कामकाज

गाय के ‘अर्थशास्त्र’ को समझने की जरूरत

भारतीय संदर्भ में देखें तो गाय को लेकर जितना विवाद होता है उतना शायद ही किसी पशु को लेकर होता हो। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि गाय के संरक्षण-संवर्द्धन को लेकर जो प्रावधान किए जाते हैं, उन्‍हें देश के तथाकथित सेकुलर खेमे द्वारा धार्मिक और वोट बैंक के नजरिए से देखा जाने लगता है। इस विवाद का सबसे दुखद पहलू यह है कि हम गाय के आर्थिक महत्‍व को भुला देते हैं। जिस दिन हम गाय के अर्थशास्‍त्र को

अपने लक्ष्यों की तरफ अग्रसर है नोटबंदी, विफलता की बातें हैं भ्रामक

पिछले साल की गई नोटबंदी के सकारात्‍मक परिणाम अब सामने आने लगे हैं। रिजर्व बैंक ने इसी सप्‍ताह एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि जब नोटबंदी की गई थी तो जिन पांच सौ व हजार रूपये के नोटों को बंद किया गया था, उनका मूल्‍य 15.28 लाख करोड़ रुपए था। इस राशि का करीब 99 प्रतिशत हिस्‍सा बैंकिंग सिस्‍टम में वापस आ चुका है। इन पुराने नोटों में से महज 16 हजार नोट ही आना शेष हैं। प्रधानमंत्री

नोटबंदी से हुए फायदों की कहानी, इन आंकड़ों की जुबानी

आठ अगस्त को नोटबंदी के 9 महीने हो गये। आज बड़े मूल्य वर्ग के चलन से बाहर की गई मुद्राओं के बदले छापी गई नई मुद्रायेँ 84% चलन में है, जबकि नोटबंदी के पहले बड़े मूल्यवर्ग यथा 1000 और 500 की मुद्रायेँ 86% चलन में थी। फिलवक्त, चलन में मुद्राओं का केवल 5.4% ही बैंकों के पास उपलब्ध है, जबकि नवंबर, 2016 में बैंकों के पास 23.2% मुद्रायेँ उपलब्ध थी। नोटबंदी के तुरंत बाद बैंकों में नकदी की उपलब्धता उसकी

ये मुसलमानों का तुष्टिकरण करने वाली नहीं, उनके समग्र विकास के लिए काम करने वाली सरकार है !

भले ही उपराष्‍ट्रपति हामिद अंसारी अपने सेवाकाल के आखिरी दिन मुसलमानों में असुरक्षा और घबराहट की भावना की बात कही हो, लेकिन स्‍वयंभू गोरक्षकों की छिटपुट गतिविधियों को छोड़ दिया जाए तो पूरे देश में अमन-चैन कायम है। 2014 के लोक सभा चुनाव के पहले विरोधी नेताओं ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ जिस प्रकार का नकारात्‍मक माहौल बनाया था, वह निर्मूल साबित हुआ। सत्‍ता में आने के बाद से ही मोदी

रेरा एक्ट : बिल्डरों की बदमाशियों पर लगेगी लगाम, साकार होगा अपने घर का सपना

रेरा क़ानून का प्रस्ताव पहली बार जनवरी, 2009 में राज्यों एवं संघ क्षेत्रों के आवास मंत्रियों की राष्ट्रीय बैठक में पारित किया गया था। पुनश्च: आवासीय और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय के आठ वर्षों के लंबे प्रयास के बाद 01 मई, 2016 को इस कानून को अमलीजामा पहनाया गया एवं कुल 92 अनुच्छेदों में से 69 को अधिसूचित किया गया। देखा जाये तो इस अधिनियम का मकसद रियल्टी कंपनियों की गतिविधियों में

ये आंकड़े बताते हैं कि गरीबों तक बैंक पहुँचाने में कामयाब रही मोदी सरकार !

सैद्धांतिक रूप से ही भले ही बैंकों को गरीबों का हितैषी कहा जाता हो लेकिन व्‍यावहारिक धरातल पर बैंकों का ढांचा अमीरों के अनुकूल और गरीबों के प्रतिकूल रहा है। देश में गरीबी की व्‍यापकता एवं उद्यमशीलता के माहौल में कमी की एक बड़ी वजह यह भी है। 1969 में बैंकों के राष्‍ट्रीयकरण के बाद यह उम्‍मीद बंधी थी कि अब बैंकों की चौखट तक गरीबों की पहुंच बढ़ेगी लेकिन वक्‍त के साथ यह उम्‍मीद धूमिल पड़ती गई।

इजरायल से हुए कृषि विकास समझौते से भारतीय कृषि बनेगी मुनाफे का सौदा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान इजरायल से अन्य क्षेत्रों के साथ जल प्रबंधन और कृषि विकास सहयोग समझौता किया गया है। इस समझौते के बाद यह उम्मीद बंधी है कि अब इजरायल की कृषि तकनीक का भारत को भी लाभ मिल सकेगा, जिससे भारतीय कृषि के भी फायदे का सौदा बनने के रास्ते खुलेंगे।

चीन की बदमाशियों को जीएसटी से मिलेगा माकूल जवाब

भारत में 1 जुलाई, 2017 से वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को लागू कर दिया गया है। जीएसटी के प्रावधानों को देखते हुए माना जा रहा है कि इससे चीन के निर्यात पर लगाम लगेगा, क्योंकि जीएसटी के कुछ प्रावधानों के कारण चाइनीज उत्पादों का अंतर्राजीय वितरण आसानी से नहीं किया जा सकेगा, जिससे चाइनीज उत्पाद देश के दूर-दराज इलाकों तक नहीं पहुँच सकेंगे। इनकी पहुँच केवल एक राज्य के स्थानीय बाज़ारों तक

सातवें वेतन आयोग का मुद्रास्फीति पर नहीं पड़ेगा कोई नकारात्मक प्रभाव

आज समग्र सीपीआई में ग्रामीण सीपीआई की हिस्सेदारी 53.5% है, जिसमें आवास क्षेत्र का अंश शामिल नहीं है। लिहाजा, केंद्रीय कर्मचारियों के एचआरए में बढ़ोतरी से मुद्रास्फीति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की बात कहना बेमानी है। इसका मुद्रास्फीति पर अप्रत्यक्ष प्रभाव भी न्यून पड़ेगा,

कांग्रेस सरकारों की गलत नीतियों के कारण अंधेरे में डूबे गांवों को रोशन करने में जुटी मोदी सरकार

आजादी के बाद बिजलीघर भले ही गांवों में लगे हों लेकिन इन बिजलीघरों की चारदीवारी के आगे अंधेरा ही छाया रहा है। दूसरी ओर यहां से निकलने वाले खंभों व तारों के जाल से शहरों का अंधेरा दूर हुआ। आजादी के समय देश में केवल 1,362 मेगावाट बिजली का उत्‍पादन होता था, लेकिन बीते 70 वर्षों के दौरान यह आंकड़ा 3,29,205 मेगावाट के स्‍तर पर पहुंच गया है। इसे शानदार नहीं, तो संतोषजनक उपलब्‍धि जरूर कहेंगे