समाज-संस्कृति

समाज के लिए आज भी अभिशाप है ‘ऑनर किलिंग’

‘ऑनर किलिंग’ किसी तथाकथित गौरव के लिए की गई वो हत्याएं हैं जिसका सामना ज्यादातर महिलाओं को करना पड़ता है। इनकी पहचान कर पाना बहुत मुश्किल काम होता है, क्योंकि कई बार संपत्ति के मामलों में भी हत्याएं ऐसे ही बहाने बना कर की जाती हैं इसलिए अगर किसी समाज में इनकी गिनती ढूँढने की कोशिश करें को मुश्किल होगी।

गौतम बुद्ध और हिन्दू दर्शन

हमारे अनेक बुद्धिजीवी एक भ्रांति के शिकार हैं, जो समझते हैं कि गौतम बुद्ध के साथ भारत में कोई नया ‘धर्म’ आरंभ हुआ। तथा यह पूर्ववर्ती हिन्दू धर्म के विरुद्ध ‘विद्रोह’ था। यह पूरी तरह कपोल-कल्पना है कि बुद्ध ने जाति-भेदों को तोड़ डाला, और किसी समता-मूलक दर्शन या समाज की स्थापना की। कुछ वामपंथी लेखकों ने तो बुद्ध को मानो कार्ल मार्क्स का पूर्व-रूप जैसा दिखाने का यत्न किया है। मानो वर्ग-विहीन समाज बनाने का विचार बुद्ध से ही शुरू हुआ देखा जा सकता है, आदि।

ऐतिहासिक धरोहर है हैदराबाद का गोलकुंडा किला

शिवानन्द द्विवेदी दक्षिण भारत के आंध्र क्षेत्र के चर्चित शहर हैदराबाद ने अपनी गोद में वहाँ के निजामो और शासकों का विशाल इतिहास सजों कर रखा है। अगर कोई हैदराबाद जाए तो उसे हैदराबाद के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित गोलकोंडा किले का रुख जरुर करना चाहिए। अपनी बनावट एवं बसावट के साथ-साथ तमाम ऐतिहासिक तथ्यों

भारतीय समाज का सच्चा प्रतिविम्ब है लोक-साहित्य

साहित्य समाज का वो आईना होता है जिसमे सदियों-सदियों तक तत्कालीन समाज का पारदर्शी चेहरा अपनी भौगोलिक,सांस्कृतिक एवं सामाजिक विविधताओं के विम्ब रूप में सुरक्षित रहता है। कम शब्दों में कहें तो साहित्य ही वो एकमात्र संचय-यंत्र है जिसमे समाज के हर तत्व को समेट लेने की अक्षय ऊर्जा होती है। इसमें कोई शक नहीं कि साहित्य के मूल्यांकन का मापदंड उसकी रचनाशीलता एवं अपने समाज के मूल स्वरुप के प्रतिचित्रण की चिरकालीनता होनी चाहिए।

भारत की सांस्कृतिक विरासत हैं जनजातीय लोक-कलाएं

तिहास के तमाम अचिन्हित पन्नों एवं भारतीय भूगोल की तमाम अनहद सीमाओं में अपनी विविधताओं से परिपूर्ण संस्कृतियों एवं कलाओं की गुमनाम छाप छोड़ने वाली तमाम जनजातियां वर्तमान में मुख्यधारा के सांस्कृतिक मंचों के नेपथ्य में जाने के बावजूद विमर्शों में कायम हैं। वर्तमान भारत के भूगोल और प्राचीन भारत के इतिहास के बीच यहाँ के मूल निवासियों को लेकर एक भ्रम की स्थिति आज भी सांस्कृतिक विमर्शों का हिस्सा बनी हुई है। हलाकि तमाम लेखकों एवं इ