भारत

सामाजिक-आर्थिक प्रगति को बुलेट ट्रेन से मिलेगी रफ्तार

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अहमदाबाद में मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (एमएएचएसआर) परियोजना की आधारशिला रखी। इसके साथ ही भारत 20 देशों के एक खास समूह में शामिल हो गया। यह परियोजना लोगों के लिए सुरक्षा, गति और बेहतर सेवा के एक नये युग का सूत्रपात करेगी। माना जा रहा है कि विश्व में तीसरा सबसे लंबा नेटवर्क होने का फायदा उठाते हुए भारतीय

भारत-जापान के बीच बढ़ रही नजदीकी से परेशान चीन

भारत और जापान के सम्बन्ध शुरू से अच्छे रहे हैं। जापान में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रभाव होने के कारण दोनों देशों के बीच संबंधों में और भी प्रगाढ़ता आई है। भारत की आजादी के लिये किये जा रहे संघर्ष में भी जापान की शाही सेना ने सुभाष चंद्र बोस की मदद की थी। आजादी मिलने के बाद से दोनों देशों के बीच सौहाद्र्पूर्ण संबंध रहे हैं, जबकि भारत और जापान दोनों देशों के चीन के साथ कमोबेश तल्खी वाले रिश्ते रहे हैं। इस

अमेरिका की अफगानिस्तान नीति से पाक बाहर, भारत को मिला सर्वाधिक महत्व

भारत के थलसेना प्रमुख जनरल विपिन रावत और अमेरिकी विदेश उपमंत्री के बयान में कोई सीधा संबन्ध नही था। लेकिन, लगभग एक ही समय मे आये इन बयानों की सच्चाई एक जैसी है। जनरल विपिन रावत ने पाकिस्तान और चीन दोनो मोर्चो पर मुस्तैद रहने की बात कही तो दूसरी ओर अमेरिकी विदेश उपमंत्री ने कहा कि भारत दो खतरनाक देशों से घिरा है। इन दोनों बयानों का मतलब भी एक है और इनकी सच्चाई

ये ब्रिक्स सम्मेलन दिखाता है कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बढ़ा है भारत का दबदबा !

ब्रिक्स सम्मेलन इस बार चीन के शियामन में 3 से 5 सितम्बर तक हुआ। इस समूह के पांचो सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों की उपस्थिति में भारत ने जिस तरह आतंकवाद के मुद्दे को उठाया, वो अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस सम्मेलन को ऐतिहासिक बनाते हुए पहली बार आतंकवादी संगठनो के नाम जारी किये गए। भारत ने पाक-पोषित आतंकी संगठनो के नामों पर जोर डालते हुए घोषणापत्र में कुल 18 बार आतंकवाद का ज़िक्र किया।

डोकलाम के बाद अब ब्रिक्स में भी भारत के आगे चित हुआ चीन !

ब्रिक्स सम्मेलन के साझे घोषणापत्र में आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ाई लड़ने की बात कही गई है। आतंकवाद का ज़िक्र इस घोषणापत्र में कम से कम 18 बार किया गया है। चीन ने भी जैश-ए-मोहम्मद और तालिबान जैसे पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठनों के नामों को इसमें शामिल किए जाने पर ऐतराज न जताते हुए भारत के रुख का ही साथ दिया। ये आतंकी संगठन मूलतः पाकिस्तान की धरती पर मौजूद हैं और यहीं से

मोदी सरकार की सफल विदेशनीति का उदाहरण है डोकलाम से चीन का पलायन

आखिरकार भारत और चीन के बीच डोकलाम से सेना पीछे करने पर सहमति बन गयी। भारत ने बातचीत के जरिये डोकलाम मुद्दे को सुलझाने का प्रस्ताव रखा था, जबकि चीन इसके लिए तैयार नहीं था। भारत ने भी अपनी सेना पीछे हटाने से साफ़ इन्कार कर दिया था। चीन को भारत की सेना और सरकार के निश्चय के आगे आख़िरकार झुकना ही पड़ा।

डोकलाम में भारत ने कायदे से चीन को उसकी औकात दिखा दी है !

भारत ने इस बार कायदे से चीन को समझा दिया कि हमें 1962 वाला कमजोर और निरीह देश मत समझना। अगर जंग की तो इतनी मार खाओगे कि पानी नहीं मिलेगा। भारत के आत्मविश्वास के आगे धूर्त चीन पस्त हो गया। उसने अपने कदम वापस खींच कर समझदारी दिखाई। दोनों पड़ोसियों के ताजा विवाद ने कुछ बिन्दुओं को साफ कर दिया। जैसे कि चीन घनघोर विस्तारवादी देश है। विश्व समुदाय को चीन की इस हरकत

सरकार और सेना की दृढ़ता का परिणाम है डोकलाम की कूटनीतिक जीत

डोकलाम मुद्दे पर 73 दिनों तक चीनी सेना के साथ आंखों में आंखें डालकर खड़ा रहने का माद्दा भारत ने दिखाया है, इसके लिए सरकार और भारतीय सेना दोनों ही निश्चित तौर पर बधाई के पात्र हैं। इसे न सिर्फ एक कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है बल्कि भारत ने पाकिस्तान जैसे और भी कई देशों को कड़ा सन्देश भी दिया है कि भारत कठिन परिस्थितियों में भी ठोस कदम उठाने की हिम्मत रखता है।

अब चीन के हर ‘पैंतरे’ का माकूल जवाब देने लगा है भारत !

डोलाम (डोकलाम) को लेकर चीन की बढ़ती आक्रामकता को रोकने में भारत सफल हो रहा है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी इस मामले में भारत के ही साथ खड़ा नज़र आ रहा। भूटान ने भी साफ़ शब्दों में चीन को समझा दिया है कि डोलाम को वो चीन का हिस्सा नहीं मानता है। डोलाम जो कि भूटान और चीन का विवादित क्षेत्र है, कुछ महीनों से तंग माहौल के वजह से चर्चे में है। ये क्षेत्र वर्षों से भूटान और चीन के बीच टकराव का मुद्दा

राष्ट्र-गौरव की भावना, भारतीय संस्कृति और युवाओं के दम पर विश्व शक्ति बनेगा भारत !

भारत आज़ादी के 71वें वर्ष का जश्न मना रहा है। मेहनत, हिम्मत, संकल्प, जिद और लाखों लोगों के बलिदान के बाद हमारे शहीदों ने एक स्वतंत्र हिंदुस्तान का सपना साकार किया, लेकिन आज़ादी के साथ ही हमें देश के विभाजन का भी दंश झेलना पड़ा। विभाजन के समय 20 लाख से ज्यादा लोग मारे गए। विभाजन के दौरान और बाद में 72 लाख हिन्दुओं और सिखों को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा वहीं इतनी ही मुसलमानों की