अरविन्द केजरीवाल

संकटकाल में भी अपनी नकारात्मक राजनीति से बाज नहीं आ रहा विपक्ष

कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष राहुल गांधी जितनी तेजी से रोज केंद्र सरकार के खिलाफ श्रृंखलाबद्ध रूप से ट्वीट करते हैं, उतनी तेजी व गंभीरता उन्होंने कांग्रेस शासित राज्यों में बिगड़ते हालातों को सुधारने के लिए कभी नहीं दिखाई।

अविवेकपूर्ण निर्णयों से समस्या पैदा कर अब किस मुंह से केंद्र से मदद मांग रहे केजरीवाल ?

केजरीवाल कब क्‍या देखकर निर्णय लेते हैं, यह समझ से परे होता है। उनके बयान भी कम चौंकाने वाले नहीं होते। उन्‍होंने पिछले दिनों बड़ी अटपटी बात कही कि दिल्‍ली सरकार यहां के अस्‍पतालों में बाहरी राज्‍यों के मरीजों का इलाज नहीं करेगी।

केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन क्यों नहीं करते अन्ना हजारे?

अन्‍ना हजारे को मोदी सरकार के विरूद्ध अनशन करने से पहले 2011 के चर्चित अन्‍ना आंदोलन से पैदा हुई राजनीतिक पार्टी और उसकी सरकार के भ्रष्‍टाचार के खिलाफ अनशन करना चाहिए। संभव है कि इससे उनके आंदोलन से उपजी पार्टी एक ईमानदार सरकार का प्रतिमान स्‍थापित कर देश की राजनीति को एक नई दिशा देने की कोशिश करे।

आम आदमी की उम्मीद और यकीन को धूमिल करने वाले नेता बन गए हैं केजरीवाल!

पत्रकार से नेता बने आम आदर्मी पार्टी के वरिष्‍ठ नेता आशुतोष के इस्‍तीफे ने पार्टी की नींव हिलाने का काम किया। भले ही केजरीवाल इस्‍तीफा स्‍वीकार नहीं करने की बात कर रहे हैं, लेकिन इतना तो तय है कि आम आदर्मी पार्टी अब खास आदमी पार्टी बन चुकी है। आशुतोष अरविंद केजरीवाल की तानाशाही और भ्रष्‍ट कार्यशैली के पहले शिकार नहीं हैं। इससे पहले

क्या आम आदमी पार्टी ने वाकई में कांग्रेस के सामने घुटने टेक दिए हैं?

सबको याद होगा कि आम आदमी पार्टी क्यों और कैसे बनाई गई थी। यूपीए-2 के दौरान भ्रष्टाचार का प्रचंड बोलबाला था। मनमोहन सिंह सरकार को एक धक्का भर देने की ज़रुरत थी। दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार के घपलों के कारनामे थमने का नाम नहीं ले रहे थे। ऐसे में दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल नाम के एक शख्स ने मौके को पहचानकर व्यवस्था परिवर्तन और भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली

आरोप लगाना और माफ़ी मांगना, क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री का अब यही काम रह गया है ?

आम आदमी पार्टी के अधोपतन का दौर जारी है। खोते जनाधार, बिगड़ती छवि, अंर्तकलह, भ्रष्‍टाचार के आरोप, विधायकों की अयोग्‍यता, नौकरशाहों से अभद्रता आदि घटनाक्रमों के बाद अब इस दल में नया बखेड़ा खड़ा हो गया है। पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के एक निर्णय ने फिर से सदस्‍यों, पदाधिकारियों को असमंजस में डाल दिया है। केजरीवाल ने अकाली दल के नेता पर पंजाब चुनाव के दौरान लगाए आरोप

‘शासन के मोर्चे पर विफल केजरीवाल को टकराव की राजनीति का ही सहारा है’

केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में आए तीन साल का समय हो गया है, इस कालखंड में अगर उनकी सरकार पर नजर डालें तो उसके खाते में काम कम, विवाद ही ज्यादा दिखाई देते हैं। राज्यपाल और केंद्र से टकराव हो या विधायकों का लाभ के पद मामले में अयोग्य सिद्ध होना हो अथवा विपक्षी नेताओं पर उल-जुलूल आरोप लगाकर केजरीवाल का मानहानि के मुकदमों में फँसना हो, ऐसे

केजरीवाल के अहंकार और अराजकता की राजनीति को ही दिखाता है अंशु प्रकाश प्रकरण !

आम आदमी पार्टी एक बार फिर से सुर्खियों में है। हमेशा की तरह इस बार भी कारण नकारात्मक और विवादास्पद ही है। लंबे समय से मतदाताओं की बेरूखी और अंदरूनी कलह झेल रही पार्टी के सामने अब एक नई मुसीबत खड़ी हो गई है। इस बार दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश से मारपीट एवं अभद्रता का मामला सामने आया है। आरोप है कि पार्टी के दो विधायक अमानतुल्ला और प्रकाश जरवाल ने वरिष्ठ

जनता के सामने हाजिरी लगाने से डर क्यों रहे, केजरीवाल ?

लाभ के पद मामले में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता चली गई। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद अरविन्द केजरीवाल सरकार ने एक ऐसा हैरानीजनक कदम उठाया था, जिसने राजनीतिक मर्यादा और शुचिता की धज्जियां उड़ा दीं। आज अगर आम आदमी पार्टी के विधायकों के फज़ीहत के लिए कोई ज़िम्मेदार है तो सबसे ज्यादा अरविन्द केजरीवाल ही हैं।

लाभ का पद प्रकरण : ‘आप’ जैसे विचार विहीन दल का ये हश्र चौंकाता नहीं है !

आम आदमी पार्टी के लिए कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। पिछले दिनों राज्‍यसभा के टिकट दो धनाढ्य लोगों को दिए जाने के बाद से ही लगातार आंतरिक एवं बाहरी विरोधी झेल रही पार्टी को अब सबसे बड़ा झटका लगा है। पार्टी के 20 विधायकों की सदस्‍यता खत्‍म होने की कगार पर है। यह मामला लाभ के पद का है, जिसे लेकर निर्वाचन आयोग ने राष्‍ट्रपति से इन जनप्रतिनिधियों की सदस्‍यता समाप्‍त करने की