चुनाव परिणामों के बाद हिंसा और अराजकता की आग में जलता बंगाल

आज हर देशवासी के मन में यह पीड़ा है कि आखिर बंगाल का नागरिक होकर हिन्दुओं ने व भाजपा कार्यकर्ताओं ने क्या कोई अपराध कर दिया है जो उनके साथ यह हो रहा है। कोरोना महामारी की विभीषिका के समानांतर हिंसा की आग में झुलसता बंगाल आज दूसरी बड़ी समस्‍या बन गया है जिसका त्वरित और ठोस समाधान आवश्यक है।

बीती 2 मई को बंगाल सहित पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित हुए। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को बहुमत मिला और इस दल के पास सत्‍ता में बने रहने का रास्‍ता साफ हो गया। लेकिन यह क्‍या! चुनावी नतीजों की तस्‍वीर स्‍पष्‍ट होते ही शाम से बंगाल में अचानक हिंसा का नंगा नाच शुरू हो गया। मानो गुंडों को बंगाल में अराजकता का लाइसेंस मिल गया हो।

भाजपा के कार्यालयों में आगजनी, कार्यकर्ताओं पर हमला, उन्‍हें घर से खींचकर बाहर निकाला जाना, उनकी हत्‍या करना और महिलाओं, बच्‍चों पर अत्‍याचार किए जाने की वारदातें परिणाम आने के बाद से ही चल रही हैं। इन हिंसा की घटनाओं पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बंगाल सरकार से रिपोर्ट मांगी है लेकिन हालात तो ऐसे हैं कि यहां तुरंत राष्‍ट्रपति शासन लगाए जाने की नौबत प्रतीत होती है।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने रविवार शाम को चुनाव बाद हिंसा को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा। पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम में कई घरों और दुकानों में तोड़फोड़ की गई। भाजपा कार्यालय में भी तोड़फोड़ की कोशिश की गई। भाजपा के पार्टी कार्यालय में आग लगा दी गई। भाजपा ने टीएमसी के कार्यकर्ताओं पर इसका आरोप लगाया है, जबकि टीएमसी ने इससे इन्कार किया है। टीएमसी भले इनकार करें, लेकिन यह समझना मुश्किल नहीं कि ये सब किसके इशारे पर हो रहा है।

चुनावी परिणाम क्‍या आए, अराजक तत्‍वों की टोली यहां खुलेआम गुंडागिर्दी और मारकाट पर उतारु हो गई है। क्‍या यह भीषण नरसंहार, यह रक्‍तपात जीत का जश्‍न है। ममता बनर्जी अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के चलते हिंदुओं पर जुल्‍म ढाती आ रही हैं और चुनावी जीत ने इस नफरत की आग में घी का काम कर दिया है।

अब कतिपय गुंडे और अधिक निरंकुश होकर उत्‍पात मचा रहे हैं। शायद यह ममता सरकार का विधान है कि चुनाव जीत जाओ तो अन्‍य दलों के कार्यकर्ताओं पर हमले करवा दो, उनकी महिलाओं से दुष्‍कर्म करो, उनकी हत्‍याएं करो, उनके घरों में आग लगा दो।

भाजपा लोकसभा सहित राज्यों के भी अनेक चुनाव जीती है, लेकिन जीत के बाद कभी कोई हिंसा नहीं हुई। भाजपा और टीएमसी में यही तो अंतर है। पूरा देश जीतकर भी भाजपा ने तो अपने विरोधियों को कोई नुकसान नहीं पहुचांया।

भला यह कैसे संभव है कि किसी राज्‍य में खुलेआम एक धर्म विशेष की ही जनता को टारगेट करके उस पर हिंसा की जाए और राज्‍य सरकार चुप रहे। यह मौन सहमति भी तो हो सकती है। यह आपराधिक मौन भी तो हो सकता है। लेकिन जंगलराज बन चुके बंगाल में कानून व्‍यवस्‍था जैसे शब्‍द अब मजाक बनकर रह गए हैं। ममता बनर्जी के कानों पर तो जूं रेंगने से रही इसीलिए राज्‍यपाल जगदीप धनखड़ स्‍वयं आगे आए हैं और उन्‍होंने बीड़ा उठाते हुए दो दिनों से चल रहे नरसंहार का संज्ञान लिया है।

उन्‍होंने पुलिस के उच्‍च अधिकारियों को समन जारी करते हुए गृह सचिव से भी रिपोर्ट मांगी है। धनखड़ ने ममता बनर्जी से इस मामले में तुरंत एक्‍शन लेने को कहा है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा बंगाल का दौरा कर हताहत कार्यकर्ताओं के परिजनों से मिले हैं। साथ ही भाजपा इस हिंसा के विरोध में राष्ट्रव्यापी धरना कर रही है।

जिस तरह का माहौल बंगाल में है वह तो 1947 के सांप्रदायिक दंगों की तस्‍वीर पेश कर रहा है। उसी तर्ज पर हिंदुओं को निशाना बनाकर नष्‍ट किया जा रहा है। सवाल ये उठ रहा कि क्या कश्‍मीर की तरह बंगाल से भी या तो हिंदुओं को इसी प्रकार नष्‍ट कर दिया जाएगा या वे पलायन पर मजबूर हो जाएंगे ?

आज हर देशवासी के मन में यह पीड़ा है कि आखिर बंगाल का नागरिक होकर हिन्दुओं ने कोई अपराध कर दिया है जो उनके साथ यह हो रहा है। कोरोना महामारी की विभीषिका के समानांतर हिंसा की आग में झुलसता बंगाल आज दूसरी बड़ी समस्‍या बन गया है जिसका त्वरित और ठोस समाधान आवश्यक है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)