इस्लामिक कट्टरपंथ

हिंदुत्व सह-अस्तित्ववाद की भावना पर आधारित है, यह कभी कट्टर हो ही नहीं सकता

हिंदुत्व का दर्शन ही सह-अस्तित्ववादिता पर केंद्रित है। जबकि उदार समझा जाने वाला पश्चिमी जगत प्रगति के तमाम दावों के बावजूद केवल सहिष्णुता तक पहुँच सका है।

विश्व स्तर पर मानवता के लिए खतरा बन चुका है इस्लामिक कट्टरपंथ

क्या यह सवाल पूछा नहीं जाना चाहिए कि इस्लामिक कट्टरता को वैचारिक पोषण कहाँ से मिलता है? क्यों सभी आतंकवादी समूहों का संबंध अंततः इस्लाम से ही जाकर जुड़ता है?

दो मामले जिन्होंने वामपंथी और सेक्युलर गिरोह के पाखण्ड की कलई खोल दी है!

देशभर में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों का अराजक स्वरूप जिस तरह सामने  आया है, वह हैरान करने वाला है। ऐसा कानून जिससे देश के नागरिकों का कोई संबंध ना हो, उसपर इस तरह का वातवरण खड़ा करना, मानो एक खास समूह का सब कुछ लूट गया हो, हैरतअंगेज लगता है। समूचे देश ने देखा कि विरोध प्रदर्शन के नाम पर कैसे सुनियोजित हिंसा फैलाई गई, आगजनी की गई, बसों को आग के हवाले कर दिया गया, देश को तोड़ने की बात कही गई। यहाँ

इस्‍लामी वर्चस्‍ववाद का नतीजा हैं सांप्रदायिक दंगे

इसे वोट बैंक की ताकत ही कहेंगे कि एक ओर पश्‍चिम बंगाल कई हिस्‍से सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस रहे हैं तो दूसरी ओर वहां की मुख्‍यमंत्री दिल्‍ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपदस्‍थ करने के लिए साझा मोर्चा बनाने में जुटी हैं। वोट बैंक की राजनीति के चलते स्‍थानीय प्रशासन दंगाइयों का साथ दे रहा है और दंगा पीड़ित असहाय होकर पलायन करने पर मजबूर हो रहे हैं। दंगों के कारण सबसे बुरा हाल पश्‍चिम

क्या फतवों से मुस्लिम महिलाओं के आजाद क़दमों को रोक लेंगे, मौलाना ?

देश में कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा फतवे की तानाशाही का एक माहौल बनाया जा रहा है, जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। हम देश में महिलाओं की भागदारी को प्राथमिकता देने की बात करते हैं। अगर मुट्ठीभर कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा दिए गए मुस्लिम महिलाओं पर विवादित फतवों की परवाह करेंगे तो कहीं हमारे देश का महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम पीछे न छूट जाए। मुस्लिम समाज में प्रचलित ‘तीन

ब्रिटेन में बढ़ती आतंकी धमक के लिए ब्रिटेन खुद भी कम जिम्मेदार नहीं है !

यह हमला सिर्फ इसलिए नहीं किया गया है कि ब्रिटेन ने आईएसआईएस से लड़ाई में अमेरिका का साथ दिया, बल्कि इसके पीछे इस्लामिक कट्टरपंथ से अभिप्रेरित आतंकवाद की गहरी साजिश है, जिसे स्वीकारने से पूरी दुनिया के नेता घबराते हैं। दिक्कत यही है कि दुनिया के तमाम देश अब भी इस्लामिक आतंकवाद को खुलकर स्वीकारने की बजाय आतंक का ‘कोई मज़हब नहीं होता’ की

कट्टरपंथ की बुरी नजर से कला-संस्कृति को बचाना होगा

असम के 46 मौलवियों की कट्टरपंथी सोच को 16 वर्षीय गायिका नाहिद आफरीन ने करारा जवाब दिया है। नाहिद ने कहा है कि खुदा ने उसे गायिका का हुनर दिया है, संगीत की अनदेखी करना मतलब खुदा की अनदेखी होगा। वह मरते दम तक संगीत से जुड़ी रहेंगी और वह किसी फतवे से नहीं डरती हैं। इंडियन आइडल से प्रसिद्ध हुई नाहिद आफरीन ने हाल में आतंकवाद और आईएसआईएस के विरोध में गीत गाए थे।

जश्न-ए-रेख्ता में कट्टरपंथियों ने किया तारिक फ़तेह का विरोध, खामोश क्यों हैं सेकुलर ?

बीते रविवार तो दिल्ली में जश्न-ए-ऱेख्ता खत्म हुआ । उर्दू भाषा के इस उत्सव में काफी भीड़ इकट्ठा होती है । बॉलीवुड सितारों से लेकर मंच के कवियों की महफिल सजती है । प्रचारित तो यह भी किया जाता है कि ये तरक्कीपसंद और प्रोग्रेसिव लोगों का जलसा है । होगा । लेकिन इस बार जश्न-ए-रेख्ता में जो हुआ वह इस आयोजन को और इसके आयोजकों को सवालों के घेरे में खड़ा करता है और यह साबित भी करता है कि