भारत बंद

मुद्दाहीन विपक्ष की बौखलाहट का परिणाम है कृषि कानूनों का विरोध

कोरोना जैसी आपदा के समय में भी जिस तरह सरकार ने व्यवस्था को यथासंभव संभाले रखा है और जनता में विश्वास बना रहा है, उससे विपक्ष बुरी तरह से बौखलाया हुआ है।

भारत बंद से माल्या तक, नेशनल हेराल्ड से ध्यान भटकाने के लिए क्या-क्या करेगी कांग्रेस!

बीता सप्‍ताह सिलसिलेवार सियासी घटनाक्रमों का साक्षी रहा। अव्‍वल तो भगोड़े कारोबारी विजय माल्‍या की लंदन स्थित कोर्ट में पेशी के दौरान उसका यह सनसनी फैलाने वाला बयान कि वह देश छोड़ने से पहले वित्‍त मंत्री अरुण जेटली से मिला था, सुर्ख़ियों में रहा। हालांकि जेटली ने तुरंत ही माल्‍या के बयान का खंडन करके बेसिर पैर की अफवाहों, अटकलों को वहीं रोक दिया लेकिन

पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर भारत बंद करने वाली कांग्रेस पहले अपने गिरेबां में तो झांके!

वेनेजुएला की राजनीतिक उथल-पुथल, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध, मुद्रा बाजार की उठा-पठक जैसे कारणों से कच्‍चे तेल की कीमतों में तेजी ने देश के सत्‍ताच्‍युत व जनाधार विहीन नेताओं को ऑक्‍सीजन देने का काम किया है। इन नेताओं से सबसे अहम सवाल यह है कि जब वे सत्‍ता में थे तब उन्‍होंने घरेलू तेल उत्‍पादन बढ़ाने, वैकल्‍पिक ईंधन के विकास, तेल की बचत जैसे दूरगामी

कांग्रेस का भारत बंद तो विफल रहा ही, इसके बहाने विपक्षी एकजुटता की मंशा भी हुई फुस्स!

बंद का आह्वान करना राजनीतिक दलों का लोकतान्त्रिक अधिकार है, लेकिन बंद के नाम पर हिंसा करना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। आज जब कांग्रेस के नेतृत्व में दर्जन भर पार्टियों ने बंद का आयोजन किया तो लक्ष्य यही था कि पेट्रोल उत्पादों की बढ़ती कीमत के बारे में सरकार पर दबाव बनाया जाए।