केजरीवाल

भाजपा की जीत से बौखलाए विपक्षी दलों का ईवीएम राग

‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ एक पुरानी और प्रचलित कहावत है, जो वर्तमान में ईवीएम को लेकर विपक्ष द्वारा मचाए जा रहे फ़िज़ूल के हंगामे पर एकदम सटीक बैठती है। एक तरफ यूपी की पराजय से सपा, बसपा तो दूसरी तरफ पंजाब में हुई हार से आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल

जनता के पैसे से अपनी छवि चमकाने के चक्कर में फँसे केजरीवाल, फिर खुली नयी राजनीति की पोल

अलग तरह की राजनीति का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में सत्तारूढ़ हुए दो वर्ष से अधिक का समय हो चुका है। जनता के हित के बड़े-बड़े काम करने का वादा करके सत्ता में आने वाले केजरीवाल इस दौरान काम तो कुछ नहीं किए हैं; मगर अपने विभिन्न कारनामों के लिए खूब चर्चा में रहे हैं। कभी अपने मंत्रियों की गिरफ़्तारी तो कभी नजीब जंग से लेकर अनिल बैज़ल तक दिल्ली के उपराज्यपालों से

पंजाब की पराजय से सबक लें केजरीवाल

उत्‍तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की कामयाबी जितना चमत्‍कृत करती है, उतना ही पंजाब में आम आदमी पार्टी की नाकामी। यह नाकामी इसलिए भी महत्‍वपूर्ण बन जाती है क्‍योंकि दिल्‍ली की भांति केजरीवाल ने पंजाब में शपथ ग्रहण समारोह और चुनावी वायदों को पूरा करने का तिथिवार कार्यक्रम घोषित कर रखा था। इतना ही नहीं, पार्टी ने जीत का जश्‍न मनाने के लिए भारी-भरकम बंदोबस्‍त कि

ईवीएम पर सवाल उठाने की बजाय हार के कारणों पर आत्ममंथन करें विपक्षी दल

पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हो गये हैं और परिणाम भी सबके सामने आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने की तैयारी में है तो वही मणिपुर और गोवा में भाजपा की सरकारें बन चुकी हैं। यानी पंजाब के अलावा अन्य राज्यों के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है। स्पष्ट है कि जनता ने केंद्र की मोदी सरकार के लोक कल्याण से जुड़ी योजनाओं व विकासवादी एजेंडे के

‘आप’ सरकार के दो साल : नहीं पूरे हुए वादे, ठप्प पड़ा दिल्ली का विकास

दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता में आए दो वर्ष हो चुके हैं। इन दो वर्षों के कार्यकाल के दौरान दिल्ली की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। दो साल के कार्यकाल के आधार पर यदि केजरीवाल सरकार का मूल्यांकन करें तो बेहद निराश करने वाली स्थिति नज़र आती है। यह बात तो जगजाहिर है कि केजरीवाल के अभी तक के कार्यकाल का अधिकाधिक समय केंद्र सरकार और दिल्ली के पूर्व

वादों की कसौटी पर विफल आम आदमी पार्टी सरकार

विगत १४ फ़रवरी को दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के दो साल पूरे हो गए । दो साल किसी भी सरकार के काम-काज का आंकलन करने के लिए काफी होता है । ‘आप’ सरकार दो साल तक केंद्र सरकार से टकराव के रास्ते पर चलती रही और उनके कुछ मंत्री विवादों में पड़े । संभव है कि आम आदमी पार्टी ने टकराव को ही अपनी राजनीति का आधार बनाया हो, लेकिन लोकतंत्र में जनहित के कामों को लेकर

दो सालों के शासन में पूरी तरह से नाकाम रही है केजरीवाल सरकार, बिगड़ी दिल्ली की हालत

विकास के नारे के साथ एक दिल्ली के मुख्यमंत्री बनाने वाले केजरीवाल की आप सरकार को दो साल का समय पूरा हो चुका है। दिल्ली के मतदाताओं को स्वच्छ राजनीति, लुभावने वादों और विकास का सब्जबाग दिखाकर केजरीवाल सत्ता तक तो पहुंच गए, लेकिन उनके कार्यकाल में विकास के नाम पर एक पत्ता भी नहीं हिला है। दो साल का समय बीता तो सिर्फ दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग और केंद्र

नोटबंदी का अतार्किक विरोध कर देश का भरोसा खोता विपक्ष

नोटबंदी के बाद जनता के मन में एक भावना आसानी से देखी जा सकती है कि प्रधानमंत्री के इस फैसले को वह हर तरह की परेशानी के बाद भी काला धन रखने वालों और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ देख रही है। और जनता की इस भावना ने दरअसल देश के विपक्ष के लिए कतार में लगी जनता से ज्यादा परेशानी की जमात खड़ी कर दी है।

नोटबंदी के निर्णय से खुश है जनता, बस विपक्षी दलों को हो रही पीड़ा

एक कहावत है कि प्रहार वहां करो जहां चोट पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा ही करके काले धन के कारोबारियों और काली कमाई से सियासत का मचान तान रखे सियासतदानों की कमर तोड़ दी है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि छलपूर्वक अर्जित की गयी काली कमाई को कैसे और कहाँ ठिकाने लगाएँ। अब उन्हें चारों तरफ का रास्ता बंद नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री ने दो टूक कह भी दिया है कि उनका अगला

खबरदार, यह ईमानदारों की कतार है, बेईमान दूर रहें!

केंद्र सरकार द्वारा पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने के फैसले के बाद से ही मोदी-विरोधी एक राजनीतिक जमात में भूचाल की स्थिति है। इस साहसिक एवं ऐतिहासिक निर्णय के दूरगामी नफा-नुकसान पर बहस करने की बजाय कुछ राजनीतिक जमात के लोग बैंकों की कतारों पर बहस करना चाहते हैं। चूँकि, इस निर्णय को लेकर आम जनता के मन में एकतरफा समर्थन का भाव खुलकर दिख रहा है, लिहाजा