वामपंथी

केरल की बाढ़ का एक बड़ा कारण कांग्रेस और वामपंथियों की वोट बैंक की राजनीति भी है!

केरल में आई भीषण बाढ़ का एक कनेक्‍शन तुष्टिकरण की राजनीति से भी जुड़ा है जिसकी ओर बहुत कम लोगों का ध्‍यान जा रहा है। केरल का सबसे बड़ा चर्च है सायरो-मालाबा कैथोलिक चर्च। केरल के पश्‍चिमी घाट पर रहने वाले ज्‍यादातर ईसाई इसी से जुड़े हैं और इनके बड़े-बड़े बागान हैं। इस चर्च ने 2013 में कम्‍युनिस्‍टों के साथ मिलकर गाडगिल समिति की सिफारिशों के

क्या मोदी के विकासवादी एजेण्डे के कारण रची जा रही थी उनकी हत्या की साजिश?

बीते सप्‍ताह प्रधानमंत्री मोदी की हत्‍या की साजिश का मामला चर्चा में रहा। यदि इस मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई होती तो इस मामले को अटकल ही समझा जाता। लेकिन अब चूंकि आरोपी पकड़े जा चुके हैं, साजिश का पत्र सामने आ चुका है, ऐसे में इस पर संदेह करने का अब कोई कारण नहीं बनता है।

यूएई की मदद का झूठ फैलाने वाले वही लोग हैं जिन्हें ‘क़यामत’ में भी सियासत दिखती है!

केरल इन दिनों बाढ़ की भीषण विभीषिका से दो-चार हो रहा है। बड़ी संख्या में लोग मृत, विस्थापित और घायल हुए हैं। केरल में वामपंथी मोर्चे की सरकार है जिसपर राज्य में भाजपा और संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या करवाने और हत्यारों को बचाने का आरोप लगता रहा है। बावजूद इसके भाजपानीत केंद्र सरकार ने बाढ़ की इस आपदा के समय बिना देरी के केरल की मदद को

वामपंथी शासन की नियति ही है तानाशाही

चीन ने शी जिनपिंग को ताउम्र राष्ट्रपति रहने का अधिकार दे दिया है। हालांकि जिस तरह से जिनपिंग को यह अधिकार मिला है, उससे सन्देह होता है कि अधिकार चीन ने दिया है या फिर जिनपिंग और उनके समर्थकों ने कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ चाइना के एकदलीय शासन में छीन लिया है। निर्बाध, ताउम्र सत्ता के लिए चीन में मतदान हुआ है और चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के 2963 सदस्यों में से 2958 सदस्यों ने शी जिनपिंग को

‘लेनिन रूस के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन भारत में उनका क्या काम !’

रूसी क्रांति के सूत्रधार व्‍लादिमीर लेनिन इन दिनों अचानक सुखिर्यों में आ गए हैं। शताब्दी पूर्व रूस की अपनी खुनी क्रांति को लेकर ख्‍यात हुआ यह व्‍यक्ति अब दोबारा चर्चाओं में है। वर्तमान परिदृश्य को समझें उससे पूर्व थोड़ा पार्श्‍व समझ लेते हैं। हाल ही में संपन्‍न हुए त्रिपुरा विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को विराट जीत प्राप्‍त हुई। अन्‍य राज्‍यों की तरह यहां भी बीजेपी ने प्रचंड विजयश्री हासिल की। जीत का जश्‍न अभी

पूर्वोत्‍तर में अबकी ‘वोट बैंक’ नहीं, ‘विकास’ की राजनीति का सिक्‍का चला है!

पूर्वोत्‍तर भारत में भारतीय जनता पार्टी को मिल रही कामयाबी के राजनीतिक मायने के साथ-साथ आर्थिक मायने भी हैं जो इस शोर में दब से गए हैं। आजादी के बाद अधिकांश सरकारों के लिए पूर्वोत्‍तर बेगाना ही रहा। उनके लिए गुवाहाटी ही पूर्वोत्‍तर का आदि और अंत दोनों था। जनजातियों में वर्गीय संघर्ष को बढ़ावा देकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने और बांग्‍लादेशी घुसपैठियों को सुनियोजित तरीके से बसाकर

नेतन्याहू भारत आए तो वामपंथियों के सीने पर सांप क्यों लोटने लगा !

विदेश नीति का मुख्य तत्व राष्ट्रीय हित होता है। अन्य तत्वों में बदलाव हो सकता है, लेकिन राष्ट्रीय हित की कभी अवहेलना नहीं होनी चाहिए। इजरायल के साथ भारत की दोस्ती राष्ट्रीय हित के अनुरूप है। ऐसे में, यह अनुचित है कि भारत के कुछ विपक्षी राजनीतिक दलों और नेताओं ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की यात्रा का विरोध किया या उनसे मिलने के तरीके पर हल्की टिप्पणी की। ऐसा करने वाले नेताओं को

जनरक्षा यात्रा : कम्युनिस्ट हिंसा को भाजपा का लोकतान्त्रिक जवाब

इसमें दो राय नहीं है कि राजनीति मौजूदा समाज का दर्पण है। समाज के प्रचलित मूल्‍य राजनीति में भी झलकते हैं। जहां तक वर्तमान राजनीति की बात है, यह उस दौर से गुजर रही है जो पहले कभी नहीं देखा गया। ऐसा प्रतीत होता है मानो भाजपा सरकार की सफलता से भयाक्रांत होकर सारे विपक्षी दल लामबंद होकर नफरत एवं हिंसा के सतही हथकंडों पर उतर आए हैं।

शांतनु की हत्या पर गौरी लंकेश की हत्या जैसा ‘शोर’ क्यों नहीं है ?

पिछले दिनों तथाकथित पत्रकार गौरी लंकेश की हत्‍या हुई, जिसकी खबरें लगातार सुर्खियों में बनी रहीं। मीडिया में लंकेश की हत्‍या से अधिक चर्चा हत्‍या को लेकर मची राजनीति पर हुई। यह शोर अभी थमा नहीं था कि बीते बीस सितम्बर को एक और पत्रकार की हत्‍या की खबर सामने आई। त्रिपुरा में एक टीवी पत्रकार शांतनु भौमिक की उस वक्‍त हत्‍या कर दी गई जब वे मंडई इलाके में दो राजनीतिक दलों के बीच मचे घमासान

प्रेस क्लब में गौरी लंकेश की हत्या पर शोक जताने की नहीं, मोदी विरोध की सभा थी !

हत्या एक जघन्य अपराध है, इसका कड़ा विरोध होना चाहिए; फिर वो चाहे कोई हो, किसी भी विचारधारा का हो, आपसे सहमत हो, ना हो और आपका धुर विरोधी ही क्यूं ना हो। पर, कर्नाटक की राजधानी बंगलुरू में खौफनाक ढंग से हुई गौरी लंकेश की हत्या के बाद जिस अंदाज में राजधानी दिल्ली से लेकर देश भर में एक माहौल बनाने की कोशिश की गई, उससे एक बार फिर असहिष्णुता का मुद्दा बनाकर अवार्ड वापसी