भाजपा की विकासवादी राजनीति के आगे पस्त पड़ती विपक्ष की नकारात्मक राजनीति

राहुल गाँधी समेत कई अन्य विपक्षी नेताओ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर रिश्वत लेने जैसा गंभीर आरोप लगाते हुए कुछ दस्तावेज कथित तौर पर सुबूत के रूप में पेश किये थे, जिस आधार पर वकील प्रशांत भूषण ने एसआईटी जाँच के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका डाल दी, जिसे न्यायालय ने खारिज़ कर दिया है। न्यायालय द्वारा प्रशांत भूषण की याचिका पर सुनवाई से इनकार के बाद विपक्ष को एक और बड़ा झटका लगा है। वे जो अब तक इस मुगालते में थे कि न्यायपालिका का इस्तेमाल अपनी मोदी विरोध की नकारात्मक राजनीती के लिए कर लेंगे, अब न्यायालय द्वारा याचिका खारिज करने के बाद खामोश नज़र आ रहे हैं।

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव है और भाजपा विकास के एजेंडे पर अपनी चुनावी रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है, मगर अन्य दलों के पास या तो  खोखले वादे हैं या झूठे आरोप जिनके दम पर वे जीत हासिल करने की उम्मीद पाल रहे हैं। अब विरोधियो की मुश्किल यह है कि उनके पैंतरों का भाजपा और मोदी की लोकप्रियता पर कोई असर नही पड़ रहा है, जिससे उनकी बौखलाहट बढ़ती जा रही है। इसी बौखलाहट में वे प्रधानमंत्री मोदी पर तरह-तरह के अनर्गल और हवा-हवाई आरोप लगाने में लगे हैं।

दरअसल राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि सीबीआई को कोयला घोटाले से सम्बंधित रेड के दौरान लेन-देन सम्बंधित कई जानकारियाँ मिली थीं, जिनमें मोदी के नाम से  लेन-देन का भी ब्यौरा था। राहुल गांधी के अनुसार ६ माह के भीतर ही मोदी को ९ भुगतान किये गये थे, जिनकी जानकारी आयकर विभाग को भी थी। गैर-सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ की वकालत करते हुए प्रशांत भूषण ने समूचे विपक्ष के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष से समर्थित जनहित याचिका दायर करते हुए मोदी के खिलाफ एसआईटी जांच की मांग की थी। इस बीच राहुल ने यह स्पष्ट नही किया कि २०१४ के लोकसभा चुनाव के दौरान या उससे पहले उन्होंने जनता के समक्ष यह बात क्यों नहीं रखी ? तीन साल बाद अचानक उन्हें ये कथित खुलासा करने की कैसे सूझ पड़ी ? लेकिन, न्यायालय ने इस याचिका को खारिज़ कर मोदी पर आरोप लगाने वाले राहुल गांधी समेत सभी विपक्षियों के झूठ को बेनक़ाब करने का काम किया है।

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पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव है और भाजपा विकास के एजेंडे पर अपनी चुनावी रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है, मगर अन्य दलों के पास या तो  खोखले वादे हैं या झूठे आरोप जिनके दम पर वे जीत हासिल करने की उम्मीद पाल रहे हैं। अब विरोधियो की मुश्किल यह है कि उनके पैंतरों का भाजपा और मोदी की लोकप्रियता पर कोई असर नही पड़ रहा है, जिससे उनकी बौखलाहट बढ़ती जा रही है। इसी बौखलाहट में वे प्रधानमंत्री मोदी पर तरह-तरह के अनर्गल और हवा-हवाई आरोप लगाने में लगे हैं।

अगर एक नज़र विपक्षी दलों की राजनीतिक गतिविधियों पर डालें तो ममता बनर्जी जिनका राज्य इस वक़्त साम्प्रदायिक हिंसा और लचर कानून व्यवस्था की भेंट चढ़ा हुआ है, वे अभी मोदी-विरोध का राग आलापने में व्यस्त हैं। उनका विरोध इस कदर हो गया है कि उनके राज्य का एक इमाम प्रधानमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक फतवा जारी कर देता है और वे कुछ नहीं करतीं। उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी कुनबा अपनी पारिवारिक-राजनीतिक लड़ाई में व्यस्त है। केजरीवाल दिल्ली की बदहाली से आँख मूंदें पंजाब और गोवा में जोर आजमाने में लगे हैं, जबकि राहुल गाँधी एक स्वर में केवल मोदी-विरोध का एजेंडा लेकर चुनाव में उतर रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस समय में देश के समूचे विपक्ष के निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा है। विपक्ष की पूरी राजनीति ही नकारात्मकता से भरी पड़ी है। हालांकि विपक्ष की इस नकारात्मक राजनीति को देश की जनता लगातार खारिज करते हुए भाजपा की विकासवादी राजनीति के साथ खड़ी दिख रही है। इसका बड़ा प्रमाण हाल ही में हुए महाराष्ट्र, गुजरात, चंडीगढ़, आदि तमाम राज्यों के नगर निकाय चुनावों में भाजपा की बम्पर जीत के रूप में देखा जा सकता है। ये देखते हुए संभावना दिखती है कि आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी जनता  भाजपा की विकासवादी राजनीति को विपक्ष की नकारात्मक राजनीति पर भारी पड़ेगी।

(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)