परिवारवाद के चंगुल में फँसी पतन की ओर बढ़ती कांग्रेस

कर्नाटक, मध्‍यप्रदेश के बाद राजस्‍थान के नेताओं में मची उथल-पुथल क्‍या गुल खिलाएगी यह तो आने वाला वक्‍त ही बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि यदि कांग्रेस में आलाकमान संस्‍कृति बनी रही, तो इस पार्टी का पतन निश्‍चित है।

एक ओर कांग्रेस पार्टी की डिजिटल बैठक में सांसदों ने राहुल गांधी को फिर कांग्रेस अध्‍यक्ष बनाने की मांग की तो दूसरी ओर राजस्‍थान के उप मुख्‍यमंत्री सचिन पायलट के बागी तेवर से सियासी पारा चढ़ा हुआ है। उपर से देखने पर भले ही ये दोनों घटनाएं अलग-अलग दिखती हों लेकिन ये आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं।

गौरतलब है कि 2019 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की हार की नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा दे दिया था। इसके बाद सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्‍यक्ष बनाया गया था। अब एक बार फिर राहुल गांधी को कांग्रेस अध्‍यक्ष बनाने की मांग जोर पकड़ रही है।

देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी परिवारवाद की राजनीति में पूरी तरह उलझ चुकी है। यही कारण है कि गांधी-नेहरू परिवार के वफादार नेताओं को छोड़कर बाकी नेताओं को कांग्रेस का भविष्‍य अंधकारमय नजर आ रहा है। कांग्रेस में मची उथल-पुथल का कारण भी यही है।

राजस्थान कांग्रेस में तकरार, संकट में सरकार (सांकेतिक चित्र, साभार : IndiatvNews)

राज्‍य सभा चुनाव के लगभग तीन सप्‍ताह बाद राजस्‍थान में राजनीतिक उठापटक फिर से शुरू हो गई है। एक ओर मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत सरकार गिराने की साजिश का भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस बहाने अशोक गहलोत अपने प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट को राजनीतिक रूप से घेरने में जुटे हैं।

राजस्‍थान के उप मुख्‍यमंत्री सचिन पायलट दिल्‍ली में डेरा डाले हुए हैं। उनके साथ बड़ी संख्या में विधायक बताए जा रहे हैं। दोनों ही गुट विधायकों, नेताओं के साथ बैठकों का सिलसिला जारी रखे हुए हैं।

गहलोत और पायलट के बीच जारी खींचतान अब आर-पार की लड़ाई में बदल चुकी है और मामला राज्‍य के स्‍तर से ऊपर कांग्रेस हाईकमान तक पहुंच चुका है। यदि हाईकमान ने समय रहते प्रभावी हस्‍तक्षेप नहीं किया तो राज्‍य कांग्रेस में जारी यह सत्‍ता संघर्ष पार्टी के लिए महंगा पड़ सकता है।

गौरतलब है कि राजस्‍थान विधानसभा के चुनावी नतीजों के बाद सचिन पायलट मुख्‍यमंत्री पद के प्रबल दावेदार बनकर उभरे थे लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी के पुराने वफादार अशोक गहलोत को मुख्‍यमंत्री की गद्दी सौंप दी।

कर्नाटक, मध्‍यप्रदेश के बाद राजस्‍थान के नेताओं में मची उथल-पुथल क्‍या गुल खिलाएगी यह तो आने वाला वक्‍त ही बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि यदि कांग्रेस में आलाकमान संस्‍कृति बनी रही, तो इस पार्टी का पतन निश्‍चित है।

इसे आलाकमान संस्‍कृति ही कहेंगे कि गुजरात में कई वरिष्‍ठ, अनुभवी नेताओं के होते हुए भी 26 वर्षीय हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्‍यक्ष बना दिया गया। क्‍या गुजरात के वरिष्‍ठ कांग्रेस नेता इसे पचा पाएंगे ? हार्दिक पटेल की काबिलियत यह है कि वे पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान चर्चित चेहरा बनकर उभरे थे।

राहुल गांधी के एकछत्र राज के लिए कांग्रेस में युवा नेतृत्व को उभरने का नहीं मिलता मौका (सांकेतिक चित्र, साभार : OneIndia)

कभी देश के हर गांव-कस्‍बे तक से नुमाइंदगी दर्ज कराने वाली पार्टी का जनाधार लगातार सिमटता जा रहा है तो इसका कारण है कि पार्टी गांधी-नेहरू परिवार के राजनीतिक खोल से बाहर नहीं निकल रही है। जो युवा नेता अपनी मेहनत के बल पर अच्‍छा प्रदर्शन करते हैं, उन्‍हें चुनाव के बाद किनारे लगा दिया जाता है ताकि वे आगे चलकर राहुल गांधी के लिए खतरा न बन जाएं। यही कारण है कि 135 साल पुरानी पार्टी के जनाधार में लगातार कमी आ रही है।

लगातार दो बार लोक सभा चुनाव में मिली करारी शिकस्‍त के बाद कांग्रेस पार्टी को इस कड़वी हकीकत को स्‍वीकार करना होगा कि किसी जमाने में जिस परिवार के नाम पर वोट मिलते थे, वे अब मिलने से रहे। अत: कांग्रेस पार्टी को आत्‍ममंथन करते हुए परिवारवाद के खोल से बाहर निकलकर जनता के सामने कारगर विकल्‍प प्रस्‍तुत करना चाहिए।

लेकिन फिलहाल तो इसके लक्षण नहीं दिखाई दे रहे हैं क्‍योंकि कांग्रेस अध्‍यक्ष न रहते हुए भी राहुल गांधी कांग्रेस अध्‍यक्ष की तरह काम कर रहे हैं। सोनिया गांधी मात्र औपचारिक तौर पर कांग्रेस अध्‍यक्ष हैं। इसी को देखते हुए कांग्रेस ही नहीं, पूरा देश यह मानकर चल रहा है कि आज नहीं तो कल राहुल गांधी कांग्रेस अध्‍यक्ष बनेंगे ही।

यही कारण है कि आम जनता के साथ-साथ कांग्रेस के जमीनी नेताओं में भी कांग्रेस के प्रति विश्‍वास घटता जा रहा है। राज्‍यों में मची भगदड़ की वजह यह भी है कि जनाधार वाले नेताओं को कांग्रेसी परिवारवाद में अपना भविष्‍य अंधकारमय नजर आने लगा है और वे सुरक्षित ठिकाने की तलाश में हैं।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)