राफेल

राफेल पर द हिन्दू के ‘अर्धसत्य’ को लेकर उछल रही कांग्रेस फिर औंधे मुंह गिरी है!

चुनाव का मौसम भी काफी दिलचस्प होता है, जिसमें विरोधी एकदूसरे पर हमला करने के छोटे से छोटे मौके की ताक में रहते हैं। यह खबर आम है कि कांग्रेस राफ़ेल की खरीद को लेकर नित नए इल्ज़ाम लगाने की ताक में रहती है, भले ही उसके लिए झूठ का ही सहारा क्यों न लेना पड़े।  लेकिन मज़ेदार बात यह है कि झूठ पकड़े जाने के बाद भी कांग्रेस झूठ बोलना नहीं छोड़ती, जाने क्यों उसे लगता है कि जनता उसके द्वारा छोड़े जा रहे शिगूफे को गंभीरता से भी लेती है।

तथ्यों के धरातल पर बार-बार मात खाने के बावजूद राहुल राफेल-राफेल करने से बाज क्यों नहीं आ रहे!

राफेल पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद होना तो यह चाहिए था कि राहुल गांधी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसले पर तथ्यहीन आरोप उछालने के लिए अपनी गलती मान लेते, लेकिन विद्रूप देखिये कि इसके बाद उनके सुर और ऊंचे हो गए। फैसले की एक पंक्ति पकड़कर वे सरकार को घेरने लग गए।

राहुल का लगातार फजीहत के बावजूद राफेल-राफेल करना चुनावी मजबूरी के सिवा कुछ नहीं

पिछले दिनों संसद में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल रक्षा सौदों पर सरकार के पक्ष को बखूबी उजागर कर कांग्रेस के झूठ को बेनकाब कर दिया। कांग्रेस की तरफ से फैलाए गए झूठ को खरीदने और बेचने वालों को इसके बाद समझ नहीं आ रहा कि झूठ के किस सिरे को पकड़ा जाए और किस सिरे को छोड़ दिया जाए। लेकिन राहुल हैं कि राफेल पर फैलाये जा रहे असत्य से

राफेल सौदे का अंधविरोध राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति कांग्रेस की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करता है!

राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आ जाने के बाद से ऐसा माना जा रहा था कि विपक्ष को अब अपनी गलती का एहसास हो जाएगा और वह इस भ्रम को फ़ैलाने के लिए माफ़ी भले न मांगे, लेकिन कम से कम अब राफेल घोटाले का भूत कांग्रेस मुखिया के सर से जरूर उतर जाएगा। किन्तु ऐसा तब संभव होता जब विपक्ष राफेल पर तथ्यों के तहत बात कर रहा होता।

मिशेल के प्रत्यर्पण ने कांग्रेस की धड़कने बढ़ा दी हैं!

शीशे के घरों में रहने वालों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। कांग्रेस पिछले चार वर्षों से यही कर रही है। कुछ दिन तक उसने राफेल डील पर घोटाले का आरोप लगाया था। लेकिन बिना तथ्यों के लगाए गए आरोप ने कांग्रेस की फ्रांस तक जगहँसाई कराई। राहुल द्वारा लगाए गए आरोपों का फ़्रांस तक ने खण्डन किया

राफेल पर कांग्रेस के झूठ की खुल रही पोल!

अगले वर्ष आम चुनाव होने हैं और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस वर्तमान में इस स्थिति में नहीं है कि वह चुनावों में जनता के भरोसे पर खरी उतर सके। सत्ता में विफल रहने के बाद पिछले साढ़े चार सालों में विपक्ष के रूप में भी कांग्रेस की भूमिका बेअसर रही है। वाजिब मुद्दों के अभाव में कांग्रेस फिजूल के मुद्दों की हवा बनाने में लगी है। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी समेत पूरी पार्टी ने

‘परमाणु ब्लैकमेलिंग करने वालों के लिए जवाब है आईएनएस अरिहंत’

मोदी सरकार द्वारा वायु सेना की जरूरतों के मद्देनजर किया गया राफेल खरीद हो या तोपों की कमी से जूझती थल सेना के लिए अत्याधुनिक होवित्जर तोपों का सौदा हो अथवा रूस से मिसाइल रक्षा प्रणाली लेना हो, ये तथा ऐसे ही और भी कई छोटे-बड़े सौदे इस बात की तस्दीक करते हैं कि ये सरकार देश की रक्षा आवश्यकताओं के प्रति सिर्फ बातों में ही गंभीर नहीं है, बल्कि धरातल

‘राहुल गांधी की भाषा सुनकर हैरानी होती है कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं’

कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी इन दिनों कुछ ज्‍़यादा ही मुखर दिखाई दे रहे हैं। लेकिन यदि इस पर ध्‍यान दिया जाए कि वे क्‍या बोल रहे हैं, तो हैरानी होगी कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे ना तो कुछ नया बोल रहे हैं, ना मौलिक, ना तथ्‍य परक और ना ही ठोस। यहां तक भी ठीक था। आखिर परिवारवादी व्‍यवस्‍था से निकले तथाकथित नेता के पास बोलने के लिए कुछ जमीनी

कांग्रेस इस कदर मुद्दाहीन हो गयी है कि उसे हर मामले में बस राफेल ही दिख रहा है!

सीबीआई में दो शीर्ष अधिकारियों के बीच विवाद हुआ। दोनों ने एक दूसरे पर आरोप लगाए थे। इस विवाद की सच्चाई जानने के लिए जांच की आवश्यकता थी। ये अपने पदों पर कार्य करते रहे  और वही संस्था जांच करे, यह हास्यास्पद होता। इसलिए सरकार ने सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना। दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा। नए निदेशक की नियुक्ति की। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे गलत

राफेल के रूप में राहुल गांधी ने जो आग लगाई है, वो कांग्रेस के ही हाथ जलाएगी!

लोकसभा चुनाव नजदीक आते देख कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने आनन-फानन में राफेल के रूप में ऐसी आग सुलगाने का दुष्प्रयास किया है, जिसमें उनके व कांग्रेस के हाथ झुलसने के अलावा कुछ और परिणाम निकलता नहीं दिख रहा है। राफेल को लेकर राहुल के आरोपों में कितनी गंभीरता है, इसको समझने के लिए भारी-भरकम तथ्यों की आवश्यकता नहीं है।