मोदी सरकार की नीतियों से बढ़ रहा देश का विदेशी मुद्रा भण्डार

विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने का सीधा मतलब है कि निर्यात या निवेश में तेजी आ रही है। इसके बढ़ने से घरेलू मुद्रा भी मजबूत बना रहता है। कहा जा सकता है कि विदेशी मुद्रा में इजाफा होना अर्थव्यवस्था के विकास लिये सकारात्मक स्थिति है। अगर विदेशी मुद्रा भंडार में इसी तरह से बढ़ोतरी होती है तो निश्चित रूप से आने वाले दिनों में देश के विकास दर में और भी ज्यादा इजाफा होगा।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 19 अप्रैल, 2019 को 1.10 अरब डॉलर बढ़कर 414.88 अरब डॉलर हो गया, जो 28,758 अरब रुपये के बराबर है। रिजर्व बैंक के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार को डॉलर में व्यक्त किया जाता है, लेकिन इसपर पाउंड स्टर्लिंग, येन जैसी अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ाव का भी प्रभाव पड़ता है। 

समान अवधि में देश का स्वर्ण भंडार 23.30 अरब डॉलर रहा, जो 1,611.9 अरब रुपये के बराबर है। इस दौरान, देश के विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) का मूल्य 33 लाख डॉलर बढ़कर 1.45 अरब डॉलर हो गया, जो 101.1 अरब रुपये के बराबर है।दुनिया के लगभग हर देश को आयात की जरूरतों को पूरा करने के लिये विदेशी मुद्रा भंडार रखना होता है, क्‍योंकि दूसरे देशों से आयात करने के लिये डॉलर, येन, यूरो जैसी मुद्राओं का स्‍टॉक होना जरूरी होता है। विदेशी मुद्राओं का प्रबंधन करने का काम रिजर्व बैंक करता है।

साभार : performindia

आम तौर पर निर्यातक जो विदेशी मुद्रा लाते हैं, वह बैंकों से रुपये की अदला-बदली के जरिेये विदेशी मु्द्रा भंडार में पहुंचती हैं। शेयर बाजार में निवेश और विदेशी कंपनियों के भारत में निवेश भी विदेशी मुद्राओं में होते हैं, क्योंकि डॉलर, यूरो, येन रुपये से बदले जाते हैं, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होती है। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में एक बड़ा हिस्‍सा अमेरिकी डॉलर का है, वैसे, दूसरी मुद्राओं जैसे, यूरो, येन आदि का भी इसमें अहम हिस्सा होता है।

मुद्राओं के विनियम दर में कमी या वेशी होने से विदेशी मुद्रा भंडार का मूल्‍य भी घटता-बढ़ता है। इसके अतिरिक्त, हर देश के पास संकट के समय अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (आईआईएमएफ) से विदेशी मुद्रा लेने का अधिकार होता है, जिसे स्‍पेशल ड्राइंग राइट्स यानी एसडीआर कहते हैं।

देश में डॉलर की आवक ज्‍यादा होने पर विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होती है, लेकिन यदि डॉलर देश से बाहर जाता है तो इसमें गिरावट आती है। निर्यातकों एवं आयातकों की मांग-आपूर्ति से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आती है या फ़िर बढ़त। शेयर बाजार में निवेश की आवाजाही से भी यह प्रभावित होता है।

विदेशी मुद्रा भंडार में एक सीमा से ज्यादा कमी आने से घरेलू मुद्रा कमजोर होने लगता है। विदेशी मुद्रा भंडार किसी देश के अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। रिजर्व बैंक की बैलेंस शीट में, घरेलू ऋण के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंडार शामिल होता है।

विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने का सीधा मतलब है कि निर्यात या निवेश में तेजी आ रही है। इसके बढ़ने से घरेलू मुद्रा भी मजबूत बना रहता है। कहा जा सकता है कि विदेशी मुद्रा में इजाफा होना अर्थव्यवस्था के विकास लिये सकारात्मक स्थिति है। अगर विदेशी मुद्रा भंडार में इसी तरह से बढ़ोतरी होती है तो निश्चित रूप से आने वाले दिनों में देश के विकास दर में और भी ज्यादा इजाफा होगा।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)