लोक मंथन

लोक मंथन : परंपरा और जीवन-शैली का हमारे चिंतन पर पड़ता है प्रभाव

भारतीय संस्कृति का दर्शन और अवधारणा हमेशा से ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की रही है। सदियों से हम इसी परंपरा का निर्वाह करते आ रहे। इसी भावना ने हमें अस्त-व्यस्त भी किया, लेकिन हमारी भावना गलत नहीं थी। इसलिए हजारों आक्रमणों को झेलने के बाद भी हम चट्टान की तरह खड़े हैं। लोकमंथन का दूसरा दिन भी इसी के इर्द-गिर्द रहा, जहां भारतीयता से लेकर आधुनिकता और बाजारवाद सभी विषयों पर वृहद

लोक मंथन : सनातन धर्म ही है भारतीयता की प्राणवायु

दुनिया की हर सभ्यता का विकास और उसका संचार मंथन से ही होता है। सभ्यताएं भी इसी से जीवित और गतिमान रहती है। मंथन भारतीय परंपरा का भी हिस्सा रहा है। पौराणिक कथाओं और उपनिषदों में ऐसे हजारों उदाहरण मिल जाएंगे। प्रायः मंथन से हर बार देश और समाज को नयी दिशा मिलती है और वह समाज अथवा देश दोगुने उत्साह से अपने कर्म पथ पर आगे बढ़ता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता की

भोपाल में आयोजित लोकमंथन से एक नई राह की उम्मीद

समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में कार्यरत युवा एक होकर, एक मंच पर आकर अगर राष्ट्र सर्वोपरि की भावना के साथ देश के संकटों का हल खोजें तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती है। भोपाल में 12 से 14 नवंबर को तीन दिन के लोकमंथन नामक आयोजन की टैगलाइन ही है-“’राष्‍ट्र सर्वोपरि’ विचारकों एवं कर्मशीलों का राष्‍ट्रीय विमर्श।” जाहिर तौर पर एक सरकारी आयोजन की इस प्रकार की भावना

लोक मंथन : अतीत की शिक्षाओं से उज्ज्वल भविष्य के निर्माण का प्रयास

आगामी 12, 13 और 14 नवंबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में लोक मंथन कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। जैसा कि इस आयोजन का नाम अपने विषय में स्वयं ही बता रहा है, लोक के साथ मंथन। किसी भी समाज की उन्नति में विचार-विमर्श एवं चिंतन का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है और जब इस मंथन में लोक शामिल हो जाता है तो वह उस राष्ट्र के भविष्य के लिए सोने पर सुहागा सिद्ध होता है। लेकिन, यहाँ

लोक मंथन : लोक का अर्थ, मंथन की परंपरा और राष्‍ट्रीय आयोजन

मंथन भारत का आधारभूत तत्‍व है, इसलिए विमर्श के बिना भारत की कल्‍पना भी की जाएगी तो वह अधूरी प्रतीत होगी। यहां लोकतंत्र शासन व्‍यवस्‍था की सफलता का कारण भी यही है कि वेद, श्रुति, स्‍मृति, पुराण से लेकर संपूर्ण भारतीय वांग्‍मय, साहित्‍य संबंधित पुस्‍तकों और चहुंओर व्‍याप्‍त संस्‍कृति के विविध आयामों में लोक का सुख, लोक के दुख का नाश, सर्वे भवन्‍तु सुखिन: और जन हिताय-जन सुखाय की भावना ही

राष्ट्रीयता को मजबूत करेगा ‘लोक मंथन’ : विनय सहस्त्रबुद्धे

भोपाल, 18 अक्टूबर। एक नए भारत का उदय हो रहा है। इस उदीयमान भारत की कुछ आकांक्षाएं और अपेक्षाएं हैं। यह आकांक्षावान भारत किसी प्रकार के भ्रम में नहीं है, अपने गंतव्यों के प्रति पूर्णतः स्पष्ट है। जनमानस में अब तक यह धारणा बन रही थी कि सब हमें ठगने के लिए आते हैं। यह धारणा टूट रही है। पहली बार है जब यह धारणा बन रही है कि कुछ अच्छा होगा। देश में ऐसा वातावरण बनता दिख रहा है कि