बजट प्रावधानों से बैंकिंग क्षेत्र को मिलेगी मजबूती

वर्तमान में भारतीय रिजर्व बैंक जरूरत के अनुसार नोट छापता है, जो बैंकों के माध्यम से बाजार में पहुँचता है, जिसमें काफी समय लग जाता है, जबकि डिजिटल करेंसी रुपया को भारतीय रिजर्व बैंक मोबाइल, लैपटॉप या डेस्कटॉप के माध्यम से सीधे उपयोगकर्ता को भेज सकेगा और पुनः उपयोगकर्ता उसे रियल टाइम बेसिस पर किसी दूसरे व्यक्ति को अंतरित कर सकेगा। भेजी गई डिजिटल करेंसी रुपया न तो किसी वॉलेट में जमा होगी और न ही किसी बैंक खाते में।

वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 1 फरवरी को पेश किए गए केंद्रीय बजट से बैंकिंग क्षेत्र को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अनेक फायदे होंगे। सबसे ज्यादा फायदा तो आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) को मार्च 2023 तक बढ़ाने से होगा, क्योंकि इससे बैंकों के गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में बढ़ोतरी नहीं होगी साथ ही साथ बैंकों के कारोबार में भी इजाफा होगा।

बजट प्रावधानों के अनुसार ईसीएलजीएस गारंटी कवर को 50,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 5 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि इस योजना की शुरुआत कोविड की वजह से वर्ष 2020 में की गई थी, जिससे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) को बड़े पैमाने पर लाभ हुआ है।  

बजट में वर्ष 2022 में सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) रुपया को शुरू करने की घोषणा की गई है। सीबीडीसी कुछ हद तक क्रिप्टोकरेंसी या आभासी मुद्रा जैसे, बिटकॉइन या ईथर के तर्ज पर काम करेगा, क्योंकि इनका लेनदेन बिना किसी मध्यस्थ या बैंक के होता है। आभासी मुद्रा का वैश्विक स्तर पर बढ़ते चलन को देखते हुए सरकार चाहती है कि भारत की भी अपनी एक डिजिटल करेंसी हो। 

साभार : Moneycontrol

वर्तमान में भारतीय रिजर्व बैंक जरूरत के अनुसार नोट छापता है, जो बैंकों के माध्यम से बाजार में पहुँचता है, जिसमें काफी समय लग जाता है, जबकि डिजिटल करेंसी रुपया को भारतीय रिजर्व बैंक मोबाइल, लैपटॉप या डेस्कटॉप के माध्यम से सीधे उपयोगकर्ता को भेज सकेगा और पुनः उपयोगकर्ता उसे रियल टाइम बेसिस पर किसी दूसरे व्यक्ति को अंतरित कर सकेगा। भेजी गई डिजिटल करेंसी रुपया न तो किसी वॉलेट में जमा होगी और न ही किसी बैंक खाते में। 

वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में एनपीए से बैंकों को निजात दिलाने के लिए बैड बैंक के गठन का प्रस्ताव रखा था। अब वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में वित्त मंत्री ने बैड बैंक 31 मार्च 2022 तक अपना कामकाज शुरु कर देगा की घोषणा की है। शुरू में कुल 50,335 करोड़ रूपये के कुल 15 एनपीए खातों को बैड बैंक को अंतरित किया जायेगा।

बैंकों को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। इसलिए, बैंकों का स्वस्थ रहना जरुरी है, लेकिन एक लंबे समय से बैंक खास करके सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एनपीए की समस्या से जूझ रहे हैं। कोरोना महामारी ने बैंकों की समस्या में और भी इजाफा किया है।

एनपीए बेचने से जो नकदी बैंक में वापिस आयेगी, उसे पुनः जरूरतमंदों को ऋण के रूप में दिया जा सकेगा, क्योंकि बैंक एनपीए के लिए पहले ही प्रावधान कर चुके हैं. अतः बैंक जो भी एनपीए बैड बैंक को बेचेंगे वह राशि सीधे बैंकों के मुनाफे में जुड़ जाएगी। दुनिया के अनेक देशों में बैड बैंक फंसे कर्ज को बेचने में सफल रहा है। 

वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद अमेरिका ने संकटग्रस्त परिसंपत्ति राहत कार्यक्रम शुरू किया था, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य बेहतर हुआ था। एक अनुमान के अनुसार बैड बैंक 5 लाख करोड़ से अधिक के फंसे कर्ज के समाधान में कारगर हो सकती है।

इसके दूसरे भी फ़ायदे हैं, मसलन, एनपीए को बैड बैंक को बेचने के बाद बैंक अपने कारोबार को बढ़ाने पर ध्यान दे सकेंगे, क्योंकि बैंकों को फंसे कर्ज की वसूली में आर्थिक नुकसान तो होता ही है साथ ही साथ उनका मानव संसाधन कारोबार बढ़ाने पर ध्यान नहीं दे पाता है, जिससे गुणवत्तायुक्त परिसंपत्ति भी एनपीए हो जाती  है। बैलेंस शीट के साफ-सुथरा रहने से देसी व विदेशी निवेशकों और जमाकर्ताओं का बैंकों पर भरोसा बढ़ेगा, जिससे बैंक की रेटिंग बढ़ेगी और निवेश की राह भी आसान होगी।

बजट में वर्ष 2022 में देश के 1.5 लाख डाकघरों को कोर बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने के कार्य को पूरा कर लिया जायेगा, जिससे इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, एटीएम के जरिए बचत और चालू खातों का संचालन करना संभव हो जायेगा और लोग देश के किसी भी कोने में पैसा अंतरित कर सकेंगे। आज देश में डाकघरों का सबसे बड़ा नेटवर्क है।

अतः इससे वित्तीय समावेशन को भी बढ़ावा मिलेगा। वर्तमान में पोस्ट ऑफिस इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के जरिए भी जमा और भुगतान की सुविधाएं ग्राहकों को उपलब्ध करा रहा है। वित्त मंत्री ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए बजट में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा 75 जिलों में 75 डिजिटल बैंक स्थापित करने की भी घोषणा की है, ताकि देश में डिजिटलीकरण को और भी बढ़ावा दिया जा सके।   

बजट में सरकार ने पूँजी निवेश की राशि को 5.54 लाख करोड़ रूपये से बढ़ाकर 7.55 लाख करोड़ रूपये करने की घोषणा की है। इससे सबसे अधिक फायदा एमएसएमई को होगा। अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए ये बैंकों से भी ऋण लेंगे, जिससे बैंकों के ऋण प्रवाह में तेजी आयेगी। इससे माँग और आपूर्ति में भी तेजी आयेगी और रोजगार सृजन को भी गति मिलेगी।

साभार : The Economic Times

बजट में कॉर्पोरेट सरचार्ज को भी 12 प्रतिशत से कमकर 7 प्रतिशत करने की बात कही गई है। इससे कॉर्पोरेटस को अतिरिक्त पूँजी मिलेगी, जिसका इस्तेमाल वे कारोबार बढ़ाने में कर सकेंगे। कारोबार को मजबूत करने के लिए वे बैंकों से भी ऋण ले सकते हैं, क्योंकि अभी बैंकों के पास सस्ती दर पर पूँजी उपलब्ध है।   

बजट में वित्त मंत्री ने एमएसएमई को 5 सालों में 6 हजार करोड़ रूपये देने की घोषणा की है, जिससे एमएसएमई को पूंजीगत समस्याओं से निपटने में मदद मिलेगी। उदयम, ई-श्रम, एनसीएस और असीम पोर्टल को भी आपस में जोड़े जाने की बात बजट में कही गई है।

इससे उद्यमियों को बैंक से ऋण लेने में आसानी होगी और आंत्रप्रेन्योरशिप की संभावनाओं को भी बल मिलेगा। वर्ष 2016 से अब तक देश में 60,000 से अधिक नये स्टार्टअप्स शुरू हुए हैं।  इस संकल्पना को और भी सशक्त बनाने के लिए बजट में स्टार्टअप के लिए कर लाभ की अवधि को 1 साल बढ़ाकर 31 मार्च, 2023 कर दिया गया है। 

बजट में गरीबों के लिए 80 लाख घर बनाने का प्रस्ताव है, जिसके लिये 48000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। गंगा के किनारों के 5 किलोमीटर के दायरे में आने वाली जमीन पर ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने की भी घोषणा बजट में की गई।

इन घोषणाओं को मूर्त देने के लिये बैंकों से ऋण लेने की जरूरत होगी। मौजूदा समय में बैंकों का ऋण वृद्धि दर दिसंबर 2021 में वर्ष दर वर्ष के आधार पर 9.2 प्रतिशत थी, जबकि पिछले वर्ष 2020 के दिसंबर महीने में वर्ष दर वर्ष के आधार पर इसमें 6.6 प्रतिशत के दर से वृद्धि हुई थी। 

पड़ताल से साफ है कि बजट प्रावधानों से बैंकों के ऋण वृद्धि दर में इजाफा होने और एनपीए के स्तर में कमी आने की संभावना है साथ ही साथ इससे आगामी महीनों में बैंकों के मुनाफे में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)