अर्थव्यवस्था को गति देने वाले हैं रिजर्व बैंक के सुधारात्मक उपाय

ग्रामीण मांग, शहरी मांग, कृषि उत्पादन, आर्थिक गतिविधियों का स्थिरीकरण आदि विकास को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक हैं। इसलिए, अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए और सुधार प्रक्रिया को जारी रखने के लिए रिजर्व बैंक प्रतिबद्ध है और इस दिशा में वह निरंतर सुधारात्मक उपायों को अमलीजामा भी पहना रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 7 अप्रैल को मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया। यह निर्णय मौद्रिक नीति समिति ने एकमत से लिया। इसलिये, पहले की भाँति रेपो दर 4 प्रतिशत पर, रिवर्स रेप दर 3.35 प्रतिशत पर और एमएसएफ व बैंक दर 4 प्रतिशत पर बरकरार रहेगा। समिति के अनुसार आर्थिक वृद्घि को बरकरार रखने के लिए मौद्रिक रुख को उदार बनाये रखना जरूरी है। 

मुद्रास्फीति को भी तय दायरे के भीतर रखने के लिए रिजर्व बैंक प्रतिबद्ध है। हालांकि, रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति का संशोधित अनुमान 5 प्रतिशत लगाया है, जो पहले 5.2 प्रतिशत था। चालू वित्त वर्ष की पहली तथा दूसरी तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति के 5.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। तीसरी तिमाही में यह 4.4 प्रतिशत रह सकती है। 

पिछले वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक ने खुले बाजार परिचालन से 3.13 लाख करोड़ रुपये के बॉन्ड की खरीद की थी, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में यह 1 लाख करोड़ रुपये का बॉन्ड खरीदेगा, जिसकी शुरुआत 15 अप्रैल को 25,000 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदने से होगी। रिजर्व बैंक की इस पहल से बाजार में तरलता बढ़ने का अनुमान है। 

कोरोना महामारी की वजह से कुछ संकटग्रस्त क्षेत्रों, जिसमें गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) कंपनियाँ भी शामिल हैं, को उबारने के लिए ऑन टैप टीएलटीआरओ योजना को 31 मार्च, 2021 तक के लिए लागू किया गया था। कोरोना संकट की दूसरी लहर को देखते हुए इस योजना की अवधि को बढ़ाकर 30 सितंबर, 2021 किया गया है, ताकि संकटग्रस्त क्षेत्रों को कर्ज की सुविधा सुचारु रूप से उपलब्ध कराई जा सके।  

साभार : Nyooz

भारतीय रिजर्व बैंक पहले ही पुनर्वित्त सुविधा प्रदान करने की योजना के तहत अप्रैल से अगस्त 2020 के दौरान 75,000 करोड़ रुपए वित्तीय संस्थानों को उपलब्ध करा चुका है। अब मौद्रिक समीक्षा में पुनः रिजर्व बैंक ने 50,000 करोड़ रुपए वित्तीय संस्थानों को देने की बात कही है। इसके तहत नाबार्ड को 25,000 करोड़ रुपए, नेशनल हाउसिंग बैंक (एनएचबी) को 10,000 करोड़ रुपए और सिडबी को 15,000 करोड़ रुपए दिया जायेगा। 

इससे ग्रामीण क्षेत्र को ज्यादा कर्ज दिया जाना मुमकिन हो सकेगा, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आयेगी। रिजर्व बैंक ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की कुल विशेष सकल उधारी की सीमा को भी बढ़ाकर 47,010 करोड़ रुपए कर दी है। रिजर्व बैंक कर्ज एवं अन्य उपायों के जरिये बाजार में नकदी के प्रवाह बढ़ाएगा, ताकि बाजार में मांग और आपूर्ति में वृद्धि हो और विकास को गति मिल सके।  

भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक समीक्षा में तालाबंदी के कारण विदेशी बाज़ारों से व्यवसायिक कर्ज (ईसीबी) का उपयोग नहीं करने वाली कंपनियों को राहत दी है। बिना उपयोग वाली 1 मार्च 2020 से पहले ईसीबी के जरिये जुटाई गई राशि देश के बैंकों में मियादी जमा के रूप में 1 मार्च 2022 तक रखी जा सकती है। ईसीबी नियम के तहत कर्जदारों को भारत में मियादी जमा के रूप में राशि अधिकतम 12 महीने रखने की अनुमति है। इस संदर्भ में अलग से रिजर्व बैंक दिशानिर्देश जारी करेगा।  

एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों (एआरसी) के लिए नियामक दिशा-निर्देश वर्ष 2003 में जारी किए गए थे। वर्ष 2003 में सभी अनुसूचित व्यावसायिक बैंक (एएससीबी) का सकल गैर निष्पादित आस्ति (जीएनपीए) राशि में 0.68 लाख करोड़ रुपए था, जो मार्च 2020 में 13 गुणा बढ़कर 9 लाख करोड़ रुपये हो गया।

नवीनतम सूची के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक के पास 28 एआरसी पंजीकृत हैं, लेकिन तनावग्रस्त परिसंपत्तियों को कम करने की दिशा में ये अपेक्षित परिणाम नहीं दे सके हैं। इसलिए मौजूदा एआरसी को अपने काम-काज को और भी ज्यादा प्रभावी बनाना होगा। 

यहाँ बताना समीचीन होगा कि दिसंबर 2020 तक भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (आईबीसी) के तहत वसूली 39.80 प्रतिशत हुई, जो राशि में 1.97 लाख करोड़ रुपए है, जबकि दावे की कुल राशि 4.96 लाख करोड़ रुपए है।

एनबीएफसी में तरलता को बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक ने बैंकों को 30 सितंबर, 2021 तक पंजीकृत एनबीएफसी (एमएफआई को छोड़कर) को उधार देने पर उसे प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (पीएसएल) के रूप में वर्गीकृत करने की अनुमति दी है। मामले में ऋण का प्रतिशत कुल पीएसएल का 5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। यह ऋण सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्यम (एमएसएमई), आवास, कृषि आदि क्षेत्रों को दिया जा सकेगा।  

अब भारत में वित्तीय समावेशन के प्रदर्शन को मापने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर “वित्तीय समावेशन सूचकांक” प्रकाशित करेगा। इसके माध्यम से वित्तीय समावेशन अभियान की वास्तविक स्थिति का पता चल सकेगा, जिससे सरकार सुधारात्मक कदम उठा सकेगी।

रिजर्व बैंक ने वेयर हाउस रिसीट के आधार पर ऋण देने की सीमा को 50 लाख रुपए से बढ़ाकर 75 लाख रुपए की है। इस पहल से किसानों को कम नकदी की समस्या का सामना करना पड़ेगा, जिससे वे खेती-किसानी के कार्यों को कुशलतापूर्वक करने में सक्षम होंगे। 

कोरोना काल में ऑनलाइन सुविधाओं को बढ़ाते हुए रिजर्व बैंक ने एयरटेल, पेटीएम और इंडिया पोस्ट जैसे भुगतान बैंकों की जमा सीमा को 1 लाख से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दी है। यह सुविधा तत्काल प्रभाव से लागू होगी। अब भुगतान बैंक और फिनटेक कंपनियाँ भी आरटीजीएस और एनईएफटी की मदद से राशि अंतरित कर सकेंगे। रिजर्व बैंक के अनुसार केवाईसी की प्रक्रिया पूरी हुई रहने पर पेटीएम, मोबिक्विक जैसे डिजिटल वॉलेट और गैर-बैंकिंग कंपनियों के प्रीपेड कार्ड से नकदी निकालने की सुविधा भी ग्राहकों को दी जायेगी। 

माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक के इस फैसले से मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल एटीएम की तरह किया जा सकेगा। अभी ऐसे कार्डों से नकदी निकालने की मंजूरी केवल बैंकों द्वारा जारी प्रीपेड पेमेंट इन्स्टृमेंट (पीपीआई) (क्रेडिट-डेबिट कार्ड) को ही है। फोरेक्स कार्ड, डिजिटल वॉलेट और गैर-बैंकों के एटीएम कार्ड इसी पीपीआई के दायरे में आते हैं।

रिजर्व बैंक ने आरटीजीएस और एनईएफटी के मदद से राशि अंतरित करने का जो दायरा बढ़ाया है, उसमें पीपीआई जारी करने वाली कंपनियाँ शामिल हैं। रिजर्व बैंक के इन फैसलों से ऑनलाइन बैंकिंग को और भी ज्यादा बढ़ावा मिलेगा और नकदी की किल्लत से जूझ रहे बाजार को राहत मिलेगी।  

सूचीबद्ध कॉरपोरेट कंपनियों ने वित्त वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही में बेहतर वृद्धि दर्ज की है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2021 की चौथी तिमाही में कॉर्पोरेट कंपनियाँ जैसे, आटोमोबाइल, एफएमसीजी, सीमेंट, स्टील, उपभोक्ता टिकाऊ क्षेत्र आदि वृद्धि दर्ज करेंगे।

विभिन्न क्षेत्रों के रेटिंग के विश्लेषण से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2021 की दूसरी तिमाही के बाद से ऋण अनुपात में सुधार हुआ है। वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में ऋण अनुपात में 0.24 प्रतिशत का सुधार हुआ है। कुछ क्षेत्रों जैसे कैपिटल गुड्स, हेल्थकेयर, फार्मा, स्टील, सीमेंट आदि क्षेत्रों में ऋण अनुपात में सुधार हुआ है। 

ग्रामीण मांग, शहरी मांग, कृषि उत्पादन, आर्थिक गतिविधियों का स्थिरीकरण आदि विकास को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक हैं। इसलिए, अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए और सुधार प्रक्रिया को जारी रखने के लिए रिजर्व बैंक प्रतिबद्ध है और इस दिशा में वह निरंतर सुधारात्मक उपायों को अमलीजामा भी पहना रहा है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)