अनुच्छेद-370 हटने के बाद बदल रही जम्मू-कश्मीर की तस्वीर

जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से यहां विकास के द्वार खुल गए हैं। अनुच्छेद-370 हटने के एक महीने बाद ही जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुबई में निवेशकों से वार्ता कर रहे थे, तो उन्‍होंने इसी क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए यहां सबसे पहले निवेश के लिए आमंत्रण दिया। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में खाली पड़े पदों को भरा जा रहा है। पिछले एक साल में यहां कई नियुक्तियां भी हुईं हैं और उन्‍हें सीधे सातवें वेतनमान का लाभ भी दिया गया है।

5 अगस्‍त को जम्मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 हटाए जाने को एक साल पूरा होगा। संयोग से इसकी पहली वर्षगांठ पर अयोध्‍या में बहुप्रतीक्षित श्रीराम मंदिर का भूमिपूजन भी होने जा रहा है। यानी यह दिन धार्मिक और संवैधानिक दोनों दृष्टियों से महत्‍वपूर्ण रहने वाला है।

जहां तक अनुच्‍छेद 370 की बात है, इसे लेकर अब सारी चर्चाएं केवल दो ही बिंदुओं पर आधारित हो गईं हैं। 370 हटाए जाने के पहले और बाद। यह ठीक वैसा ही है जैसे आज समाजशास्‍त्री, इतिहासकार 1947 के पहले और बाद के भारत को अलग स्‍वरूपों में देखकर पृथकीकरण करते हैं और उस आधार पर विचार व्‍यक्‍त किए जाते हैं।

जम्मू-कश्‍मीर को लेकर भी ऐसा ही है। 5 अगस्‍त के पहले कश्‍मीर क्‍या था, कैसा था, इस पर तो दशकों से बहुत कुछ कहा-सुना और लिखा-पढ़ा गया है, लेकिन अब अधिक सार्थक 5 अगस्‍त के बाद के कश्‍मीर पर बात करना है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि इस एक साल में कश्‍मीर की छवि इसकी पूर्ववर्ती छवि से विपरीत बनी है। जो क्षेत्र विध्‍वंस, पिछड़ेपन का पर्याय बन गया था, वह अब प्रगति के सोपान चढ़ रहा है। सबसे मुख्‍य बदलाव तो ध्‍वज और संविधान का था। कश्‍मीन पुर्नगठन का बिल लोकसभा में पारित होने के बाद अब जम्‍मू-कश्‍मीर एवं लद्दाख में भारत का ध्‍वज और संविधान लागू हो गया है।

जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए प्रतिबद्ध नजर आ रही मोदी सरकार (सांकेतिक चित्र, साभार : India Today)

जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख को केंद्र शासित राज्‍य बनाए जाने से यहां विकास के द्वार खुल गए हैं। अनुच्छेद-370 हटने के एक महीने बाद ही जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुबई में निवेशकों से वार्ता कर रहे थे, तो उन्‍होंने इसी क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए यहां सबसे पहले निवेश के लिए आमंत्रण दिया।

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में खाली पड़े पदों को भी भरा जा रहा है। पिछले एक साल में यहां कई नियुक्तियां भी हुईं हैं और उन्‍हें सीधे सातवें वेतनमान का लाभ दिया गया है।

अनुच्छेद-370 हटने के एक महीने बाद ही राज्य की 4,483 पंचायतों को 366 करोड़ रूपये दिए गए। वहीं सरपंचों को प्रति महीने 2,500 रूपये की प्रोत्साहन राशि और पंचों को 1 हज़ार रूपये की प्रोत्साहन राशि देने का भी फैसला लिया गया।

इसके अतिरिक्त एडीबी की मदद से 150 मिलियन की लागत से जम्मू और श्रीनगर में हर घर तक 24 घंटे पीने का पानी पहुंचाने की योजना पर काम जारी है। श्रीनगर में 2024 तक मेट्रो शुरू कर देने का निर्णय भी अनुच्छेद-370 हटने के तुरंत बाद ही लिया गया। ऐसे बहुत से निर्णय अनुच्छेद-370 समाप्त होने के महीने भर के भीतर ही सरकार ने लिए जो जम्मू-कश्मीर की तस्वीर बदलने वाले हैं।

अभी एक महीने पहले यानी जून में ही केंद्र सरकार ने लद्दाख क्षेत्र में सड़क निर्माण में रत निजी, शासकीय, आउटसोर्स, अनुबंधित सभी प्रकार के कर्मचारियों को जबर्दस्‍त वेतनवृद्धि की सौगात दी। इनका वेतन 70 से 110 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया। कहा जा सकता है कि लद्दाख का आर्थिक, कार्मिक उन्‍नयन अब सरकार का स्‍वयं का ध्‍येय है।

जम्मू-कश्मीर में बीडीसी चुनाव (साभार : DD News)

जम्मू-कश्मीर में सरकारी अधिकारियों और पुलिस सेवा के लोगों को एलटीसी, एचआरए, हेल्थ स्कीम जैसी सुविधाएं नहीं मिलती थीं, जबकि अन्य केंद्र शासित प्रदेशों को ये सेवाएं दी जाती हैं। अब ये सारी सुविधाएं यहां भी दी जाने लगी हैं।

असल में अनुच्छेद 370 और 35ए ने कश्‍मीर को सिवाय आतंकवाद और खून-खराबे के कुछ नहीं दिया और ये क्षेत्र विकास के क्रम में बहुत पीछे रह गया था। यह सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार का माद्दा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुरुषार्थ है कि उन्‍होंने भगीरथ प्रयासों से इस पूरे अंचल को विकास की मुख्‍य धारा में शामिल कर दिया है। मोदी सरकार की गुड गवर्नेंस की बात कोई जुमला नहीं, एक व्‍यवहारिक सत्‍य है जो इस प्रकरण से पुष्‍ट होता है।

अनुच्‍छेद 370 हटाए जाने के दो माह बाद यानी अक्‍टूबर, 2019 में जम्‍मू कश्‍मीर, लेह और लद्दाख में जब ब्‍लॉक डेवलपमेंट काउंसिल (BDC) चुनाव हुए तो कोई हिंसा की घटना सामने नहीं आई। यह लोकतंत्र में लोगों के अटूट विश्वास और महत्व को दर्शाता है। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना इसलिए भी थी, क्‍योंकि 1947 में देश को मिली आजादी के बाद पहली बार जम्‍मू कश्‍मीर में ऐसा हुआ था।

इसी वर्ष 1 फरवरी को केंद्र सरकार ने जब अपना बजट पेश किया तो पूरे देश की निगाहें उस पर थीं। लोग जानना चाहते थे कि जम्‍मू-कश्‍मीर व लद्दाख के लिए सरकार के पिटारे में क्‍या है। संसद में जब वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में जम्‍मू-कश्‍मीर को 30 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक राशि विकास योजनाओं के लिए दिए जाने की घोषणा की तो विदेशी मीडिया तक में यह चर्चा का विषय बना।

नये केंद्र शासित प्रदेश बने लद्दाख को भी पहली बार आम बजट में स्वतंत्र रूप से 5,958 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई। जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित हिस्सों में बांटे जाने के बाद केंद्र सरकार का यह पहला बजट था।

सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए 30,757 करोड़ रूपये की राशि का बजटीय प्रावधान करते हुए यह साबित कर दिया कि वो इन दोनों नये केंद्र शासित प्रदेशों के चौतरफा विकास के लिए प्रतिबद्ध है। इसके अतिरिक्त जम्मू व कश्मीर में एक-एक एम्स की स्थापित करने का काम भी जारी है। इन सब चीजों के बीच वे तमाम अलगाववादी एवं उग्रवादी ताकतें जो कश्‍मीर को हिंसा में आग में झोंककर खुद का उल्‍लू सीधा करती आ रही थीं,  अचानक बैकफुट पर आ गईं हैं।

अभी बस एक साल ही गुजरा है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 से मुक्ति के बाद बदलाव के बेहतर संकेत मिल रहे हैं। निश्चित रूप से आने वाले समय में देश का यह सूबा विकास के नए आयाम स्थापित करेगा और तब जम्‍मू-कश्‍मीर व लद्दाख के बाशिंदे अपने जनकवि पंडित दीनानाथ कौल की इन पंक्तियों को याद करके नए अर्थ पाएंगे – ‘हमारा वतन खिलते हुए शालीमार बाग जैसे, हमारा वतन डल झील में खिलते हुए कमल जैसा, नौजवानों के गर्म खून जैसा, मेरा वतन, तेरा वतन, हमारा वतन, दुनिया का सबसे प्यारा वतन।’

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)