एक गौभक्त दलित की हत्या को कैसे खा गये सेक्युलर, पचा गयी थी मीडिया!

विश्व हिन्दू परिषद की एक स्टीरियोटाइप की छवि मीडिया ने बनाई है। जिसमें इस संगठन से जुड़े व्यक्ति के हाथ में तलवार होना अनिवार्य है। मीडिया द्वारा इनका चित्र ऐसा उकेरा गया है कि सिर पर भगवा कपड़ा बांधे, हाथ में भगवा ध्वज लिए जो युवक खड़ा होगा जिसके दूसरे हाथ में तलवार हो, वो विश्व हिन्दू परिषद का ही होगा। उसके बाद ही वह मीडिया में विश्व हिन्दू परिषद का कार्यकर्ता माना जाएगा। एक बात और उसके सिर पर तिलक होना भी जरूरी है। बीते समय में दो बड़े मामले सामने आए जिसने मीडिया की इस स्टीरियोंटाइप बनाई हुई छवि को तोड़ा लेकिन इसकी चर्चा कथित मुख्य धारा की मीडिया में नहीं हुई। 

विश्व हिन्दू परिषद की जो तस्वीर अखबार और पत्रिकाओं में प्रकाशित होती है, उसे देखकर एक आम आदमी यह अनुमान लगा सकता है कि यह सवर्णो का संगठन है। जबकि यह पूरा सच नहीं है। इस संगठन के साथ बड़ी संख्या में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग जुड़े हैं। यह सच है कि विश्व हिन्दू परिषद का हिस्सा होने के बाद उनकी पहचान सवर्ण, पिछड़ा और दलित की नहीं रह जाती और वे सभी हिन्दू हो जाते हैं। यह संगठन की ‘समरसता’ का परिणाम है। मीडिया में यह बात ठीक प्रकार से आ नहीं पाती और जो भी सड़क पर हाथ में रॉड लेकर और सिर पर भगवा ध्वज पहन कर खड़ा हो जाए या सेब्सिटीन डिसूजा जैसे बड़े फोटो पत्रकार द्वारा खड़ा कर दिया जाए। उस व्यक्ति की पहचान विश्व हिन्दू परिषद के नेता के तौर पर ही होती है। जैसी पहचान 2002 के दंगे में सड़क किनारे रहकर जूते सिलने का काम करने वाले अशोक भाई परमार की हुई। अशोक भाई घटना के चौदह साल बाद भी चीख चीख कर कह रहे हैं कि उनका विश्व हिन्दू परिषद से कोई ताल्लूक नहीं है। यदि वे विश्व हिन्दू परिषद के इतने बड़े नेता होते तो सड़क किनारे सोने को मजबूर नहीं होते। उनके पास सिर छुपाने को छत भी नहीं है। लेकिन वे गुजरात 2002 के दंगों के पोस्टर बॉय जरूर बना दिए गए।

अरुण माहौर की हत्या के बाद पूरे उत्तर प्रदेश का बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद का कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं होगा जो अरूण माहौर के घर ना आया हो। समाजवादी पार्टी में मंत्री विपुल पुरोहित और कांग्रेस के जिलाध्यक्ष दुष्यंत शर्मा भी परिवार को सांत्वना देने पहुंचे। यह दुर्भाग्यपूण था कि उत्तर प्रदेश में दलितों की राजनीति करने वाली और दलितों की वजह से मुख्यमंत्री बनी मायावती की पार्टी से एक स्थानीय कार्यकर्ता भी अरूण माहौर के घर नहीं आया। आगरा में ही यह जानकारी मिली कि अरूण माहौर के परिवार से दूर रहने का निर्देश लखनऊ से बसपा सुप्रीमों मायावती ने ही जारी किया था। मतलब मायावती राजनीति तो छूआछूत मुक्त भारत की करती हैं लेकिन एक दलित एक्टिविस्ट से इसलिए छूआछूत बरतती है क्योंकि वह दलित विश्व हिन्दू परिषद का बड़ा पदाधिकारी था ?

अभी बहुत लम्बा समय नहीं हुआ है आगरा के दलित एक्टिविस्ट अरूण कुमार माहौर की हत्या का। जिनकी हत्या आगरा में दिन दहाड़े मंदिर से निकलते हुए कर दी गई थी। स्व माहौर विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष थे। दलित एक्टिविस्ट माहौर ने संकल्प लिया था कि पूरे आगरा शहर में गाय की हत्या को पूरी तरह बंद कराएंगे। उत्तर प्रदेश में गौ हत्या पर प्रतिबंध हैं, उसके बावजूद चोरी छीपे या कहें कि कुछ भ्रष्ट पुलिस-प्रशासन के नुमाइंदों की जानकारी में गौ हत्या आगरा में जारी थी। गौ हत्या माफियाओं ने जब यह समझ लिया कि अरूण माहौर के जीते जी शहर में उनका कारोबार चल नहीं पाएगा तो उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद के दलित एक्टिविस्ट की हत्या कर दी।

अरूण माहौर आगरा में दलित समाज के उत्थान के लिए काम कर रहे थे। स्व माहौर के परिवार के लोग बताते हैं कि वे रात को दो बजे भी किसी का फोन आ जाए तो घर का दरवाजा बाहर से बंद करके मदद के लिए निकल जाते थे। विश्व हिन्दू परिषद के किसी नेता की छवि समाज में इस तरह की होगी, इस संबंध में जो लोग मीडिया रिपोर्ट पढ़कर किसी व्यक्ति या संगठन में राय बनाते हैं, उन्हें निराशा ही होगी। अरुण कुमार माहौर की हत्या के बाद दलित गर्जना न्याय मोर्चा के आह्वाहन पर हुए शोक सभा में स्व. माहौर के प्रशंसक और उनके परिचित लगभग बीस हजार की संख्या में उपस्थित हुए। इससे आप दलित, पीड़ित और वंचित समाज में अरुणजी की लोकप्रियता का अनुमान लगा सकते हैं।

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जैसाकि यह सर्वविदित है कि दलित एक्टिविस्ट अरुण कुमार माहौर विश्व हिन्दू परिषद के नेता थे। वैसे दलित एक्टिविस्ट अरुण कुमार माहौर के साथ सबसे उपेक्षा का व्यवहार दलितवादी कहे जाने वाली राजनीतिक पार्टी और कुछ संगठनों ने ही किया। ये संगठन और राजनीतिक पार्टी बाबा साहब की तस्वीर अपने आयोजनों में लगाती है लेकिन उनका बाबा साहब के आदर्शों से अधिक सरोकार मालूम नहीं पड़ता। क्योंकि बाबा साहब जिस छूआछूत और भेदभाव के खिलाफ पूरी जिन्दगी लड़ते रहे, उसी भेदभाव और छूआछूत का बर्ताव उत्तर प्रदेश में कुछ अम्बेडकरवादी संगठनों और अम्बेडकरवादी राजनीतिक पार्टी ने अरूण माहौर के साथ किया।

पूरे उत्तर प्रदेश का बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद का कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं होगा जो अरूण माहौर के घर ना आया हो। समाजवादी पार्टी में मंत्री विपुल पुरोहित और कांग्रेस के जिलाध्यक्ष दुष्यंत शर्मा भी परिवार को सांत्वना देने पहुंचे। यह दुर्भाग्यपूण था कि उत्तर प्रदेश में दलितों की राजनीति करने वाली और दलितों की वजह से मुख्यमंत्री बनी मायावती की पार्टी से एक स्थानीय कार्यकर्ता भी अरूण माहौर के घर नहीं आया। आगरा में ही यह जानकारी मिली कि अरूण माहौर के परिवार से दूर रहने का निर्देश लखनऊ से बसपा सुप्रीमों मायावती ने ही जारी किया था। मतलब मायावती राजनीति तो छूआछूत मुक्त भारत की करती हैं लेकिन एक दलित एक्टिविस्ट से इसलिए छूआछूत बरतती है क्योंकि वह दलित विश्व हिन्दू परिषद का बड़ा पदाधिकारी था ? 

अरूण कुमार माहौर के साथ 25 फरवरी को क्या हुआ था। इस संबंध में दलित गर्जना न्याय मोर्चा के संयोजक और आगरा के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कोटिया बताते हैं- गौ रक्षक एवं दलित एक्टिविस्ट अरूण कुमार माहौर की सुबह लगभग पौने ग्यारह बजे मंदिर से लौटते हुए पांच लोगों ने योजनाबद्ध तरिके से हत्या की। इस मामले में पांच लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है, जिनके नाम हैं- राजा, शाहरूख, इम्तियाज, दिलशान और आबिद।’ अरूण के पोस्टमार्टम के समय में आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल के अधिकारी, स्थानीय सांसद, विधायक, जिलाधिकारी, एसपी मौके पर पहुंचे। मंत्री राम शंकर कठेरिया भी वहां आए। इन सबकी उपस्थिति में शासन की तरफ से पन्द्रह लाख रुपए की सहायता राशि का चेक अरूण के परिवार को दिया गया।

हत्या के दो दिन पहले राजा ने अरूणजी को धमकी दी थी कि गौ हत्या के मामले में शिकायत करना बंद कर दो। यदि यह चलता रहा तो अंजाम बूरा होगा। इस संबंध में स्थानीय थाने को भी अरूण ने जानकारी दी थी लेकिन उनकी तरफ से इस धमकी को गम्भीरता से नहीं लिया गया। अरूण के भाई विनोद कुमार के अनुसार- तीन साल पहले भी उनकी दूकान में अज्ञात लोगों ने आग लगाई थी। यह आग बाहर से लगाई गई और योजना बनाकर लगाई गई है, इस बात में हमें संदेह इसलिए नहीं था क्योंकि आग लगने के बाद पन्द्रह से बीस मिनट में हम घटना स्थल पर पहुंच गए थे। यदि आग खुद लगी होती तो पन्द्रह मिनट में पूरी दुकान राख ना हुई होती। गौ हत्या के खिलाफ दलित अरूण की सक्रियता ने उन्हें गौ हत्या के माफिया के टारगेट पर ला खड़ा किया था। कई बार ऐसा हुआ कि उन्हें जानकारी मिली कि एक गाड़ी से गाय लेकर आगरा से कुछ लोग गुजर रहे हैं। वे फौरन अपने साथियों के साथ उस गाड़ी की तलाश में निकल जाते थे। मेटाडोर से गाय ले जाते हुए इस मामले जिस शख्स राजा की गिरफतारी हुई है, उसे भी घटना से तीन दिन पहले अरूणजी ने रोका था। यह जानकारी अशोक कोटिया ने दी।
इस बात को आगरा में तमाम गौ सेवक खुलकर कह रहे हैं कि पूरे उत्तर प्रदेश में गाय को काटने वालों को संरक्षण अखिलेश यादव की सरकार ने दे रखा है। इसकी वजह से गौ कशी उत्तर प्रदेश में जारी है और गौ हत्या के खिलाफ खड़े एक दलित सामाजिक कार्यकर्ता की जान चली गई। अरूण के समर्थक और प्रशंसक अब मांग कर रहे हैं कि उनके परिवार को पचास लाख रुपए, एक व्यक्ति को नौकरी और रहने के लिए एक घर दिया जाए।