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जनरक्षा यात्रा : केरल में भी वामपंथियों के लिए बजने लगी खतरे की घंटी !

लोकतंत्र में वैचारिक मतभेद एवं बहस-मुबाहिसों को पर्याप्त स्वीकार्यता प्रदान की गयी है। स्वतंत्रता के पश्चात भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में अनेक ऐसे दलों का निर्माण हुआ जो किसी न किसी वैचारिक विरोध के फलस्वरूप अस्तित्व में आए। लेकिन वैचारिक भिन्नता की वजह से हिंसा का सहारा लेना किसी भी दृष्टि से न तो लोकतंत्र के अनुकूल है और न ही इसे उचित ठहराया जा सकता है। स्वस्थ बहस और वाद

जनरक्षा यात्रा : केरल में भाजपा की बढ़ती धमक

केरल की वामपंथी हिंसा के विरुद्ध भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा जनरक्षा यात्रा की शुरुआत के गहरे अर्थ हैं। दरअसल केरल में आजादी के बाद से ही संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले होते रहे हैं, जिनमें अबतक लगभग तीन सौ कार्यकर्ताओं की जान जा चुकी है। इनमें सर्वाधिक हत्याएं केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन के क्षेत्र कन्नूर में होने की बात भी कही जाती रही है।

अगर जय शाह ने कुछ भी गलत किया होता तो मानहानि का दावा करने की हिम्मत नहीं दिखाते !

कांग्रेस को लगता है कि दूसरों पर भ्रष्टचार के आरोप लगाने से उसकी छवि निखर जाएगी। इस प्रयास में वह कई बार जल्दीबाजी कर देती है। इसके बाद उसे फजीहत उठानी पड़ती है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से वह ऐसा कर रही है। अनेक मुद्दे उठाए। नरेंद्र मोदी तक को घेरने का प्रयास किया। कई बार सांसद में भी हंगामा किया। लेकिन, केजरीवाल की तरह किसी मसले को न्यायपालिका तक ले जाने की हिम्मत

जय शाह पर आरोप लगाने वाला खेमा मानहानि के मुकदमे से इतना असहज क्यों है ?

पिछले दिनों एक वेबसाइट पर छपे एक लेख में बीजेपी अध्यक्ष अमित भाई शाह के पुत्र जय शाह पर उल-जुलूल तथ्यों के जरिये आरोप लगाया गया कि केंद्र भाजपा की सरकार आने के बाद उनकी कंपनी साल भर में ही अमीर बन गई। लेख की प्रकाशक वेबसाइट, जिसमें ज़्यादातर वामपंथी विचारधारा के लोग शामिल हैं, ने सियासी रंग में रंगकर इस लेख को दुनिया के सामने परोसा।

जनरक्षा यात्रा : केरल में जमीन पर मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आ चुकी है भाजपा

देश में इस समय केवल अमित शाह ही ऐसे हैं, जो राष्ट्रीय अध्यक्ष के दायित्व का सच्चे अर्थों में निर्वाह कर रहे हैं। वह भाजपा को उन प्रदेशों में मजबूत बनाने के अभियान पर हैं, जो पहुंच से दूर समझे जाते थे। केरल की जनरक्षा यात्रा यहां के समीकरण बदलने की दिशा में बढ़ रही है। शाह ने पहले दिन नौ किलो मीटर की यात्रा की थी। दूसरे दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इसे आगे बढ़ाया। योगी आदित्यनाथ करीब नौ किलो मीटर

‘उत्तराखंड को अटल जी ने बनाया था, मोदी जी संवारेंगे’

देश के सभी राज्यों के प्रवास कार्यक्रमों के अंतिम चरण में देवभूमि उत्तराखंड पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं में नए उत्साह का संचार कर गए, अपितु उनका दो दिवसीय दौरा एक मिसाल के रूप में भी कायम हो गया। राजधानी देहरादून में अपने 38 घंटे के प्रवास में अमित भाई सांस लेने की फुर्सत में नहीं दिखे और ताबड़तोड़ तरीके से करीब 2 दर्जन कार्यक्रम निबटाए। पार्टी की

2019 में क्यों अजेय नजर आ रहे मोदी ?

2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए रणभेरियां अभी से बज चुकी हैं। राजनीतिक पार्टियां भी अपने-अपने वैचारिक धरातल को तैयार करने में लग गई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने अपनी दो दिवसीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई, वहीं राहुल गाँधी ने गुजरात की धार्मिक नगरी द्वारिका से अपना चुनाव अभियान शुरू कर दिया है।

भारतीय राजनीति के करिश्माई व्यक्तित्व हैं अमित शाह

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का दो दिवसीय उत्तराखण्ड दौरा न केवल अनूठा है, अपितु संपूर्ण राजनीतिक प्रतिष्ठान के लिए एक लंबी लकीर खींचने वाला भी साबित होगा। अमित शाह अपने दो दिनी प्रवास में पार्टी की सबसे छोटी इकाई ‘मडंल’ के पदाधिकारियों से लेकर प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों-विधायकों के साथ ताबडतोड़ बैठकें करेंगे। साथ ही, बुद्धिजीवियों से भी संवाद स्थापित करेंगे।

गौरी लंकेश की हत्या पर बोलने वाले बुद्धिजीवी केरल की वामपंथी हिंसा पर मुंह में दही क्यों जमा लेते हैं?

300 से अधिक राजनीतिक हत्याएं और हजारों लोग हिंसा के शिकार। चौंकाने वाला आंकड़ा है। मगर, यह आंकड़ा न तो कुख्यात आतंकवादी संगठन आइएस प्रभावित इराक या सीरिया का है और ना ही तालिबान प्रभावित किसी देश का है। यह आंकड़ा उस देश का है, जहाँ एक वामपंथी और घोषित रूप से हिंदुत्व विरोधी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या पर ऐसा बवाल मचाया जाता है कि मानों देश में सब कुछ असुरक्षित है। वहीं

आरोप लगाकर गायब होने में माहिर हैं रामचंद्र गुहा

एक पत्रकार या इतिहासकार से यह अपेक्षा रहती है कि वो अपनी खबरों और शोध के पुख्ता प्रमाण भी दे। तब उसके काम को प्रतिष्ठा मिलती है। लेकिन, इतिहासकार रामचंद्र गुहा इस मामूली-सी बात को भूल गए हैं। गुहा के साथ यह परेशान बढ़ती जा रही है। अब उन्होंने गौरी लंकेश की हत्या में संघ का हाथ बता दिया है। जब कर्नाटक पुलिस अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है, तो गुहा को कैसे पता चल गया कि गौरी लंकेश