लगातार पराजय के बाद भी बदलाव को तैयार नहीं कांग्रेस

कांग्रेस ने 2014 के लोक सभा चुनावों में मिली करारी शिकस्‍त के बाद ए के एंटनी की अध्‍यक्षता में एक समिति गठित की थी। एंटनी समिति की एक अहम सिफारिश थी कि मुस्‍लिमपरस्‍त नीतियों के कारण कांग्रेस को करारी हार मिली। इसके बावजूद कांग्रेस अपनी मुस्‍लिमपरस्‍त नीतियों से बाज नहीं आई। यही कारण है कि कांग्रेस की हार का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रह है। अभी चार राज्यों और एक केन्द्रशासित प्रदेश के चुनाव में भी कांग्रेस पराजित हुई है। तब भी वो अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों में बदलाव को तैयार नहीं है।  अभी पिछले दिनों ही पंजाब के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के एकमात्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र मालेरकोटला को राज्‍य का 23वां जिला घोषित किया।

इन दिनों कोरोना महामारी के बहाने कांग्रेस की दयनीय दशा पर एक चुटकुला सोशल मीडिया पर एक जबर्दस्‍त हिट हुआ है। चुटकुले के मुताबिक एक-दो महीने दुकान-कारोबार बंद होने से हमारी चीखें निकल गईं लेकिन मोदी सरकार आने के बाद पिछले सात सालों से जिनकी दुकाने बंद पड़ी हैं उनका क्‍या हाल होगा?

वैसे तो यह कटाक्ष देश के अधिकांश राजनीतिक दलों पर सटीक बैठता है लेकिन इसे कहा गया है कांग्रेस के संदर्भ में ही। इसका कारण है कि 2004 से 2014 तक केंद्र में सत्‍ताधारी रहने वाली 134 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी का दायरा मात्र सात वर्षों में इतना सिमट जाएगा यह किसी ने सोचा भी नहीं था।

अब तो स्‍थिति यहां तक आ गई है कि कई राज्‍यों में कांग्रेस की विपक्ष की हैसियत भी नहीं बची है। हाल ही में संपन्‍न हुए पांच राज्‍यों के चुनाव में दो और राज्‍यों में कांग्रेस का विपक्ष का ओहदा छिन गया। पुद्दुचेरी में दो महीने पहले तक सत्‍ता में रही कांग्रेस इस चुनाव में तीसरे नंबर पर खिसक गई। यही कारण है कि अब कांग्रेस की अखिल भारतीय पहचान भी धूमिल पड़ने लगी है।

गौरतलब है कि हाल ही में चार राज्‍यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में हुए विधान सभा चुनावों में पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा है। असम और केरल में सत्ता में वापसी का प्रयास कर रही कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी। वहीं, पश्चिम बंगाल में उसका खाता भी नहीं खुल सका। पुद्दुचेरी में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा जहां कुछ महीने पहले तक वह सत्ता में थी।

हाँ, तमिलनाडु में उसके लिए राहत की बात रही कि द्रमुक की अगुवाई वाले उसके गठबंधन को जीत मिली। इस स्थिति को देखते हुए कांग्रेस की कार्यकारी अध्‍यक्षा सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस में चीजों को दुरुस्‍त करना होगा। इसके साथ ही उन्‍होंने इस चुनावी हार के कारणों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने का एलान किया।

सोनिया गांधी के एलान के बाद महाराष्‍ट्र के पूर्व मुख्‍यमंत्री अशोक चव्‍हाण की अध्‍यक्षता में पांच सदस्‍यीय समिति गठित कर दी गई। इस समिति में चव्‍हाण के अलावा सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी, विंसेट एच पाला और जोथी मनी शामिल हैं। यह समिति चुनावी राज्‍यों में जाएगी और पार्टी के कार्यकर्ताओं, उम्‍मीदवारों से लेकर राज्‍य के शीर्ष नेतृत्‍व से बातचीत कर रिपोर्ट तैयार करेगी।

कांग्रेस ने 2014 के लोक सभा चुनाव में मिली करारी शिकस्‍त के बाद ए के एंटनी की अध्‍यक्षता में समिति गठित की थी लेकिन समिति के सुझावों पर अमल नहीं किया। एंटनी समिति की एक अहम सिफारिश थी कि मुस्‍लिमपरस्‍त नीतियों के कारण कांग्रेस को करारी हार मिली।

इसके बावजूद कांग्रेस अपनी मुस्‍लिम परस्‍त नीतियों से अब भी बाज नहीं आ रही है। अभी पिछले दिनों ही पंजाब के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के एकमात्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र मालेरकोटला को राज्‍य का 23वां जिला घोषित किया।

स्‍पष्‍ट है, अशोक चव्‍हाण समिति की सिफारिशों का भी वही हश्र होगा जो एंटनी समिति की सिफारिशों का हुआ। दरअसल कांग्रेस पार्टी शुरू से ही मुस्‍लिमपरस्‍ती और परिवारवाद की राजनीति करती रही है लेकिन कारगर विकल्‍प के अभाव में उसका सिक्‍का चलता रहा। नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में जमीनी और कारगर विकल्‍प उपलब्‍ध होते ही कांग्रेस की वोट बैंक वाली राजनीति ध्‍वस्‍त होती जा रही है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)