एससीओ की सदस्यता से पाकिस्तान को घेरने के लिए भारत को मिला एक और मंच

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ के सदस्य देशों के सामने आतंकवाद का मुद्दा उठाया। अपने संबोधन में उन्‍होंने भारत को सदस्य चुनने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि आंतकवाद मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है और इससे हमे मिलकर निपटना होगा। उन्‍होंने ये भी कहा कि आतंकवाद मानव अधिकारों और मानव मूल्यों के सबसे बड़े उल्लंघनकारियों में से एक है। जब तक आतंकियों को पनाह, ट्रेनिंग, फंडिंग और आतंक के लिए प्रेरित करने पर लगाम नहीं लगाई जाती, इसका समाधान मिलना असंभव है। स्पष्ट है कि इन बातों के जरिये प्रधानमंत्री ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान  और उसके द्वारा प्रेरित आतंकवाद पर ही निशाना साधा है।

कजाकिस्‍तान की राजधानी अस्‍ताना में शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ मुख्‍यालय पर हुए शिखर सम्‍मेलन के कई निहितार्थ निकले हैं। इसकी सबसे अहम और प्राथमिक बात तो यह है कि एससीओ में स्‍थाई सदस्‍यता मिलने के बाद भारत के पास एक ऐसा अंतरराष्‍ट्रीय मंच मिल गया जहां वह पाकिस्‍तान द्वारा फैलाए जा रहे आतंकवाद की जानकारी सदस्‍य देशों को देने की स्थिति में है। केवल इतना ही नहीं, इसका सदस्‍य बनने के बाद भारत अन्‍य सदस्‍य देशों से पाकिस्‍तान में मौजूद आतंकी गुटों पर प्रतिबंध लगाने की कवायद भी कर सकता है। अगर ऐसा करने में भारत कामयाब हो पाया तो यह भारत के लिए बड़ी उपलब्धि होगी और वह इसको आधार बनाकर संयुक्‍त राष्‍ट्र में भी इसी तरह की पेशकश कर सकेगा।

इसके साथ ही, यह भी अहम बिंदु है कि इस मंच पर क्‍योंकि द्विपक्षीय मुद्दों को नहीं उठाया जा सकता है, लिहाजा हर मौके पर कश्‍मीर के मुद्दे का अंतरराष्‍ट्रीयकरण करने वाले पाकिस्‍तान के लिए यह मुश्किलों भरा साबित होगा। लेकिन, यदि हम इस वृहद मंच को भारत व पाक के नजरिये से न देखकर दीगर परिदृश्‍य में देखें तो यह और भी महत्‍वपूर्ण मालूम पड़ेगा। वास्‍तव में इस खास मंच पर भारत की प्रभावी मौजूदगी एवं भागेदारी भारत की वैदेशिक नीतियों के संदर्भ में निर्णायक भी है।

यदि इस मंच के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि इस मंच की बुनियाद ही देशों के बीच व्‍यापारिक संबंध मजबूत करने और आतंकवाद को खत्‍म करने का लक्ष्य ध्यान में रखकर बनी थी। वर्ष 1996 से 2001 तक इसका नाम शंघाई फाइव था। उसी दौरान उजबेकिस्तान को शामिल करने के बाद इसका नाम बदलकर शंघाई कॉपरेशन कर दिया गया।

इसमें अब अफगानिस्तान, बेलारूस, इरान और मंगोलिया बतौर पर्यवेक्षक शामिल हैं; वहीं डॉयलॉग पार्टनर में अर्मेनिया, अजरबेजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की शामिल हैं। व्यापार के अलावा शंघाई कॉपरेशन का अहम मकसद आतंकवाद और अलगाववाद का जड़ से खत्मा करना है। इसकी स्‍थायी सदस्‍यता पाना भारत के लिए विश्‍व मंच पर एक बड़ी उपलब्धि है।

चूंकि चीन इस संगठन का अध्‍यक्ष है, इसलिए यह माना जा रहा था कि पाकिस्‍तान के पक्ष में बोलने वाला चीन इस बार सम्‍मेलन में निश्चित ही भारत के लिए कटुता पैदा करेगा। ज्ञातव्‍य है कि चीन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश में रोड़े अटकाता रहा है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के बीच सकारात्‍मक भेंट हुई जिसमें दोनों नेताओं ने कुछ मसलों पर चर्चा की, वहीं दूसरी तरफ अप्रत्‍याशित रूप से जिनपिंग ने पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलने से इंकार कर दिया। इस उपेक्षा के पीछे चीन की स्‍वयं की नाराजगी एक वजह बताई जा रही है।

बलूचिस्तान में दो चीनी शिक्षकों की हत्या के प्रति नाराजगी व्यक्त करने के लिए चीनी राष्ट्रपति ने यह अप्रत्याशित कदम उठाया। चीन के सहायक विदेश मंत्री कोंग शुनयोऊ ने भारत और पाकिस्तान से अपने द्विपक्षीय मामलों को एससीओ के मंच पर न उठाने के लिए कहा। इसके पीछे तर्क दिया गया कि इससे समूह के माहौल पर असर पड़ेगा। कोंग ने कहा, एससीओ के नियम अन्‍य मंचों की तुलना में अलग हैं। संगठन, सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ाने वाले विषयों को उठाता है, न कि किन्हीं दो देशों के आपसी मतभेद पर चर्चा करता है। भारत ने अपनी ओर से पूरा जोर देते हुए कहा कि संगठन के देशों के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए उनकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का ध्यान रखा जाना आवश्यक है। आतंकवाद और कट्टरता से लड़कर ही आपसी सहयोग को मजबूत किया जा सकता है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदस्य देशों के सामने आतंकवाद का मुद्दा उठाया। अपने संबोधन में उन्‍होंने भारत को सदस्य चुने जाने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि आंतकवाद मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है और इससे हमे मिलकर निपटना होगा। उन्‍होंने कहा कि आतंकवाद मानव अधिकारों और मानव मूल्यों के सबसे बड़े उल्लंघनकारियों में से एक है। जब तक आतंकियों को पनाह, ट्रेनिंग, फंडिंग और आतंक के लिए प्रेरित करने पर लगाम नहीं लगाई जाती, इसका समाधान मिलना असंभव है।

स्पष्ट है कि उक्त बातों के जरिये प्रधानमंत्री ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान  और उसके द्वारा प्रेरित आतंकवाद पर निशाना साधा है। चीन में भारत के राजदूत विजय गोखले ने कहा, हम एससीओ क्षेत्र में संपर्क के साधन बढ़ाए जाने के पक्षधर हैं। इसी से आपसी व्यापार भी बढ़ेगा। लेकिन इसके लिए हमें सदस्य देशों की संप्रभुता का भी ध्यान रखना होगा। उन्होंने कहा, आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत व्यावहारिक सहयोग का पक्षधर है, जिसमें सभी का प्रत्यक्ष फायदा हो।

इस संगठन में भारत के साथ पाकिस्‍तान भी सदस्‍य बना है, लेकिन इस अहम मंच की सदस्‍यता के लिए भारत ने लंबा संघर्ष किया है। 12 वर्षों के इंतजार के बाद भारत को इसकी सदस्‍यता मिली है। वर्ष 2005 में भारत ने इसकी सदस्‍यता के लिए आवेदन किया था। इससे पहले चीन, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, रूस, तजाखिस्तान, उजबेकिस्तान इसके स्थाई सदस्य थे। इसका सदस्‍य बनने के बाद भारत के विदेश व्‍यापार में इजाफा होने के पूरे आसार हैं।

उम्‍मीद की जा सकती है कि भारत शंघाई सहयोग संगठन के सदस्‍य देशों के साथ व्‍यापारिक व कूटनीतिक संबंध सुदृढ़ करके वैश्विक मंच पर न केवल अपनी सशक्‍त मौजूदगी दर्ज कराएगा, बल्कि गाहे-बगाहे पाकिस्‍तान की आतंकवादी गतिविधियों को भी विश्‍व के सामने लाकर उसे बेनकाब करेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)