जी-20

मोदी सरकार द्वारा मोटे अनाजों को प्रोत्साहन से होगा किसानों का भला

हरित क्रांति के दौर में जो मोटे अनाज गरीबों की थाली तक सिमट कर रह गए थे, आज वही मोटे अनाज विदेशी मेहमानों को सोने-चांदी की थाली में परोसे जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृढ़ और दूरदर्शी नेतृत्व में प्रगति-पथ पर अग्रसर भारत

भारत को लंबे अरसे बाद मोदी के रूप में ऐसा नेतृत्व मिला है, जिसकी जनता में अद्भुत पकड़ है। उनकी मास अपील इतनी प्रभावी है कि उनके एक संदेश पर जनता संबंधित कार्य करने में जुट जाती है।

अपनी संवाद कला से लोगों का दिल जीत लेते हैं प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री मोदी बोलते हैं तो देश ही नहीं, दुनिया के कान उनके वक्तव्य पर टिके होते हैं। मोदी को चाहने वाले ही नहीं, उनके आलोचक भी अत्यंत ध्यानपूर्वक उन्हें सुनते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय संस्कृति वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु बनने की ओर अग्रसर

भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए भारत के आर्थिक विकास को देखकर अब विकसित देश भी भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं..

जी-20 शिखर सम्मेलन : सनातन संस्कृति एवं भारतीयता के प्रतीकों की चमक से चकित विश्व

जी-20 शिखर सम्‍मेलन में जिस एक बिंदु ने सर्वाधिक ध्‍यान खींचा वह है भारतीयता एवं सनातन संस्कृति के प्रतीकों को इस आयोजन का हिस्सा बनाना।

विश्व पटल पर छा रही भारतीय संस्कृति

भारत की अध्यक्षता में आज जी-20 के माध्यम से ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का भारतीय दर्शन विश्व को ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की राह दिखा रहा है।

भारतीय मूल्यों की संवाहक बन रही हैं जी-20 की बैठकें

जब भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है, उसी समय उसे विश्व के प्रभावशाली देशों के संगठन ‘जी-20’ की अध्यक्षता का अवसर प्राप्त हुआ है।

भारत की ‘डिजिटल क्रांति’ अन्य देशों के लिए बन रही है उदाहरण

जी-20 के डिजिटल इकॉनामी वर्किंग ग्रूप की दूसरी बैठक 17 से 19 अप्रेल के बीच हुई। इस बैठक में भारत को वैश्विक स्तर पर डिजिटल अर्थव्यवस्था का आधार माना गया।

क्वाड के तेवर से सहमा चीन

क्वाड का उद्देश्य प्रशांत महासागर, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया  में विस्तृत नेटवर्क के जरिए जापान और भारत के साथ मिलकर इस क्षेत्र में एक ऐसा वातावरण निर्मित करना है..

जी-20 देशों में स्वामी विवेकानंद के पदचिन्ह

विश्व बंधुत्व एवं वेदांत के प्राचीन संदेश को लेकर ही आज से लगभग 128 वर्ष पहले (1893) स्वामी विवेकानंद पश्चिम के प्रवास पर गए थे।