ब्रिक्स सम्मेलन में भी बजा भारतीय विदेश नीति का डंका, अलग-थलग पड़ा पाक

इस बार गोवा में संपन्न दो दिवसीय 8 वां ब्रिक्स सम्मेलन काफी शानदार रहा। पीएम मोदी ने सम्मेलन के दौरान विश्व की बड़ी शक्तियों के समक्ष पाक प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा रखा। उन्होंने हमारे नापाक पड़ोसी देश की आतंकवादियों की डिलीवरी पर ब्रिक्स के सभी सदस्य देशों को रूबरू करवाया।  सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति ब्लामिदीर पुतीन, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैक्ब जुमा और ब्राजील के राष्ट्रपति माइकल तेमर मौजूद थे। ऐसे में, मौके की नजाकत को भांपते हुए पीएम ने पाकिस्तान के नापाक कारनामों का काला चिट्ठा खोला, ताकि एक न एक दिन उसके साथ आतंकवादियों का समर्थन करने वाले भी उनकी इस कारस्तानी को समझ सकें।

ब्रिक्स के साथ सार्क देशों की बजाय बिम्सटेक के सदस्य देशों को बुलाना कहीं न कहीं यही दिखाता है कि इस ब्रिक्स सम्मेलन में भारत ने पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग करने के लिए ठोस नीति बना रखी थी। इससे पहले भारत द्वारा पाक में आयोजित होने वाले सार्क सम्मेलन का बहिष्कार किया गया था, जिसके बाद सार्क के श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश आदि तमाम सदस्य देशों ने भी भारत के ही रुख का अनुसरण किया था और परिणामस्वरूप सार्क सम्मेलन निरस्त हुआ। यहाँ भी पाक पूरी तरह अलग-थलग पड़ गया था। इसके बाद से अब ब्रिक्स सम्मेलन में सार्क की बजाय बिम्सटेक देशों का शामिल होना भी पाक को अलग-थलग करने वाला ही है।

प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में कहा, ‘आतंकवाद पड़ोसी देश की सबसे प्यारी औलाद बन चुका है और बदले में यह औलाद अपने माता-पिता के मूल चरित्र और प्रकृति को परिभाषित करने लगा है।’ वहीं दूसरी ओर अपने सबसे करीबी और सहयोगी देश रूस के लिए उन्होंने कहा कि एक पुराना दोस्त दो नए दोस्तों से कहीं ज्यादा बेहतर होता है। उन्होंने अपनी इस बात से पुतीन को जता दिया की भारत के चीन और अमेरिका से बढ़ते रिश्ते कभी भी हमारी गहरी दोस्ती में दरार नहीं ला सकते हैं।

इस सम्मेलन में भारत ने रूस से 16 अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसमें ऊर्जा, ट्रैफिक स्मार्ट सिटी सेक्टर, नागपुर-सिकंदराबाद के बीच रेल की स्पीड बढ़ाने, आंध्र प्रदेश और हरियाणा में स्मार्ट सिटी बनाने, गैस पाइपलाइन, शिक्षा ट्रेनिंग, कुनडनकुलम प्लांट के विस्तार, 200 कामोव हेलीकॉप्टर के साझा निर्माण पर समझौते हुए। यह समझौते भारत को जल्द ही बड़े शक्तिशाली देशों में शुमार करेंगे। रूस ने भी पहली बार भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 50 करोड़ डॉलर की राशि के निवेश पर सहमति जताई है। इसके साथ ही रूस एक अरब की राशि वाले ‘रूस भारत निवेश कोष’ की स्थापना के लिए लगभग इतनी ही राशि नवनिर्मित नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंड फंड (एनआईआईएफ) में भी निवेश करेगा।

Benaulim: Prime Minister Narendra Modi with BRICS leader Brazil President, Michel Temer, South Africa President, Jacob Zuma, Russian President Vladimir Putin and Chinese President Xi Jinping pose for a group photo at the BRICS informal dinner in Benaulim, Goa on Saturday. PTI Photo/PIB(PTI10_15_2016_000291B)

इस सम्मेलन में चीन को भी भारत की बातों पर चुप्पी साधनी पड़ी। भारत ने भी एक तीर से दो शिकार किए थे। आतंकवाद के मुद्दे पर उसने चीन को भी खरी—खरी सुनाई थी, क्योंकि चीन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पठानकोट हमले के मुख्य आरोपी व जैश—ए—मुहम्मद संगठन के आतंकी मसूद अजहर का बचाव करते हुए उसे आतंकी मानने से इंकार कर दिया था। इसके अलावा पाकिस्तान के इस हमदर्द ने भारत के एनएसजी का सदस्य बनने पर भी विरोध किया था। ब्रिक्स के साथ ही बिम्सटेक देशों का सम्मेलन भी आयोजित हुआ था, जहां इसके सदस्य देशों ने ब्रिक्स देशों के नेताओं से मुलाक़ात की। बिम्सटेक यानी ‘द बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टरल टेक्निल एंड इकोनोमिक कोऑपरेशन’, इसमें भारत समेत बंगाल की खाड़ी के आसपास के अन्य देश शामिल हैं, जैसे बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड और श्रीलंका। स्पष्ट है कि इसके सदस्य देशों में पाकिस्तान शामिल नहीं है। ऐसे में, ब्रिक्स के साथ सार्क देशों की बजाय बिम्सटेक के सदस्य देशों को बुलाना कहीं न कहीं यही दिखाता है कि इस ब्रिक्स सम्मेलन में भारत ने पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग करने के लिए ठोस नीति बना रखी थी। इससे पहले भारत द्वारा पाक में आयोजित होने वाले सार्क सम्मेलन का बहिष्कार किया गया था, जिसके बाद सार्क के श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश आदि तमाम सदस्य देशों ने भी भारत के ही रुख का अनुसरण किया था और परिणामस्वरूप सार्क सम्मेलन निरस्त हुआ। यहाँ भी पाक पूरी तरह अलग-थलग पड़ गया था। इसके बाद से अब ब्रिक्स सम्मेलन में सार्क की बजाय बिम्सटेक देशों का शामिल होना भी पाक को अलग-थलग करने वाला ही है।

कुल मिलाकर यह सम्मेलन भारत की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। इसमें हुए महत्वपूर्ण करार और आतंकवाद के मुद्दे पर नापाक पाकिस्तान को बेनकाब करनी की रणनीति काम आई। उरी हमले के बाद भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने पर भी पूरा विश्व उसके समर्थन में खड़ा दिखाया दिया। ब्रिक्स के मंच से भी सभी देशों ने आतंकवाद को लेकर कड़ा सन्देश दिया और उसके खात्मे के लिए प्रतिबद्धता जताई। पाक-प्रेमी चीन को भी मजबूरी में ही सही, पर इन सब बातों पर स्वीकृति देनी पड़ी। स्पष्ट है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में देश ने विदेश नीति और कूटनीति के स्तर पर ढाई साल के बेहद कम समय में ही अनेक सफलताएं हासिल की हैं, ये सम्मेलन भी उन्हीं सफलताओं की एक कड़ी कहा जा सकता है। यह संकेत देता है कि आने वाला समय निश्चित तौर पर भारत का है।

(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)