संघ

भारतीयता के प्रबल पक्षधर थे दत्तोपंत ठेंगड़ी

स्वदेशी आंदोलन के सुत्रधार और महान सेनानी दत्तोपंत ठेंगड़ी जी भारतीयता के सबसे बड़े पैरोकार थे। इस विषय पर वे किसी भी परिस्थिति से समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे, इसके बाद भी वह आधुनिकता के प्रबल पक्षधर थे। उनका कहना था कि ‘ऐसी आधुनिकता जो हमें हमारी जड़ों से जोड़कर रखे’ जबकि पश्चिम के अंधानुकरण के कीमत पर वो आधुनिकता को स्वीकार करने के विरुद्ध थे। भारतीय संस्कृति

विश्व की अनेक समस्याओं का एक समाधान है एकात्म मानव-दर्शन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि भारतीय चिंतन के आधार पर प्रतिपादित विचार ‘एकात्म मानवदर्शन’ ही दुनिया को सभी प्रकार के संकटों का समाधान दे सकता है। संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने हैदराबाद की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव रखा है। संघ का मानना है कि आज विश्व में बढ़ रही आर्थिक विषमता, पर्यावरण-असंतुलन और आतंकवाद मानवता के लिए गंभीर चुनौती का कारण बन रहे

आरएसएस कार्यकर्ताओं के प्रति मार्क्सवादी हिंसा पर खामोश क्यों है असहिष्णुता गिरोह ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या और उन पर जानलेवा हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है। यह घटनाएं किसी षड्यंत्र की ओर इशारा करती हैं। केरल, पंजाब, कर्नाटक और अब भाजपा शासित मध्यप्रदेश में भी संघ के कार्यकर्ता पर हमला करने की घटना सामने आई है। अभी इन घटनाओं के पीछे एक ही कारण समझ आ रहा है। संघ की राष्ट्रीय विचारधारा के विस्तार और उसके बढ़ते प्रभाव से अभारतीय

जेपी ने कहा था कि अगर संघ फासीवादी है तो जेपी भी फासीवादी हैं!

लोकनायक जय प्रकाश नारायण के बारे में आम तौर पर कहा जाता है कि वे शुरूआती दौर में रूस की क्रान्ति से प्रभावित थे। फिर गांधीवाद से प्रभावित होते हुए समाजवाद का रुख किये। जेपी के तीन हिस्से तो पहले ही कहे जा चुके है, जिसमे जेपी का रूसी क्रान्ति से प्रभावित होना एवं फिर गाँधी के सानिध्य में आकर सत्य और अहिंसा की प्रवृति में घुल मिल जाना फिर समाजवाद का रुख करना, इत्यादि कई तथ्य हैं !

राष्ट्रीयता को मजबूत करेगा ‘लोक मंथन’ : विनय सहस्त्रबुद्धे

भोपाल, 18 अक्टूबर। एक नए भारत का उदय हो रहा है। इस उदीयमान भारत की कुछ आकांक्षाएं और अपेक्षाएं हैं। यह आकांक्षावान भारत किसी प्रकार के भ्रम में नहीं है, अपने गंतव्यों के प्रति पूर्णतः स्पष्ट है। जनमानस में अब तक यह धारणा बन रही थी कि सब हमें ठगने के लिए आते हैं। यह धारणा टूट रही है। पहली बार है जब यह धारणा बन रही है कि कुछ अच्छा होगा। देश में ऐसा वातावरण बनता दिख रहा है कि

मानसिक गुलामी को हटाएगा लोक मंथन : दत्तात्रेय होसबोले

भोपाल। पिछले कुछ समय में एक खास विचारधारा के लोगों ने सुनियोजित ढंग से राष्ट्र और राष्ट्रीयता पर प्रश्न खड़े करने का प्रयास किया है। उन्होंने राष्ट्रीय विचार को उपेक्षित ही नहीं किया, बल्कि उसका उपहास तक उड़ाया है। जबकि इस खेत में खड़े किसान, कारखाने में काम कर रहे मजदूर, साहित्य सृजन में रत विचारक, कलाकार और यहाँ तक कि सामान्य नागरिकों के नित्य जीवन में राष्ट्रीय भाव प्रकट होता है।

संघ के खिलाफ गांधी की हत्या को नहीं भुनाती तो खत्म हो जाती कांग्रेस!

गांधी ह्त्या से जुड़ा एक दूसरा पक्ष अगर देखें तो गांधी की मृत्यु से सबसे अधिक लाभ कांग्रेस को ही हुआ है। यदि इस प्रकार गांधी की ह्त्या न हुई होती तो कांग्रेस इतने दिनों तक लोकप्रिय नही रही होती। कांग्रेस की रीती-नीति से खफा होकर गांधी खुद कांग्रेस के विरोध में उतर आते। कुछ लोग तो यह भी बतलाते हैं कि गांधी जी एक दो दिन के भीतर कांग्रेस विसर्जित करने की घोषणा करने वाले थे। साथ ही यह भी अन्वेषणा

पटेल ने नेहरू से कहा था, गांधी की हत्या से संघ का कोई लेना-देना नहीं!

राहुल गांधी आये दिन अपनी नासमझी के कारण कांग्रेस को मुसीबत में डालते रहते हैं। यह उनके लिए कोई नयी बात नही है, बल्कि उनकी आदत में शुमार हो चुका है। राहुल गांधी की बातों से यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें भारत के इतिहास की कोई ख़ास समझ नही है। वे केवल कुछ सुनी सुनाई बातो को बिना परखे तोते की तरह रट-रटकर बोलते रहते हैं। अपनी इसी नासमझी की वजह से राहुल गांधी को

संघ पर आरोप लगाने से हुई राहुल गाँधी की किरकिरी, सबक लें संघ विरोधी!

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को दोषी ठहराने वाले अपने एक बयान के मामले में जिस तरह अदालत में यू-टर्न लिया और पुनः ट्वीट के जरिए अपने पुराने बयान पर टिके रहने की बात दोहराते हुए डबल यू-टर्न लिया है, यह उनके कमजोर व्यक्तित्व, सुझबुझ की कमी और राजनीतिक नादानी को ही निरुपित करता है। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने 2014 में एक चुनावी जनसभा में गांधी जी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिम्मेदार ठहराया था। इससे नाराज संघ के एक

बदलाव के इस दौर में समय के साथ कदमताल करता संघ!

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रतिवर्ष दशहरे पर पथ संचलन (परेड) निकालता है। संचलन में हजारों स्वयंसेवक एक साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते जाते हैं। संचलन में सब कदम मिलाकर चल सकें, इसके लिए संघ स्थान (जहाँ शाखा लगती है) पर स्वयंसेवकों को ‘कदमताल’ का अभ्यास कराया जाता है। स्वयंसेवकों के लिए इस कदमताल का संदेश है कि हमें सबके साथ चलना है और सबको साथ लेकर चलना है।