नेहरु

भारत की प्रगति के लिए ‘भारतीयता’ को आवश्यक मानते थे पं दीनदयाल उपाध्याय

पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जितनी समझ भारतीय संस्कृति और दर्शन की थी, उतनी ही राजनीति की भी थी। व्यक्तिगत स्वार्थ में लिप्त राजनीति पर वे हमेशा प्रहार करते थे। पंडित जी जब उत्तर प्रदेश के सह प्रांत-प्रचारक थे, उस समय उनके निशाने पर भारत सरकार की गलत नीतियों के साथ-साथ देश में फैली निराशा भी रहती थी। उस समय देश में कांग्रस की सरकार थी और उस समय देश के प्रधानमंत्री

नेहरु की गलती के कारण बलूचिस्तान पर हुआ था पाकिस्तान का कब्ज़ा!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक तथा स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण मे बलूचिस्तान मे हो रहे मानवाधिकार के उल्लघंन की चर्चा की तो दुनिया भर से बलोच नागरिकों ने प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया। इस घटना के बाद आल इंडिया रेडियो ने भी सांस्कृतिक आदान-प्रदान की दृष्टि से बलोच भाषा में जम्मू-काश्मीर से प्रसारण शुरू करने की घोषणा की। इस कदम को भी बलोचियों ने काफी सराहा, लेकिन भारत मे

संघ के खिलाफ गांधी की हत्या को नहीं भुनाती तो खत्म हो जाती कांग्रेस!

गांधी ह्त्या से जुड़ा एक दूसरा पक्ष अगर देखें तो गांधी की मृत्यु से सबसे अधिक लाभ कांग्रेस को ही हुआ है। यदि इस प्रकार गांधी की ह्त्या न हुई होती तो कांग्रेस इतने दिनों तक लोकप्रिय नही रही होती। कांग्रेस की रीती-नीति से खफा होकर गांधी खुद कांग्रेस के विरोध में उतर आते। कुछ लोग तो यह भी बतलाते हैं कि गांधी जी एक दो दिन के भीतर कांग्रेस विसर्जित करने की घोषणा करने वाले थे। साथ ही यह भी अन्वेषणा

पटेल ने नेहरू से कहा था, गांधी की हत्या से संघ का कोई लेना-देना नहीं!

राहुल गांधी आये दिन अपनी नासमझी के कारण कांग्रेस को मुसीबत में डालते रहते हैं। यह उनके लिए कोई नयी बात नही है, बल्कि उनकी आदत में शुमार हो चुका है। राहुल गांधी की बातों से यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें भारत के इतिहास की कोई ख़ास समझ नही है। वे केवल कुछ सुनी सुनाई बातो को बिना परखे तोते की तरह रट-रटकर बोलते रहते हैं। अपनी इसी नासमझी की वजह से राहुल गांधी को

जब नेहरु सत्ता में थे तब आजादी की एक जंग लड़ रहा था ‘जनसंघ’

आज जब हम आजादी की सत्तरवीं सालगिरह मना रहे हैं तो हमें ये भी याद रखना चाहिए कि भारत कोई एक दिन में आजाद भी नहीं हुआ था। आज जिस भूभाग को हम नक़्शे पर देखते हैं वो 1947 में बनना शुरू हुआ था। धीरे धीरे करीब 15 साल का समय बीतने के बाद, हमारे उस नक़्शे ने अपनी वो शक्ल ली जिसे हम आज देखते हैं।

स्वतंत्र भारत की पहली राजनीतिक चूक थी पटेल की बजाय नेहरू का प्रधानमंत्री बनना!

आज देश 70वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। लेकिन देश में यह पुरानी बहस चलती रहती है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के स्थान पर अगर सरदार बल्लभ भाई पटेल प्रधानमंत्री बने होते तो आज देश की तस्वीर क्या होती? बड़ी संख्या में लोगों की ऐसी धारणा है कि अगर ऐसा हुआ होता तो न तो आज कश्मीर समस्या रहती और न ही तब चीन द्वारा भारत पर आक्रमण की जुर्रत की जाती।