कृषि

आधुनिक कृषि बाजार के विकास की दिशा में प्रयासरत है मोदी सरकार

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था कि “सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन खेती नहीं”। दुर्भाग्‍यवश खेती की दुर्दशा उन्‍हीं के कार्यकाल में शुरू हो गई लेकिन उसकी मूल वजहों की ओर ध्‍यान नहीं दिया गया। इसके बाद हरित क्रांति, श्‍वेत क्रांति, पीली क्रांति जैसे फुटकल उपाय किए गए।

कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण में जुटी मोदी सरकार

केंद्र सरकार इस समय किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दुगना करने के उद्देश्य से मिशन मोड में कार्य कर रही है। हाल ही में संसद में प्रस्तुत किए गए केंद्रीय बजट में भारतीय कृषि के आधुनिकीकरण हेतु कई उपायों की घोषणा की गई है। केंद्रीय बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 16-सूत्रीय  कार्ययोजना पर बल दिया है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाला बजट

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को संसद के पटल पर बजट-2020-21 प्रस्तुत किया। इस बजट में समाज के प्रत्येक क्षेत्र तक पहुँचने की नीतिगत मंशा दिखाई देती है। यूँ तो यह बजट सबके लिए कुछ न कुछ लेकर आया है, फिर भी इसे मुख्यतः किसान केन्द्रित कहा जा सकता है।

जैविक खेती के विकास पर मोदी सरकार दे रही विशेष ध्यान

केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश में जैविक खेती के विकास हेतु कई प्रयास प्रारम्भ किए गए हैं। बड़े-बड़े आदिवासी क्षेत्रों, वर्षा सिंचित क्षेत्रों एवं ऐसे क्षेत्र जहाँ उर्वरक का कम उपयोग होता है, उन्हें जैविक खेती क्षेत्रों में प्रोत्साहित/विकसित किया जा रहा है। इस प्रकार, 30 लाख हैक्टेयर नए क्षेत्र में जैविक खेती प्रारम्भ किए जाने की योजना है। अंडमान

कृषि और जल प्रबंधन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहेगा नीदरलैंड का सहयोग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश नीति में यूरोप को भी प्राथमिकता दी थी। इसके चलते यूरोपीय देशों के साथ भारत के रिश्तों में बहुत सुधार आया। पिछले कुछ वर्षों में व्यापारिक और आर्थिक क्षेत्र सहयोग बढ़ा है। रणनीतिक क्षेत्र में भी यही स्थिति है।संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ब्रिटेन और फ्रांस ने भारत का समर्थन किया। फ्रांस से राफेल विमान भी समय से भारत को मिला है। इसी प्रकार नीदरलैंड से भी नरेंद्र मोदी के पिछले कार्यकाल में ही रिश्ते मजबूत हुए थे। तब भारत और नीदरलैंड के बीच

बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने की पहल

हरित क्रांति के दौर में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्‍तेमाल, फसल चक्र की उपेक्षा, जल संरक्षण पर ध्‍यान न दिए जाने से देश में मरुस्‍थलीकरण का दायरा बढ़ने लगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की रिपोर्ट के अनुसार राजस्‍थान तक सिमटे थार मरुस्‍थल ने अब हरियाणा, पंजाब, उत्‍तर प्रदेश तथा मध्‍य प्रदेश को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है।

कृषि सुधारों से किसानों की आय में होगी वृद्धि

किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिये सरकार ने बहुत से कदम उठाए हैं, लेकिन अभी और बहुत कुछ किया जाना शेष है। किसानों की समस्याओं के दीर्घकालिक समाधान की नीति पर काम करने की जरूरत है। अच्छी बात है कि सरकार की नीति और नीयत दोनों ही सही दिशा में हैं

खेती-किसानी की बदहाली के लिए जिम्‍मेदार हैं कांग्रेसी सरकारें

किसानों को खुशहाल बनाने के लिए मोदी सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र को अधिक संसाधनों के आवंटन, सिंचित रकबे में बढ़ोत्‍तरी, हर गांव तक बिजली पहुंचाने, मिट्टी का स्‍वास्‍थ्‍य सुधारने, खाद्य प्रसंस्‍कारण को बढ़ावा देने और उर्वरक सब्‍सिडी को तर्कसंगत बनाने जैसे ठोस जमीनी उपायों के बावजूद किसानों की स्‍थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है तो इसका कारण कांग्रेस द्वारा छोड़ी गई विरासत है। किसानों की बदहाली पर

बहुआयामी नीतियों से किसानों की आय दोगुनी करने की ओर बढ़ रही मोदी सरकार

मोदी सरकार का मकसद किसानों की समस्या का निदान करना है, न कि लोकलुभावन योजनाओं  के माध्यम से उन्हें लुभाना। उदाहरण के तौर वर्ष 2008 में कृषि कर्ज माफी का नारा दिया गया था, लेकिन 5 से 6 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में से केवल 72,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ करने की घोषणा की गई और केवल 52,500 करोड़ रुपये माफ किया गया, जिसका

स्वामीनाथन के बाद अब नाबार्ड ने भी माना कि मोदी राज में बढ़ी है किसानों की खुशहाली!

भ्रष्‍टाचार, तुष्‍टीकरण, धनबल-बाहुबल और जाति-धर्म की राजनीति कर सत्‍ता हासिल करने वाली सरकारों ने कृषि क्षेत्र के दूरगामी विकास की ओर कभी ध्‍यान ही नहीं दिया। यही कारण है कि खेती-किसानी की बदहाली बढ़ती गई। 1991 में शुरू हुई उदारीकरण की नीतियों में खेती-किसानी की घोर उपेक्षा हुई।