सुकमा

नक्सलियों के पैरोकार वामपंथी बुद्धिजीवियों को बेनकाब करने की ज़रूरत

इस देश के तथाकथित व्यवस्था विरोधी बुद्धिजीवी नक्सलियों के रोमांटिसिज्म से ग्रस्त हैं और नक्सलियों के वैचारिक समर्थन को जारी रखने की बात करते हैं । उन्हें नक्सलियों के हिंसा में अराजकता नहीं बल्कि एक खास किस्म का अनुशासन नजर आता है । नक्सलियों की हिंसा को वो सरकारी कार्रवाई की प्रतिक्रिया या फिर अपने अधिकारों के ना मिल पाने की हताशा में उठाया कदम करार देते हैं ।

नक्सलगढ़ की छाती पर सवार हो रही सड़कें

इस बात में कोई संदेह नहीं कि सड़कें धीमी गति से ही सही, नक्सलगढ़ की छाती पर सवार हो रही हैं और परिवेश बदल रहा है। भय का वातावरण सड़कों के आसपास से कम होने लगा है। रणनीतिक रूप से पहले एक कैम्प तैनात किया जाता है, जिसे केंद्र में रख कर पहले आस-पास के गाँवों में पकड़ को स्थापित किया जाता है। आदर्श स्थिति निर्मित होते ही फिर अगले पाँच किलोमीटर पर एक और