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डोलाम विवाद : भारत ने सेना की तैनाती बढ़ाकर चीन को दिया कठोर सन्देश

डोकलाम सीमा पर भारत व चीन के बीच तनाव दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। इसी सप्‍ताह चीन ने लगातार अलग-अलग माध्‍यमों से भारत को धमकी देकर डोकलाम से अपनी सेना हटाने के लिए कहा और चीन के कथित रक्षा विशेषज्ञ भी जंग की धमकी देने से बाज नहीं आए। इन सब तनावपूर्ण स्थितियों के बीच एक अहम सूचना यह सामने आई है कि भारत ने चीन की परवाह न करते हुए सेना हटाने की बजाय उल्‍टे और सेना

भारत से युद्ध छेड़ना चीन के लिए खुद अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा !

चीन का जब सीमा विवाद पर आक्रमक रुख शुरू हुआ तो एक उम्मीद थी कि दलाई लामा से लेकर भारत में रहने वाले बड़ी संख्या में तिब्बती उसके (चीन) के खिलाफ सामने आएँगे। लेकिन सब चुप हैं। न दलाई लामा बोल रहे हैं, न ही बात-बात पर चीन एंबेसी के बाहर प्रदर्शन करने वाले तिब्बती खुलकर भारत के पक्ष में खड़े हो रहे हैं। भारत ने दलाई लामा को उनके हजारों अनुयायियों के साथ शरण देकर एक तरह से चीन से

चीन प्रेम में डूबे पाकिस्तान को अंदाजा भी नहीं है कि चीन उसे गुलाम बनाने की तैयारी कर रहा !

आज पाकिस्तान की ज़मीन पर चीन की बढ़ती गतिविधियों से पाकिस्तान को तो भविष्य में खतरा है ही, लेकिन इकॉनोमिक कॉरिडोर के बहाने चीन ऐसी व्यूहरचना कर रहा है, जिससे भारत को भी अत्यधिक सावधान रहने की ज़रुरत है। इसी कारण भारत सरकार द्वारा इस कॉरिडोर का लगातार विरोध किया जाता रहा है। बहरहाल, हम यहाँ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में यह समझाने की कोशिश करेंगे कि किस तरह चीन का नव-

भारत से युद्ध की हालत में नहीं है चीन, ऐसा किया तो ये उसकी बहुत बड़ी भूल होगी !

चीन में स्थिति ये है कि वहाँ कभी बेहद सस्ती रही श्रम शक्ति अब धीरे-धीरे बढ़ते बुढ़ापे के कारण महँगी होती जा रही है, जिससे चीन की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव है। भारत में अपने उत्पादों के लिए बढ़ती मुश्किलों और आंतरिक रूप से डांवाडोल हो रही अर्थव्यवस्था के कारण ऊपर से मजबूत और चमक-दमक वाला दिख रहा चीन अन्दर ही अन्दर आर्थिक रूप से काफी परेशान है। ऐसे

सिक्किम सीमा विवाद में भारत ने जो रुख दिखाया है, चीन को उसकी उम्मीद ही नहीं रही होगी !

भारत व चीन के बीच सिक्किम सीमा के डोकलाम पर इन दिनों विवाद की स्थिति है। यहां हाल ही में भारत ने सैनिकों की तैनाती में इजाफा किया है। बताया जाता है कि वर्ष 1962 के बाद यह पहला मौका है, जब इस क्षेत्र में लंबा गतिरोध बना है, जिसके चलते दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं। डोकालाम इलाका एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे भूटान अपना मानता है, जबकि चीन इसपर अपना दावा करता है।

नेहरूवादी मुस्लिपरस्ती के कारण कांग्रेस ने इजरायल से रखी दूरी, राष्ट्रीय हितों को किया अनदेखा

नेहरू-गांधी खानदान ने मुस्‍लिम वोटों के लिए हिंदू हितों की बलि ही नहीं चढ़ाई बल्‍कि ऐसी विदेश नीति भी अपनाई जिससे राष्‍ट्रीय हित तार-तार होते गए। इसे भारत की मध्‍य-पूर्व नीति से समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में नेहरू ने पश्‍चिम एशिया के संबंध में भारतीय विदेश नीति में तय कर दिया था कि फिलीस्‍तीन से दोस्‍ती इजरायल से दूरी के रूप में दिखनी चाहिए। नेहरू की इस आत्‍मघाती नीति को

चीन की बदमाशियों को जीएसटी से मिलेगा माकूल जवाब

भारत में 1 जुलाई, 2017 से वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को लागू कर दिया गया है। जीएसटी के प्रावधानों को देखते हुए माना जा रहा है कि इससे चीन के निर्यात पर लगाम लगेगा, क्योंकि जीएसटी के कुछ प्रावधानों के कारण चाइनीज उत्पादों का अंतर्राजीय वितरण आसानी से नहीं किया जा सकेगा, जिससे चाइनीज उत्पाद देश के दूर-दराज इलाकों तक नहीं पहुँच सकेंगे। इनकी पहुँच केवल एक राज्य के स्थानीय बाज़ारों तक

भारत-इजरायल की इस जुगलबंदी से भारतीय विदेशनीति को मिलेगा नया आयाम

इजरायल में जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किया गया, वह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत के बढ़ते वर्चस्व को दिखाता है, क्योंकि इजरायल के प्रधानमंत्री ने हिंदी में बोलकर उनका अभिवादन किया साथ ही वह अपने कैबिनेट के 11 मंत्रियो और सारे उच्च अधिकारियो को लेकर उनके स्वागत के लिए खड़े थे। अमेरिकी राष्ट्रपति के बाद मोदी पहले ऐसे राजनेता हैं, जिनका स्वागत करने के

भारत को मिल रही थी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की सदस्यता, नेहरू ने चीन की झोली में डाल दिया !

भारत-चीन के बीच आजकल सीमा विवाद बेहद गंभीर रूप ले चुका है। स्थिति युद्ध वाली बन रही है। चीन का रुख बेहद आक्रामक है। यह वही चीन है, जिसे भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनवाने में अहम रोल अदा किया था पंडित जवाहर लाल नेहरु के सौजन्य से। उनका चीन प्रेम जगजाहिर था।

अमेरिका द्वारा सलाहुद्दीन को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित किए जाने से हलकान हुआ पाक

सलाहुद्दीन कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद का चेहरा है और हिजबुल मुजाहिदीन घाटी में सक्रिय सबसे पुराना आतंकी संगठन है। आतंकी फंडिंग को लेकर पहले ही पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की जांच का सामना कर रहा है। जाहिर है, ऐसे में अब सलाहुद्दीन के मुद्दे पर पाकिस्तान की असहजता व बेचैनी प्रकट हो रही है। वो सलाहुद्दीन के बचाव में दलीलें दे