पाठ्यक्रम

भ्रामक इतिहास को सुधारने की स्वागतयोग्य पहल

अच्छी बात यह है कि एनसीईआरटी सहित सीबीएसई एवं अन्य बोर्डों ने इतिहास के पाठ्यक्रम में सकरात्मक बदलाव की पहल तेज कर दी है।

हिंदी के विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत

सन् 1990 ई. में हिंदी में औपचारिक नामांकन हुआ. बी.ए, एम.ए, एम.फिल, पीएच. डी. फिर अध्यापन। समय बदला, देश का मिजाज बदला, पर हिंदी के विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम का स्वर नहीं बदला। वही प्रलेस, जलेस-मार्का कार्यकर्ता-अध्यापक लोग, वही पात्रों के वर्ग-चरित्र की व्याख्याएँ, वही द्वन्द्व खोजने की वृत्ति बनी रही। बदलने के नाम पर यौनिकता, लैंगिकता, स्त्री-देह और जातिवाद पर शोध करने को बढ़ावा देने की वृत्ति बढ़ी।