जनजातियों को गौरव दिलाने के साथ-साथ विकास की मुख्य धारा से भी जोड़ रही मोदी सरकार

अब तक राजनीतिक दलों व सरकारों के लिए जनजातीय लोग वोट बैंक से अधिक नहीं थे। चुनावों में विकास के नाम पर वोट मांगे गए लेकिन सत्ता हासिल होते ही जनजातीय समुदाय को अगले चुनाव तक भुला दिया जाता था। यही स्थिति आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले जनजातीय नायकों की रही। ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी कांग्रेस विशेषकर गांधी परिवार की कुटिल चाल व छद्म सेकुलरिज्म की भेंट चढ़ गए। अब  मोदी सरकार उन्हें सम्मान दे रही है।

जनजातियों और उनके नायकों को सम्मान देने के लिए आजादी के बाद देश में पहली बार जनजातीय गौरव दिवस आयोजित किया गया। इसके लिए बिरस मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर को चुना गया। मुंडा विद्रोह के नेतृत्वकर्ता बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1870 में हुआ। 1 अक्टूबर 1894 को बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडाओं ने अंग्रेजों से लगान माफी के लिए आंदोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ्तार करके 2 वर्ष की सजा दी गई।

जेल से छूटने के बाद उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र क्रांति (उलगुलान) का आह्वान किया जो 1900 में उनकी गिरफ्तार तक जारी रहा। जेल में दी गई यातनाओं के कारण 1900 में ही उनकी मृत्यु हो गई। उनके योगदान को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंबेडकर जयंती, गांधी जयंती और इसी तरह के अन्य दिनों की तरह भगवान बिरसा मुंड की जयंती हर साल 15 जनवरी को मनाने का एलान किया।

आजाद भारत में यह पहली बार हुआ जब ऐसे आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित किए गए जो अब तक स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक रहे हैं। रानी दुर्गावती, रानी गैडिनल्यू, तिलका मांझी जैसे सैकड़ो आदिवासी नायक हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई में खुद को कुर्बान कर दिया लेकिन इतिहास की पुस्तकों में उन्हें वह जगह नहीं मिली जिसके वे  हकदार थे। मोदी सरकार अब उस अधूरे काम को पूरा कर रही है।

साभार : PIB

इसके तहत आजादी के पहले के 85 से अधिक आदिवासी आंदोलनों की पहचान की गई है। अब इन आंदोलनों और इनके नायकों का सम्मान किया जा रहा है। मोदी सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है कि आज आदिवासियों की कला संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को गर्व से याद किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री का मुख्य बल जनजातीय कारीगरों, जनजातीय उत्पादकों, उनके उत्पादों और आजीविका कार्यक्रमों पर है। इसके तहत जनजातीय उत्पादों के अनुसंधान व डिजाइन में सुधार कर उनका मूल्यवर्द्धन किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि जनजातीय लोग मेरा वन-मेरा धन-मेरा उद्यम में विश्वास करते हैं। इसी को देखते हुए मोदी सरकार जनजातीय लोगों के कौशल, कला, शिल्प को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है।

जनजातीय विकास को बढ़ावा देने के लिए जनजातीय मंत्रालय के बजट आवंटन में भरपूर बढ़ोत्तरी की गई है। 2013 में मंत्रालय का बजट 21,525 करोड़ रूपये था जो 2021 में 78,256 करोड़ रूपये हो गया। जनजातीय बहुल जो जिले कांग्रेसी शासन में विकास की दौड़ में पिछड़ गए थे उन्हें विकास की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए 100 जनपदों में आकांक्षी जिला कार्यक्रम शुरू किया गया है। आकांक्षी जिला कार्यक्रम को संयुक्त राष्ट्र ने भी सराहा है। इसे स्थानीय क्षेत्र विकास का सफल मॉडल करार देते हुए दूसरे देशों को इसका अनुसरण करने को कहा है।

सरकार का लक्ष्य जनजातियों का सशक्तीकरण है। यह तभी संभव होगा जब जनजातियों के उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक बने और उनकी बेहतर कीमत मिले। जनजातीय लोगों के उत्पादों को प्लेटफार्म देने और उनके उत्पादों को आसानी से लोगों तक पहुंचाने के लिए आदि महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। ट्राइफेड जनजातियों उत्पादों को खरीदकर उनकी बिक्री अपने ट्राइब्स इंडिया शो रूम के जरिए करता है। अब तक देश भर में 134 शोरूम खोले जा चुके हैं।

ट्राइब्स इंडिया ऑन व्हील योजना के तहत मोबाइल वैन के जरिए आदिवासियों के खेतों व वनोपज से तैयार आर्गनिक उत्पाद को देश भर में ग्राहकों तक पहुंचाया जा रहा है। इसकी बिक्री से जो भी कमाई होती है वह आदिवासियों के बैंक खातों में जमा कर दी जाती है।

वन धन योजना के तहत 1800 उत्पादों को शामिल किया गया है। जनजातियों के 90 उत्पादों को एमएसपी पर खरीदा जा रहा है। 52000 स्वयं सहायता समूह बनाए जा चुके हैं। वन धन के 3011 क्लस्टर बनाए गए हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में देश का पहला ट्राइबल फूड पार्क बनाया जा रहा है। जनजातीय लोगों के उत्पादों को स्टोर करने के लिए देश भर में 3000 गोदाम बनाए जा रहे हैं।

जनजातीय लोगों के उत्पादों की बाजार तक आसान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ट्राइफेड व बिग बास्केट के बीच समझौता हुआ। इससे बिग बास्केट प्लेटफार्म पर प्राकृतिक वन धन उत्पादों के प्रचार और बिक्री की जाएगी। समग्रत: मोदी सरकार न केवल जनजातियों को उनका गौरव वापस दिला रही है बल्कि उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ रही है ताकि वे बाजार अर्थव्यवस्था के साथ कदम ताल कर सकें।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)