राजनीतिक हिंसा

राष्ट्रीय नेता बनने का मोह छोड़ बंगाल की कानून व्यवस्था पर ध्यान दें ममता बनर्जी!

बंगाल का शासन ही ममता बनर्जी के राजनीतिक कद के निर्धारण की एकमात्र कसौटी है, जिसपर फिलहाल तो वे बुरी तरह से विफल नजर आ रही हैं।

पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा बताती है कि राज्य में ममता बनर्जी की जमीन खिसक रही है

हम चुनाव के आंकड़ों में देख सकते हैं कि पश्चिम बंगाल में लगातार भारतीय जनता पार्टी सुदृढ़ होती जा रही है। मतलब साफ़ है कि जनता परिवर्तन चाहती है।

हिंसा ममता बनर्जी को रास आ सकती है, सोनार बांग्ला का स्वप्न देखने वाली बंगाल की जनता को नहीं

जिस पश्चिम बंगाल ने शांति निकेतन के माध्यम से पूरे विश्व को शांति का सन्देश दिया था, आज वह बंगाल ममता सरकार में बम की आवाज से दहल रहा है।

बंगाल की दुर्दशा पर चुप रहिये, क्योंकि यहाँ ममता बनर्जी का ‘सेकुलर शासन’ है!

ममता बनर्जी सरकार के राज में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा आम होती जा रही है। आए दिन भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे हैं।

अगर वाकई में कहीं लोकतंत्र खतरे में है, तो वो है बंगाल में !

हर दिन देश का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग मोदी सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगाता है कि वर्तमान सरकार में  लोकतंत्र खतरे में आ चुका है, लेकिन यही बुद्धिजीवी वर्ग कांग्रेस द्वारा न्यायपालिका, चुनाव आयोग को निशाना बनाने  पर चुप्पी साध लेता है। इस बुद्धिजीवी वर्ग के बारे में तो जितना कहा जाए उतना कम है, लेकिन अगर वास्तव में कहीं लोकतंत्र खतरे में है, तो वो है बंगाल में।

’18 साल की उम्र में बीजेपी के लिए काम करोगे तो यही हश्र होगा’

भारत जैसे विविधताओं से भरे महान लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक हत्याओं के मामले जब सामने आते हैं, तो निश्चित तौर पर यह लोकतंत्र को मुंह चिढ़ाने वाली बात होती है। राजनीतिक हत्याएं न केवल भारत के विचार–विनिमय  की संस्कृति को चोट पहुँचाने वाला विषय हैं, बल्कि यह सोचने पर मज़बूर भी करती हैं कि राजनीति में अब सियासी भाईचारे की जगह बची है अथवा