व्यालोक

यूपी में योगी राज का मतलब

हरेक फैसले का अपना सांकेतिक महत्व होता है। हरेक संकेत के अपने राजनीतिक निहितार्थ। हरेक राजनीतिक निहितार्थ में भविष्य की तैयारी छुपी होती है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथ में देकर भाजपा नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी ने संकेत दे दिए हैं कि भाजपा जड़ों से कभी हटी ही नहीं थी। भाजपा ‘सबका साथ, सबका विकास’ करेगी, लेकिन किसी

भाजपा की यूपी विजय के निहितार्थ को समझें, अंधविरोधी !

वक्तव्य-पूर्व (प्रोलॉग)- एक कथा है। नेपोलियन की। वह एक बार अपने कार्यालय आया, और खूंटी पर अपना कोट टांगना चाहा। खूंटी उसके कद से थोड़ी ऊंची थी। उसके सहायक ने कहा, लाइए सर…मैं टांग देता हूं, आपसे लंबा हूं।’ नेपोलियन ने उसे मुड़कर देखा, मुस्कुराया और कहा- ‘हां, तुम मुझसे लंबे हो, पर ऊंचे नहीं हो।’

वामपंथियों के बौद्धिक प्रपंचों और दोहरे चरित्र को उजागर करतीं कुछ घटनाएं

पिछले दिनों दो-तीन अहम घटनाएं हुईं। उर्दू भाषा के एक कार्यक्रम जश्न-ए-रेख्ता में पाकिस्तानी-कनाडाई मूल के लेखक-विचारक तारिक फतह के साथ बदसलूकी और हाथापाई हुई, माननीय पत्रकार सह विचारक सह साहित्यकार ‘रवीश कुमार’ के भाई सेक्स-रैकेट चलाने के मामले में आरोपित हुए और अभी दिल्ली विश्वविद्यालय में फिर से एक ‘सेमिनार’ के बहाने जेएनयू में ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी-जंग

वर्तमान समय में देश की जरूरत हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मोदी इस देश की वक्ती ज़रूरत हैं। आपने उनका गोवा में दिया गया भाषण सुना क्या ? उनकी शारीरिक भाषा देखी, आंखें देखीं और शब्दों के परे जो कुछ भी वह बयान कर रहे थे, वह देख पाए क्या ? क्या वह किसी थके आदमी की भाषा हो सकती है, किसी हारे हुए इंसान की बॉडी-लैंग्वेज लग रही है क्या, किसी चिंतित, गुस्साए, खीझे आदमी का भाषण वैसा हो सकता है क्या ? इन सब का जवाब एक शब्द में है- नहीं।

पूर्व फौजी की आत्महत्या पर अपनी घटिया राजनीति से बाज आएं विपक्षी!

पिछले दो साल से चल रहा असहिष्णुता का नाटक इस देश में कब समय की गर्त में समा गया, किसी को पता भी नहीं चला, पर चंद एसी स्टूडियो की कुर्सियों पर बैठे प्रवंचक बुद्धिजीवियों की कॉफी के प्यालों में उठा तूफान इस देश का असली मिजाज नहीं दिखाता। यह देश इन बौद्धिकों की लफ्फाजी को बहुत मुद्दत और शिद्दत से पहचान गया है, इसलिए उन पर ध्यान भी नहीं देता।

जेएनयू को बर्बादियों की तरफ ले जा रहा वामपंथी गिरोह

जेएनयू फिर से एक बार सुर्खियों में है। फिर से, ग़लत कारणों से। ये ग़लत वजहें किसी भी ‘जेनुआइट’ को परेशान कर सकती हैं। आपसी झगड़े के बाद से एक छात्र नजीब जेएनयू से गायब है। जहां तक मेरी स्मृति है, यह शायद जेएनयू में अपनी तरह की पहली घटना है। हां, इसके पहले फरवरी में भी कुख्यात ‘नारेबाज़ी’ कांड के बाद कुछ छात्र ‘भूमिगत’ हुए थे, लेकिन कोई लापता हो जाए, ऐसा पहली बार हुआ है। इस

तीन तलाक़ जैसी अमानवीय व्यवस्था के समर्थन में खड़े लोगों की शिनाख्त जरूरी

पिछले लगभग एक सप्ताह से ‘तीन तलाक़’ पर मची रार के बीच जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, जिस तरह से तमाम रोना-धोना मचा है, उसमें से छान कर तीन तरह की प्रतिक्रियाएं आप नमूने के तौर पर रख सकते हैं। पहली श्रेणी में वे मुसलमान हैं, जिनके मुताबिक ‘कुरान’ का ही आदेश अंतिम आदेश है, उसमें कोई फेरबदल नहीं किया जा सकता, चाहे कितनी भी विकृत प्रथा हो, उसको सुधारा नहीं जा सकता और

‘तीन तलाक’ के बहाने फिर बेनकाब हुआ वामपंथी गिरोह

देश में कुछ ही समय बाद एक बड़ा मसला फिर से उठने वाला है। यह हालांकि दीगर बात है कि जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी नीत एनडीए सरकार आयी है, तब से ही तथाकथित बुद्धिजीवी, चिंतक और कलाकार किसी न किसी बहाने इस सरकार को घेरने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। यह भी कोई अनजानी बात नहीं कि ये सभी किसी न किसी तरह वामपंथी और कांग्रेसी वित्त पोषित और उन्हीं के गिरोह के भी हैं।

यह सिर्फ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, मोदी का ‘मास्टर स्ट्रोक’ है!

पिछले एक सप्ताह से तकरीबन हरेक जगह भारत के पाकिस्तान पर किए सर्जिकल स्ट्राइक की ही चर्चा है। और, यह न समझिए कि अपने एसी चेंबर में बैठकर केवल एंटरटेनमेंट चैनल के स्वयंभू विद्वान ही इस पर मशविरा कर रहे हैं। गुवाहाटी से गुड़गांव और दार्जिलिंग से दरभंगा तक, इसके चर्चे गरम हैं। बाल काटनेवाले नाई से लेकर कपड़े प्रेस करनेवाले भाई तक, हरेक आदमी की इस मुद्दे पर राय है और फैसला है।

उड़ी आतंकी हमले के बाद फिर सामने आया वामपंथियों का राष्ट्रविरोधी चेहरा!

वामपंथियों के गढ़ जेएनयू के छात्र-संघ में वामपंथी वर्चस्व आज से नहीं, दशकों से कायम है। कहने की बात नहीं कि वहां कश्मीर का मसला हो या नक्सलियों का, हमेशा ही वहां के छात्र-संघ में जब भी राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रस्ताव आए, इन वामपंथियों ने उस पर समर्थन करना तो दूर, उसका कठोर विरोध करना ही उचित समझा। मुझे अच्छी तरह याद है कि जेएनयू के छात्रसंघ में पारित प्रस्ताव कई बार पाकिस्तान और