कोरोना आपदा ने समझाया कि क्यों जरूरी है नागरिकों का डाटाबेस

जो लोग मोदी सरकार की डिजिटल इंडिया, बैंक खातों-राशन कार्डों को आधार  संख्‍या से जोड़ने, प्रत्‍यक्ष नकदी हस्‍तांतरण जैसी अनूठी मुहिम का निजता के हनन के नाम पर विरोध कर रहे थे उन्‍हें बताना चाहिए कि यदि ये उपाय न किए गए होते तो क्या कोरोना आपदा के समय करोड़ों लोगों के बैंक खातों तक तुरंत मदद पहुंच पाती?

यदि मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया के तहत नकदी हस्‍तांतरण की बिचौलियामुक्‍त व्‍यवस्‍था न की होती तो राहत सामग्री बांटने के नाम पर आज देश भर के ग्राम प्रधान, लेखपाल, पार्षद मलाई काट रहे होते। यहां पूर्व प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय राजीव गांधी का कथन प्रासंगिक है दिल्‍ली से एक रूपया भेजते हैं तो गांवों तक 15 पैसे पहुंचता है 85 पैसा बिचौलिए हड़प लेते हैं। यदि देश की गरीबी, बेकारी, असमानता, नक्‍सलवाद, उग्रवाद की जड़ तलाशी जाए तो वह इसी संगठित लूट में ही मिलेगी। 

सांकेतिक चित्र (साभार : KalingaTV)

इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी एक ऐसी बिचौलियामुक्‍त व्‍यवस्‍था बनाने में जुट गए जिसमें दिल्‍ली से भेजा गया रूपया बिना किसी बंदरबाट के सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में पहुंचे। इस दिशा में पहला ठोस कदम था सभी भारतीयों का बैंक खाता। इसके लिए 2014 में प्रधानमंत्री जन धन योजना शुरू की गई और इस योजना के तहत 38 करोड़ बैंक खाते खोले गए। इन नए बैंक खातों में से 53 प्रतिशत खाते महिलाओं द्वारा खोले गए। विश्‍व बैंक ने इस मुहिम की प्रशंसा करते हुए कहा है कि इससे देश की करोड़ों महिलाओं को औपचारिक बैंकिंग तंत्र से जुड़ने का मौका मिला। 

इतना ही नहीं प्रधानमंत्री जन धन योजना ने गांवों और शहरों के बीच की खाई को भी पाटने का काम किया। विश्‍व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत देश में जितने बैंक खाते खोले गए उसमें से 58 प्रतिशत ग्रामीण व कस्‍बाई इलाकों में स्‍थित बैंक शाखाओं में खुले। इन सबका नतीजा यह हुआ कि आज 80 प्रतिशत से अधिक वयस्‍कों के पास बैंक खाता है जबकि 2014 में यह अनुपात महज 50 प्रतिशत था।

इसी तरह पूरे देश में ई गवर्नेंस, ई-हेल्‍थ, ई-एजुकेशन, ई-बैंकिंग, स्‍मार्ट फोन, इंटरनेट जैसी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री ने 2015 में डिजिटल इंडिया योजना की शुरूआत किया। इसका उद्देश हर स्‍तर पर कागज रहित प्रक्रिया को अपनाना ताकि बिचौलियों की समानांतर सत्‍ता खत्‍म हो जाए। सरकार डिजिटल इंडिया को सूचना प्रौद्योगिकी का बहुआयामी हथियार बना रही है। 

डिजिटल क्रांति का ही नतीजा है कि तेज रफ्तार वाला इंटरनेट, 4 जी स्‍मार्ट फोन और कमोबेश हरेक विषय पर डिजिटल सामग्री अब बेहद कम दामों पर सबके लिए सुलभ है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सेल फोन बाजार भारत में है। इन्‍हीं सुविधाओं का लाभ उठाकर समाज के कमजोर वर्ग अपने को सशक्‍त बना रहे हैं। 

कोरोना आपदा ने राष्‍ट्रीय जनसंख्‍या रजिस्‍टर (एनपीआर) और राष्‍ट्रीय नागरिकता रजिस्‍टर (एनआरसी) की प्रासंगिकता को एक बार फिर उजागर कर दिया। यदि केंद्र व राज्‍य सरकारों के पास जनसंख्‍या संबंधी प्रामाणिक डाटाबेस होता तो उसी आधार पर सरकारें संक्रमण की जांच कर पातीं और आपदा की स्‍थिति में प्रभावित लोगों तक तुरंत मदद पहुंचा देतीं। 

भारत के संदर्भ में सबसे दुर्भाग्‍यपूर्ण स्‍थिति यह है कि यहां की आबादी का कोई डाटाबेस नहीं है जिससे यह नहीं पता चल पाता है कि कौन देश में आ रहा है और कौन जा रहा है। इसी का फायदा उठाकर लाखों बांग्‍लादेशी घुसपैठिए देश के नागरिक बन चुके हैं। इसी का अनुसरण म्‍यांमार के रोहिंग्‍या शरणार्थी कर रहे हैं।

एनपीआर पर देश के कई शहरों में हिंसा करने और महीनों तक सड़क जाम करने वाले धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार क्‍या यह बताएंगे कि निजामुद्दीन स्‍थित तबलीगी जमात में दुनिया के कई देशों से आए लोगों की जानकारी क्‍यों छिपाई गई? यदि जमात के लोगों से देश भर में कोरोना संक्रमण न फैलता तो देश यह जान ही न पाता कि दुनिया के किन-किन देशों से कितने लोग जमात में शामिल हुए। 

स्‍पष्‍ट है, कोरोना संकट को देखते हुए भले ही सरकार ने जनगणना 2021 और एनपीआर तैयार करने के कार्य को अगले आदेश तक स्‍थगित कर दिया हो लेकिन एनपीआर और एनआरसी की जरूरत को झुठलाया नहीं जा सकता। एनपीआर डाटा बेस में जनसांख्‍यिकी एवं बायोमेट्रिक जानकारी रहेगी। वैसे निवासी जो छह माह या उससे ज्‍यादा समय से किसी क्षेत्र में रह रहे हों उनके लिए एनपीआर में पंजीकरण कराना अनिवार्य हो जाएगा। 

एनपीआर का उद्देश्‍य है देश के सभी नागरिकों की पहचान को व्‍यापक डाटाबेस के साथ जोड़ा जाए ताकि सरकारी योजना का लाभ सही व्‍यक्‍ति तक पहुंचे। इससे आंतरिक सुरक्षा सुदृढ़ करने और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में भी सहायता मिलेगी। इसके साथ-साथ एनपीआर से आपदा के समय प्रभावित व्‍यक्‍तियों की ट्रैकिंग और उन तक राहत सामग्री पहुंचाने का काम आसान हो जाएगा। एनपीआर के यही आंकड़े आगे चलकर एनआरसी का आधार बनेंगे।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)