ये मुसलमानों का तुष्टिकरण करने वाली नहीं, उनके समग्र विकास के लिए काम करने वाली सरकार है !
भले ही उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी अपने सेवाकाल के आखिरी दिन मुसलमानों में असुरक्षा और घबराहट की भावना की बात कही हो, लेकिन स्वयंभू गोरक्षकों की छिटपुट गतिविधियों को छोड़ दिया जाए तो पूरे देश में अमन-चैन कायम है। 2014 के लोक सभा चुनाव के पहले विरोधी नेताओं ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ जिस प्रकार का नकारात्मक माहौल बनाया था, वह निर्मूल साबित हुआ। सत्ता में आने के बाद से ही मोदी
‘भारत छोड़ो आंदोलन में पूरा देश अंग्रेजों को खदेड़ने में जुटा था और वामपंथी उनके साथ खड़े थे’
जो वामपंथी आज राष्ट्रवाद का लबादा ओढ़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं, उन वामपंथियों की सोच राष्ट्रीय भावनाओं से अलग ही नहीं एकदम विपरीत रही है। भारतीय इतिहास वामपंथियों की राष्ट्रविरोधी कथनी-करनी के उदाहरणों से भरा पड़ा है। देश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान उस लड़ाई को कमजोर करने की वामपंथियों द्वारा भरसक कोशिश की गयी। दूसरे शब्दों में कहें
केजरीवाल की राष्ट्रीय नेता बनने की निरर्थक महत्वाकांक्षा ने ‘आप’ को पतन की ओर धकेल दिया है !
दिल्ली पर राज कर रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के लिए 23 अगस्त को होने वाला बवाना विधानसभा उप चुनाव एक इम्तिहान से कम नहीं है। एक के बाद एक कई चुनाव हारने के बाद अपनों की बगावत और केजरीवाल की छवि पर हो रहे चौतरफा हमले के कारण इस चुनाव का महत्व बहुत बढ़ गया है।
ये आंकड़े बताते हैं कि गरीबों तक बैंक पहुँचाने में कामयाब रही मोदी सरकार !
सैद्धांतिक रूप से ही भले ही बैंकों को गरीबों का हितैषी कहा जाता हो लेकिन व्यावहारिक धरातल पर बैंकों का ढांचा अमीरों के अनुकूल और गरीबों के प्रतिकूल रहा है। देश में गरीबी की व्यापकता एवं उद्यमशीलता के माहौल में कमी की एक बड़ी वजह यह भी है। 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद यह उम्मीद बंधी थी कि अब बैंकों की चौखट तक गरीबों की पहुंच बढ़ेगी लेकिन वक्त के साथ यह उम्मीद धूमिल पड़ती गई।
नाखून कटाकर शहीद बनने का नाटक कर रही हैं मायावती
“यदि मैं सदन में दलितों की बात नहीं उठा सकती तो मुझे सदन में रहने का अधिकार नहीं।” यह कहते हुए मायावती ने राज्य सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उपर से देखने पर मायावती के इस्तीफे में बलिदान की भावना नजर आती है, लेकिन यदि इसका विश्लेषण किया जाए तो यह सियासी वजूद मिट जाने के भय से उठाया गया कदम नजर आएगा।
इजरायल से हुए कृषि विकास समझौते से भारतीय कृषि बनेगी मुनाफे का सौदा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान इजरायल से अन्य क्षेत्रों के साथ जल प्रबंधन और कृषि विकास सहयोग समझौता किया गया है। इस समझौते के बाद यह उम्मीद बंधी है कि अब इजरायल की कृषि तकनीक का भारत को भी लाभ मिल सकेगा, जिससे भारतीय कृषि के भी फायदे का सौदा बनने के रास्ते खुलेंगे।
नेहरूवादी मुस्लिपरस्ती के कारण कांग्रेस ने इजरायल से रखी दूरी, राष्ट्रीय हितों को किया अनदेखा
नेहरू-गांधी खानदान ने मुस्लिम वोटों के लिए हिंदू हितों की बलि ही नहीं चढ़ाई बल्कि ऐसी विदेश नीति भी अपनाई जिससे राष्ट्रीय हित तार-तार होते गए। इसे भारत की मध्य-पूर्व नीति से समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में नेहरू ने पश्चिम एशिया के संबंध में भारतीय विदेश नीति में तय कर दिया था कि फिलीस्तीन से दोस्ती इजरायल से दूरी के रूप में दिखनी चाहिए। नेहरू की इस आत्मघाती नीति को
कांग्रेस सरकारों की गलत नीतियों के कारण अंधेरे में डूबे गांवों को रोशन करने में जुटी मोदी सरकार
आजादी के बाद बिजलीघर भले ही गांवों में लगे हों लेकिन इन बिजलीघरों की चारदीवारी के आगे अंधेरा ही छाया रहा है। दूसरी ओर यहां से निकलने वाले खंभों व तारों के जाल से शहरों का अंधेरा दूर हुआ। आजादी के समय देश में केवल 1,362 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता था, लेकिन बीते 70 वर्षों के दौरान यह आंकड़ा 3,29,205 मेगावाट के स्तर पर पहुंच गया है। इसे शानदार नहीं, तो संतोषजनक उपलब्धि जरूर कहेंगे
अपने मौकापरस्त रहनुमाओं के कारण पिछड़ते मुसलमान
2014 के लोक सभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस पार्टी दो साल से इफ्तार पार्टी नहीं दे रही है। उत्तर प्रदेश में तो हद हो गई जब प्रदेश कांग्रेस ने दावत का निमंत्रण पत्र भेजने, होटल क्लार्क का मैदान बुक करने और मेन्यू तय होने के बावजूद आलाकमान के निर्देश पर अचानक इफ्तार पार्टी रद्द कर दी। यह वही कांग्रेस है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री निवास पर इफ्तार पार्टी न दिए
इन तथ्यों से साफ हो जाता है कि राजनीति की उपज है मध्य प्रदेश का किसान आंदोलन !
यह एक हद तक सही है कि देश में किसानों की माली हालत ठीक नहीं है, लेकिन पिछले दिनों जिस तरह अचानक देश के कई हिस्सों में किसानों का आंदोलन उठ खड़ा हुआ, उससे 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सक्रिय हुए पुरस्कार वापसी गिरोह की याद ताजा हो उठी। बाद में किसानों को आंदोलन के लिए भड़काने, सड़कों पर दूध बहाने से लेकर सब्जी फेंकने तक में कांग्रेसी नेताओं की संलिप्तता के ऑडियो-वीडियो