शहरी नक्सलवाद

मोदी राज में बेनकाब होते शहरी नक्सली

नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद ऐसे संगठनों व व्यक्तियों की पहचान होने लगी है तथा इनके विदेशी चंदे स्रोतों को  नियंत्रित करने के लिए जरूरी कदम उठाए गए हैं।

गौतम नवलखा का वर्तमान ही नहीं, अतीत भी डरावना है

न्याय का रास्ता भले ही कानून से तय होता है किंतु इसकी बुनियाद ‘भरोसे’ पर टिकी होती है। यानी न्याय प्रणाली में आस्था रखने वालों को यह भरोसा होता कि जो भी निर्णय आएगा वो उचित और नैतिक होगा। अगर यह भरोसा टूट जाए तो क्या न्याय व्यवस्था चल पाएगी भले ही कानून कितने ही ‘अनुकूल’ क्यों न हों?

यूएपीए : नकाब में छिपे आतंकियों और नक्सलियों को बेनकाब करने वाला क़ानून

आतंकी हों या नक्सली, इन्हें नैतिक समर्थन उन तथाकथित पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोगों से भी मिलता रहता है, जो शहर के ऐशो-आराम में रहकर देश की आत्मा पर आघात करते रहते हैं। वैसे तो ऐसे ज़्यादातर लोगों की खुद-ब-खुद पहचान हो चुकी है कि ये एक ख़ास वैचारिक गुट के सिपाहसालार हैं,

यूँ ही नहीं कहा जा रहा कि नक्सलियों की समर्थक है कांग्रेस!

गत 3 नवम्बर को कांग्रेस नेता राज बब्बर ने एक बयान में नक्सलियों को क्रांतिकारी बताया जिसपर काफी हंगामा मचा। हालांकि बाद में उन्होंने इस बयान पर सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान का कुछ और मतलब था, लेकिन बात तो निकल चुकी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बयान के संदर्भ में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए छत्तीसगढ़ की एक चुनावी रैली में कहा कि कांग्रेस शहरी

वामपंथी कार्यकर्ताओं की नजरबंदी बढ़ने से साबित होता है कि पुणे पुलिस के आरोप बेदम नहीं हैं!

भीमा कोरेगांव हिंसा, प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश और शहरी नक्सलवाद के मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की अहम सुनवाई हुई। इसमें शीर्ष कोर्ट ने नक्‍सली संबंध के आरोपी वामपंथी कार्यकर्ताओं को खासा झटका देते हुए इनकी नजरबंदी की मियाद भी बढ़ा दी और एसआईटी जांच की मांग भी सिरे से खारिज कर दी। कोर्ट के निर्णय के बाद महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री

शहरी नक्सल : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में देश-विरोधी मंसूबों को अंजाम देने वाला गिरोह!

भारत शुरू से ही एक उदार प्रकृति का देश रहा है, सहनशीलता इसकी पहचान रही है और आत्मचिंतन इसका स्वभाव। लेकिन जब किसी देश में उसकी उदार प्रकृति का ही सहारा लेकर उसमें विकृति उत्पन्न करने की कोशिशें की जाने लगें, और उसकी सहनशीलता का ही सहारा लेकर उसकी अखंडता को खंडित करने का प्रयास किया जाने लगें तो आवश्यक हो जाता है कि वह