सेना को बदनाम करने वाले बेनकाब हुए

रमेश ठाकुर

अलगाववादी और उनके समर्थकों ने सैनिकों पर मनगढ़ंत आरोप लगाकर कश्मीर जैसे संवेदनशील राय की फिजां बिगाड़ने की कोशिश की है। अभी कुछ समय पहले ही जेएनयू कांड के कन्हैया कुमार ने सैनिकों पर रेप के झूठा आरोप लगाया था। इस आरोप से हमारी सेना ऊबरी भी नहीं थी कि एक बार फिर से छेड़खानी के नाम पर कश्मीर में अलगाववादियों ने उन्माद फैलाने की कोशिश की है। लेकिन जिस लड़की को मोहरा बनाया गया और यह सब किया गया। उसने अब सार्वजनिक तौर पर सचाई बताकर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। लेकिन अभी असल सचाई का आना बाकी है। आखिर क्यों अलगाववादी और उनके समर्थक महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री बने रहना नहीं देखना चाहते हैं। उनके सीएम पद संभालते ही राय में तनाव की स्थिति बनाए रखना चाहते हैं। लेकिन इस समय वहां जो कुछ भी हो रहा है वह अमन शांति के लिहाज से अछे संकेत नहीं है। उन्मादी लोगों के इस कृत्य से पूरी सेना दागदार हो रही है। जो नहीं होना चाहिए। यह भी महत्वपूर्ण है कि यह साजिश ऐसे वक्त अंजाम दी गयी, जब लगभग तीन महीने के राजनीतिक उठाकपटक के बाद बाद जम्मू-कश्मीर को लोकतांत्रिक सरकार मिली और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती केन्द्र सरकार से विचार के लिए दिल्ली गयी थीं।

विगत दिनों हंदवाड़ा में एक सैनिक द्वारा स्कूली छात्र से छेड़छाड़ की कथित घटना के बाद कश्मीर में तनाव और टकराव शुरू हुआ। चौंकाने वाली बात यह भी है कि वह स्कूली छात्र ने स्वयं पुलिस और मजिस्ट्रेट के समक्ष दिये बयान में सैनिक द्वारा छेड़छाड़ का खंडन कर चुकी है। लेकिन क्या उससे पहले भी कानूनी प्रक्रिया का तकाजा यही नहीं था कि सचाई सामने आने का इंतजार किया जाता। आरोप की जांच होती और रिपोर्ट में आरोप की पुष्टि होने के बाद दोषी के विरुद्ध कठोर कार्रवाई होती। लेकिन ऐसा नहीं किया गया, क्योंकि एक तो आरोप मनगढ़ंत था और मंसूबे इस संवेदनशील राय की फिजां बिगाड़ने की थी। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह उग्र भीड़ द्वारा सुरक्षा बलों को निशाना बनाया गया है और जवाबी कार्रवाई में मौतें भी हुई हैं, उससे लगता है कि अलगाववादी और उनके समर्थक अपने मंसूबों में कुछ हद तक कामयाब भी रहे हैं।

अलगाववादी और उनके समर्थकइस कृत्य से पूरी तरह से एक्पोज हो चुके हैं। उनकी मंशा सभी के सामने आ चुकी है।

यह चिंताजनक स्थिति है कि कभी सीमा पार प्रायोजित आतंकी और घुसपैठिये अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते हैं तो कभी राय में मौजूद अलगाववादी और मुट्ठी भर समर्थक। इस सुनियोजित खेल का खमियाजा पूरे राय को भुगतना पड़ता है। मामला सीमावर्ती संवेदनशील राय का है, इसलिए केंद्र सरकार को भी इस स्थिति पर विशेष निगरानी रखनी चाहिए। सीमा पार प्रायोजित आतंकवाद और घुसपैठ निश्चय ही एक बड़ी चुनौती है, जिससे सुरक्षा के साथ-साथ राजनयिक मोर्चे पर भी निपटना होगा। लेकिन जिस तरह राय में बात-बात पर सुरक्षा बलों के विरुद्ध माहौल बनाया जाता है, उसे भी गंभीरता से लेने की जरूरत है। एनआइटी विवाद ठीक से सुलझा भी नहीं था कि हंदवाड़ा प्रकरण सामने आया।

अलगाववादी और उनके समर्थक क्या चाहते हैं ये किसी से छिपा नहीं है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि अब राजनीतिक दल भी उनके कृत्यों में शामिल होने लगे हैं। राय की अशांत स्थिति के मद्देनजर सेना को प्राप्त विशेष अधिकारों की समाप्ति की मांग अकसर की जाती रही है। ऐसी घटनाओं के बाद वह मांग और मुखर सकती है। दूसरे जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभालने वाली महबूबा को शुरू से ही दबाव में लाकर केंद्र से टकराव के लिए प्रेरित किया जाये। अलगाववादी ऐसी भी सोच सकते हैं। दरअसल, राय में अलगाववादियों का तो एक निहित स्वार्थी वर्ग है ही, राजनीतिक दल भी ऐसी घटनाओं का लाभ उठाने की कोशिश करने से बाज नहीं आते। इसी के चलते ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को बल मिलता है, लेकिन बिगड़ते हालात का तकाजा है कि राय के हितैषी होने का दम भरने वाले कम से कम ऐसे खेल का तो हिस्सा न बनें। उपरोक्त घटना से सरकार को सचेत हो जाना चाहिए। इस तरह की अफवाह फैलाने वालों पर सख्ती से पेश आना चाहिए। जब तक सख्ती नहीं दिखाई जाएगी। तब तक उनके हौसले इसी तरह बुलंद रहेंगे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)