राजेन्द्र कुमार चड्ढा

लोक-साहित्य : भारतीय परम्पराओं का जीवंत प्रमाण

देवेंद्र सत्यार्थी के शब्दों में, लोक साहित्य की छाप जिसके मन पर एक बार लग गई फिर कभी मिटाए नहीं मिटती। सच तो यह है कि लोक-मानस की सौंदयप्रियता कहीं स्मृति की करूणा बन गई है, तो कहीं आशा की उमंग या फिर कहीं स्नेह की पवित्र ज्वाला। भाषा कितनी भी अलग हो मानव की आवाज तो वही है।

विविधतापूर्ण भारतीय संस्कृति का सफल वाहक है हमारा लोक-साहित्य

किसी संस्कृति विशेष के उत्थान-पतन विषयक उतार-चढ़ावों का जितना सफल अंकन लोक-साहित्य में रहता है, उतना अन्यत्र नहीं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी भी संस्कृति की धूल उसकी आत्मा से जुड़ी होती है। अब अगर देश की बात की जाए तो भारतीय संस्कृति जितनी अधिक प्राचीन है, उतनी ही अधिक विभिन्न संस्कृतियों के सम्मिलित स्वरूप की वाहक भी। समय-समय पर विभिन्न संस्कृतियों ने इस