शाहीन बाग

दो मामले जिन्होंने वामपंथी और सेक्युलर गिरोह के पाखण्ड की कलई खोल दी है!

देशभर में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों का अराजक स्वरूप जिस तरह सामने  आया है, वह हैरान करने वाला है। ऐसा कानून जिससे देश के नागरिकों का कोई संबंध ना हो, उसपर इस तरह का वातवरण खड़ा करना, मानो एक खास समूह का सब कुछ लूट गया हो, हैरतअंगेज लगता है। समूचे देश ने देखा कि विरोध प्रदर्शन के नाम पर कैसे सुनियोजित हिंसा फैलाई गई, आगजनी की गई, बसों को आग के हवाले कर दिया गया, देश को तोड़ने की बात कही गई। यहाँ

शाहीन बाग : क्या मुस्लिम महिलाएँ और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार हैं?

सीएए को कानून बने एक माह से ऊपर हो चुका है लेकिन विपक्ष द्वारा इसका विरोध अनवरत जारी है। बल्कि गुजरते समय के साथ विपक्ष का यह विरोध “विरोध” की सीमाओं को लांघ कर हताशा और निराशा से होता हुआ अब विद्रोह का रूप अख्तियार कर चुका है। शाहीन बाग का धरना इसी बात का उदाहरण है। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए ये दल किस हद तक जा सकते हैं