जम्मू कश्मीर

अनुच्छेद-370 हटने के बाद कश्मीर में हालात सामान्य रहना सरकार की बड़ी सफलता है!

जम्‍मू और कश्‍मीर में अब हालात सामान्‍य हो गए हैं। गत 5 अगस्‍त को केंद्र सरकार ने कश्‍मीर से अनुच्छेद-370 समाप्त करते हुए विशेष राज्‍य का दर्जा हटा दिया था। इसके पहले ही घाट में सुरक्षा प्रबंध चौकस थे और इसके बाद भी यहां लगातार व्‍यवस्‍थाएं पुख्‍ता बनी हुईं हैं।

कश्मीर के राजनीतिक हल की बात करने वाले इस ‘राजनीतिक हल’ को क्यों नहीं पचा पा रहे?

कश्मीर में “कुछ बड़ा होने वाला है” के सस्पेंस से आखिर पर्दा उठ ही गया। राष्ट्रपति के एक हस्ताक्षर ने उस ऐतिहासिक भूल को सुधार दिया जिसके बहाने पाक सालों से वहां आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने में सफल होता रहा, लेकिन यह समझ से परे है कि कश्मीर के राजनैतिक दलों के महबूबा मुफ्ती, फ़ारूख़ अब्दुल्ला सरीखे नेता और कांग्रेस जो कल तक यह कहते थे कि कश्मीर समस्या का हल सैन्य कार्यवाही नहीं है बल्कि राजनैतिक है, वो मोदी सरकार के इस राजनीतक हल को क्यों नहीं पचा पा रहे हैं?

अनुच्छेद-370 हटाने का विरोध बताता है कि कांग्रेस ने पिछली गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है!

कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल सुधारते हुए मोदी सरकार ने जम्‍मू-कश्‍मीर से धारा 370 को हटाने का ऐलान किया जिसके साथ जम्‍मू-कश्‍मीर को मिला विशेष राज्‍य का दर्जा भी खत्‍म हो गया। इसे मोदी सरकार की कुशल रणनीति ही कहेंगे कि मोदी विरोधी पार्टियां भी सरकार के फैसले का साथ दे रही हैं। इनमें आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल, एआईडीएमके और वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख हैं।

क्या सुलझने की ओर बढ़ रही है कश्मीर की गुत्थी?

अमित शाह के कश्मीर दौरे के दौरान यह साफ़ हो गया था कि कश्मीर में सही वक़्त पर चुनाव भी होंगे लेकिन उससे पूर्व आतंकियों की नकेल भी कसी जाएगी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान सेना को आतंकियों से निबटने में खुली छूट दी गई थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि स्थानीय आतंकियों की एक पूरी की पूरी जमात का सफाया हो गया,

संसद में अमित शाह के भाषण ने कश्मीर मुद्दे पर कांग्रेस को कायदे से आईना दिखाया है!

लंबे समय तक बीजेपी के अध्‍यक्ष रहे अमित शाह अब सत्‍तारूढ़ दल में केंद्रीय मंत्री हैं। उन्‍हें गृह मंत्रालय का जिम्‍मा मिला है और पहली बार वे इस नाते संसद में मौजूद हैं। चुनावी और दलगत मसलों पर देश भर में सार्वजनिक मंचों पर तो उन्‍हें जनता देखती-सुनती आई लेकिन संसद के बजट सत्र में एक मंत्री के तौर पर उनका जो रूप देखने को मिल रहा है,

35ए : वह अनुच्छेद जिसे नेहरू ने संसद में पारित किए बिना ही संविधान का हिस्सा बना दिया

अनुच्छेद 35-ए को लेकर पिछले कुछ दिनों से लगातार बहस-मुबाहिसो का दौर जारी है। यह एक ऐसा विधान है, जिसने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया है। लेकिन इसे एक ऐसे संवैधानिक धोखे का नाम भी दिया जा रहा है, जिसकी वजह से वहां के लाखों लोग वर्षों से नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

भाजपा-पीडीपी के अपरिहार्य गठबंधन का अवसान

कभी-कभी खंडित जनादेश धुर विरोधियों को भी साथ आने पर विवश कर देता है। जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी का गठबंधन ऐसा ही था। दोनों ने विधानसभा चुनाव एकदूसरे के खिलाफ लड़ा था। लेकिन खंडित जनादेश में इनके पास गठबंधन से सरकार बनाने का एक मात्र विकल्प यही बचा था। इसे अपरिहार्य  गठबंधन कहा जा सकता था।

अब खैर मनाएं आतंकी, फिर शुरू हो रहा ऑपरेशन ऑलआउट !

आखिर केंद्र की मोदी सरकार ने रविवार को वह अहम फैसला ले ही लिया, जिसके लिए पिछले कुछ दिनों से काफी उम्‍मीद जताई जा रही थी। सरकार ने निर्णय लिया है कि अब फिर कश्‍मीर में आतंकियों के खिलाफ पुनः सैन्य ऑपरेशन चलाया जाएगा। सरकार ने यह निर्णय प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय कमिटी की बैठक में लिया जिसमें गृहमंत्री

यातायात ही नहीं, रणनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है जोजिला सुरंग !

केंद्र की भाजपा नीत सरकार जम्‍मू-कश्‍मीर में तनाव और आतंक के साये में भी लगातार अधोसरंचनात्‍मक विकास का परचम लहरा रही है। 19 मई शनिवार का दिन देश के लिए एक अहम उपलब्धि भरा रहा। शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को और जम्मू-कश्मीर को कई महत्‍वपूर्ण विकास परियोजनाएं समर्पित कीं। इस क्रम में सबसे पहला नाम है जोजिला सुरंग का, जो

पीओके पर यह कौन-सी भाषा बोल रहे हैं, फारूक अब्दुल्ला !

फारूक अब्दुल्ला की जुबान अब बार-बार फिसलने लगी है। फारूक अब्दुल्ला लगता है जानबूझकर सुनियोजित ढंग से उलटबयानी करते हैं। फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि जो हिस्सा पाकिस्तान के पास है, वो पाकिस्तान का ही कश्मीर है। भारत ने कश्मीर को धोखा दिया है। कुछ माह पहले फारुक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर भारत के दावे को लेकर कहा, “क्या यह तुम्हारे बाप का है?” उन्होंने  आगे