कूटनीतिक जीत के संकेत

उमेश चतुर्वेदी

इसी साल पांच मार्च को जब ओबामा प्रशासन ने पाकिस्तान को आठ एफ-16 विमान देने की अधिसूचना जारी की तो भारतीय उपमहाद्वीप की ही अंतरराष्ट्रीय F-16-2नीति में भूचाल नहीं आया, बल्कि अमेरिकी राजनीति की भी त्योरियां ओबामा प्रशासन की तरफ चढ़ गईं। यह भारतीय राजनय की जीत है या फिर आतंकवाद को लेकर अमेरिकी मन में खौफ, कि अमेरिकी सांसदों ने एफ-16 देने के ओबामा प्रशासन के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। और इस अभियान का असर भी दिखने लगा है। पाकिस्तान के तरफ से इस तरह के बयान आने लगे हैं कि अगर अमेरिका पाकिस्तान को एफ-16 विमान नहीं देता है तो इसका जिम्मेदार भारत है। क्योंकि वह नहीं चाहता कि अमेरिका-पाक के बीच यह सौदा हो।

वहीं दूसरी तरफ, अमेरिकी संसद के ऊपरी सदन सीनेट ने ओबामा प्रशासन के इस फैसले पर रोक लगाकर ह्वाइट हाउस से इस फैसले की समीक्षा की मांग की गई है। यहां सिर्फ याद दिलाना जरूरी है कि अमेरिकी संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति के महत्वपूर्ण और नीतिगत फैसले सीनेट की मंजूरी के बाद ही लागू किए जा सकते हैं।

पाकिस्तान को करीब 70 करोड़ डॉलर यानी करीब 3500 करोड़ रुपये के आठ एफ-16 विमान देने का विरोध पांच मार्च को ही किया था। ह्वाइट हाउस से जारी अधिसूचना के तुरंत बाद भारत के विदेश मंत्रलय ने भारत में अमेरिकी राजदूत को तलब करके अपनी चिंता जाहिर कर दी थी। भारत ने तर्क दिया था कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ इन विमानों का कितना उपयोग करेगा, इस पर ठीक-ठीक कहना तो आसान नहीं है, लेकिन यह जरूर है कि वह भारत के खिलाफ इसका जरूर इस्तेमाल करेगा। पाकिस्तान को अमेरिका ने ये विमान आतंकवाद के खिलाफ अभियान छेड़ने में मदद के नाम पर ओबामा प्रशासन ने देने का फैसला किया है। इसमें शक भी नहीं है कि पाकिस्तान आतंकवाद से जूझ रहा है। लेकिन पठानकोट के एयरबेस पर हमले के बाद दोनों देशों में माहौल तनावपूर्ण जरूर हो गया है। हाल ही में हार्ट ऑफ एशिया कार्यक्रम में भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों की बात बिना नतीजे के ही सम्पन्न हुई। पाकिस्तान ने जहां एक बार फिर कश्मीर को दोनों देशों के बीच रिश्तों को कोर मुद्दा बताया तो वहीं भारत ने अजहर को सौंपने की मांग की। भारत जहां कश्मीर को अपना अंदरूनी मामला मानता है, वहीं अजहर को भारत को सौंपने को पाकिस्तान तैयार ही नहीं है। अगर वह अजहर को भारत को सौंपने का निर्णय कर भी लेता है तो उसकी सेना को अपनी जमीन और हैसियत खिसकती नजर आएगी, फिर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मानने को मजबूर होना पड़ेगा कि वह आतंकवाद का निर्यात पड़ोसी देशों में करता रहा है। ऐसे में यह मानने का कोई कारण नहीं है कि पाकिस्तान की ताकतवर सेना इन विमानों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने की कोशिश नहीं करेगा। भारत के इस तर्क से अमेरिका सांसद मैट सैल्मन भी सहमत हैं। उन्होंने कांग्रेस में सुनवाई के दौरान साफ कहा कि उनके साथ-साथ कांग्रेस के कई सदस्यों को एफ 16 पाकिस्तान को देने के फैसले और बिक्री के समय पर गंभीर सवाल हैं। सांसद ने तर्क दिया कि भारत एवं पाकिस्तान के बीच तनाव अब भी बढ़ा हुआ है। अहम बात यह है कि अमेरिका-पाक के इस सामरिक सौदे का मसला अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ फॉरेन अफेयर्स समिति की एशिया एवं प्रशांत मामलों की उप समिति में भी उठा। इस उपसमिति की ओर से अमेरिकी में कांग्रेस में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मुद्दे पर आयोजित सुनवाई के दौरान सैल्मन के साथ कई अन्य सांसदों ने सहमति जताई जबकि अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान के विशेष अमेरिकी प्रतिनिधि रिचर्ड ओल्सन ने ओबामा प्रशासन का प्रतिनिधित्व किया।

अतीत में जिस तरह भारत के बरक्स पाकिस्तान को लेकर अमेरिका में एकतरफा माहौल रहता रहा है, एफ-16 सौदे के खिलाफ उठे अमेरिकी कांग्रेस में सवालों के बाद यह परिपाटी भी टूटी है। तो क्या यह माना जाए कि यह भारतीय राजनय की कोशिशों का नतीजा है या अमेरिका का आतंक को लेकर अपने अतीत का अनुभव है। निश्चित तौर पर दोनों ही बातें इसके पीछे है। मोदी की नई सरकार ने जिस तरह की विदेश नीति ने अख्तियार की है, उसमें न तो समर्पण है और ना ही आक्रामकता। अपना पक्ष मजबूत तकोर्ं के साथ रखना और नए विकल्प तैयार रखना मोदी सरकार की खासियत है। फिर न्यूयार्क पर आतंकी हमले और मध्य पूर्व में आतंक के खिलाफ अमेरिकी सेना की कार्रवाई और उससे उपजे विनाश और कूटनीतिक नुकसान को अमेरिकी सांसद देख-समझ रहे हैं। इसके साथ ही भारत की छवि एक ऐसे देश और बाजार के रूप में बन रही है, जिसके यहां विकास की अपार संभावनाएं मौजूद है।

भारत-पाक के बीच जारी तनाव के माहौल में भारतीय हितों को नकारना आसान नहीं होगा। शायद यही वजह है कि एक और सांसद ब्रैड शर्मन ने कहा कि उन्हें यह सोचने की जरूरत है कि पाकिस्तान को मुहैया कराई गई सैन्य सहायता और जो एफ-16 लड़ाकू विमान हैं, वे कम खर्चीले हैं या नहीं। शर्मन ने सवाल उठाया कि क्या यह आतंकवादियों के खिलाफ पाकिस्तानी वायु सेना के लिए सबसे प्रभावी तरीके के साथ भारत एवं पाकिस्तान के बीच शक्ति संतुलन के लिए बहुत कम विध्वंसक हथियार प्रणाली होगी। शर्मन ने अमेरिकी कांग्रेस में कहा कि अमेरिका को पाकिस्तान को ऐसे अत्याधुनिक हथियार आतंकवादियों की तलाश के लिए देने की जरूरत है, न कि भारत के खिलाफ युद्ध के लिए। सैल्मन ने सुनवाई के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रतिनिधि ओल्सन से पाकिस्तान को दिए जाने वाले एफ-16 विमानों के मूलभूत उद्देश्य और बिक्री के समय पर स्पष्टीकरण मांगते हुए पूछा भी कि कैसे यह अमेरिका के बेहतर हित में है। शर्मन ने ओबामा प्रशासन को ताकीद करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने आतंकवाद का राय के हथियार के रूप में और आतंकी परोक्ष समूह के तौर पर इस्तेमाल किया है ताकि उसकी सेना भारत में घातक हमले कर सके। भारत के लिए राहत की बात है कि उप समिति की अध्यक्ष इलियाना रोजलेटिनेन ने भी पाकिस्तान को एफ-16 की बिक्री पर चिंता जाहिर की है।

अब देखना यह है कि ओबामा प्रशासन पाकिस्तान को इन विमानों को देने के फैसले पर अड़ा रहता है या फिर सीनेट के दबावों के आगे झुकता है। वैसे भी यह अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनावी साल है। आमतौर पर डेमक्रेटिक उम्मीदवारों को भारतीय मूल के अमेरिकी वोटरों का समर्थन यादा मिलता रहा है। अगर ओबामा प्रशासन जिद्द ठान लेता है तो ओबामा की डेमक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के लिए राष्ट्रपति चुनाव की राह की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। पाकिस्तान से हताशा भरे आ रहे बयानों से ऐसा लग रहा है कि भारत के विरोध को अमेरिका ने गंभीरता से लिया है और ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि सीनेट और सांसदों की शंकाओं के आगे अमेरिका अपना रूख बदलेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह लेख २१ मई को दैनिक जागरण में प्रकाशित  हुआ था )