प्रचारित तो यह भी किया जाता है कि ये तरक्कीपसंद और प्रोग्रेसिव लोगों का जलसा है । होगा । लेकिन इस बार जश्न-ए-रेख्ता में जो हुआ वह इस आयोजन को और इसके आयोजकों को सवालों के घेरे में खड़ा करता है और यह साबित भी करता है कि

वादों की कसौटी पर विफल आम आदमी पार्टी सरकार

विगत १४ फ़रवरी को दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के दो साल पूरे हो गए । दो साल किसी भी सरकार के काम-काज का आंकलन करने के लिए काफी होता है । ‘आप’ सरकार दो साल तक केंद्र सरकार से टकराव के रास्ते पर चलती रही और उनके कुछ मंत्री विवादों में पड़े । संभव है कि आम आदमी पार्टी ने टकराव को ही अपनी राजनीति का आधार बनाया हो, लेकिन लोकतंत्र में जनहित के कामों को लेकर

आतंरिक लोकतंत्र से विहीन कांग्रेस

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बीच एक बेहद अहम खबर दब सी गई । चुनाव आयोग ने देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को अपने आतंरिक चुनाव तीस जून तक करवाने का आदेश दिए हैं । चुनाव आयोग ने साफ तौर पर कहा है कि अब इसको और टालने की अनुमति नहीं दी जा सकती है । दरअसल 2015 के सितंबर से लेकर अब तक कांग्रेस पार्टी अपने आंतरिक चुनावों को टालने का अनुरोध दो

यूपी की बदहाली का जवाब दें सपा, बसपा और कांग्रेस

चुनावी घोषणा पत्र, ये तीन शब्द अपना अर्थ लगभग खो चुके हैं और इसका इस्तेमाल उन वादों के लिए किया जाने लगा है जो या तो पूरे नहीं हो पाते थे या फिर उनके पूरे होने का ख्वाब दिखाकर राजनीतिक अपना उल्लू सीधा करते रहते थे । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने लोक कल्याण संकल्प पत्र जारी किया, जिसमें चुनाव के बाद जनता के सामने उतर प्रदेश को लेकर अपने विज़न को

यूपी चुनाव : अपराधियों का हाथ, मायावती के साथ

किसी जमाने में यूपी में बहुजन समाज पार्टी का नारा गूंजता था – चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबेगा हाथी पर । वहीं बीएसपी अब अपने इस नारे को भूल गई है । बीएसपी ने हाल ही में जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को अपनी पार्टी में परिवार समेत शामिल कर अपने इस नारे को ना केवल भुला दिया बल्कि मायावती ने अपने शासनकाल के दौरान वर्तमान की अपेक्षा बेहतर कानून व्यवस्था की अतीतजीविता को