अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक-पर्व है दीपावली

असतो मा सद्गमय।

तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मा अमृतं गमय।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

अर्थात्

असत्य से सत्य की ओर।

अंधकार से प्रकाश की ओर।

मृत्यु से अमरता की ओर।

ॐ शांति शांति शांति।।

इस प्रार्थना में अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की कामना की गई है। दीपों का पावन पर्व दीपावली भी यही संदेश देता है। यह अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है। दीपावली का अर्थ है दीपों की श्रृंखला। दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों ‘दीप’ एवं ‘आवली’ अर्थात ‘श्रृंखला’ के मिश्रण से हुई है। दीपावली का पर्व कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। वास्तव में दीपावली एक दिवसीय पर्व नहीं है, अपितु यह कई त्यौहारों का समूह है, जिनमें धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज सम्मिलित हैं। दीपावली महोत्सव कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की दूज तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है। धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। तुलसी या घर के द्वार पर दीप जलाया जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन यम की पूजा के लिए दीप जलाए जाते हैं।  गोवर्धन पूजा के दिन लोग गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर उसकी पूजा करते हैं। भैया दूज पर बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके लिए मंगल कामना करती है। इस दिन यमुना नदी में स्नान करने की भी परंपरा है।

मान्यता यह भी है कि दीपावली का पर्व भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी से संबंधित है। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से प्रारंभ होता है। समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में लक्ष्मी भी एक थीं, जिनका प्रादुर्भाव कार्तिक मास की अमावस्या को हुआ था। उस दिन से कार्तिक की अमावस्या लक्ष्मी-पूजन का त्यौहार बन गया। दीपावली की रात को लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे विवाह किया था। मान्यता है कि दीपावली के दिन विष्णु की बैकुंठ धाम में वापसी हुई थी।

प्राचीन हिंदू ग्रंथ रामायण के अनुसार दीपावली के दिन श्रीरामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने श्रीराम के स्वागत में घी के दीप जलाए थे। प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार दीपावली के दिन ही 12 वर्षों के वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी हुई थी। मान्यता यह भी है कि दीपावली का पर्व भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी से संबंधित है। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से प्रारंभ होता है। समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में लक्ष्मी भी एक थीं, जिनका प्रादुर्भाव कार्तिक मास की अमावस्या को हुआ था। उस दिन से कार्तिक की अमावस्या लक्ष्मी-पूजन का त्यौहार बन गया। दीपावली की रात को लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे विवाह किया था। मान्यता है कि दीपावली के दिन विष्णु की बैकुंठ धाम में वापसी हुई थी।

कृष्ण भक्तों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात धन्वंतरि प्रकट हुए। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं। जो लोग इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उन पर देवी की विशेष कृपा होती है। लोग लक्ष्मी के साथ-साथ संकट विमोचक गणेश, विद्या की देवी सरस्वती और धन के देवता कुबेर की भी पूजा-अर्चना करते हैं।

अन्य हिन्दू त्यौहारों की भांति दीपावली भी देश के अन्य राज्यों में विभिन्न रूपों में मनाई जाती है। बंगाल और ओडिशा में दीपावली काली पूजा के रूप में मनाई जाती है। इस दिन यहां के हिन्दू देवी लक्ष्मी के स्थान पर काली की पूजा-अर्चना करते हैं। उत्तर प्रदेश के मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा पर्व माना जाता है। गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पर श्रीकृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।

diwali

दीपावली का ऐतिहासिक महत्व भी है। हिन्दू राजाओं की भांति मुगल सम्राट भी दीपावली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया करते थे। सम्राट अकबर के शासनकाल में दीपावली के दिन दौलतखाने के सामने ऊंचे बांस पर एक बड़ा आकाशदीप लटकाया जाता था। बादशाह जहांगीर और मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर ने भी इस परंपरा को बनाए रखा। दीपावली के अवसर पर वे कई समारोह आयोजित किया करते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में भी पूरे महल को दीपों से सुसज्जित किया जाता था। कई महापुरुषों से भी दीपावली का संबंध है। स्वामी रामतीर्थ का जन्म एवं महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था। उन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय समाधि ले ली थी। आर्य समाज के संस्थापाक महर्षि दयानंद ने दीपावली के दिन अवसान लिया था।

जैन और सिख समुदाय के लोगों के लिए भी दीपावली महत्वपूर्ण है। जैन समाज के लोग दीपावली को महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।  इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जैन धर्म के मतानुसार लक्ष्मी का अर्थ है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ है ज्ञान। इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाया जाता है और लड्डू का भोग लगाया जाता है। सिख समुदाय के लिए दीपावली का दिन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन अमृतसर में वर्ष 1577 में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था। वर्ष 1619 में दीपावली के दिन ही सिखों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।

दीपावली से पूर्व लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई करते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य कराते हैं। दीपावली पर लोग नये वस्त्र पहनते हैं। एक-दूसरे को मिष्ठान और उपहार देकर उनकी सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। घरों में रंगोली बनाई जाती है, दीप जलाए जाते हैं। मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। घरों व अन्य इमारतों को बिजली के रंग-बिरंगे बल्बों की झालरों से सजाया जाता है। रात में चहुंओर प्रकाश ही प्रकाश दिखाई देता है। आतिशबाज़ी भी की जाती है। अमावस की रात में आकाश में आतिशबाज़ी का प्रकाश बहुत ही मनोहारी दृश्य बनाता है। 

दीपावली का धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी है। दीपावली पर खेतों में खड़ी खरीफ़ की फसल पकने लगती है, जिसे देखकर किसान फूला नहीं समाता। इस दिन व्यापारी अपना पुराना हिसाब-किताब निपटाकर नये बही-खाते तैयार करते हैं। दीपावली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, लेकिन कुछ लोग इस दिन दुआ खेलते हैं और शराब पीते हैं। अत्यधिक आतिशबाज़ी के कारण ध्वनि और वायु प्रदूषण भी बढ़ता है। हमें इन चीजों से परहेज करते हुए दीपावली के मूल मर्म पर ध्यान देना चाहिए। आवश्यकता है कि दीपों के इस पावन पर्व के संदेश को समझते हुए इसे पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाए।

(लेखक ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया’ विषय पर शोध किए हैं और वर्तमान में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक, जनसंचार विभाग, के पद पर कार्यरत हैं। विष्णु प्रभाकर पत्रकारिता सम्मान, प्रवक्ता डॊट.कॊम सम्मान आदि अनेक सम्मान प्राप्त कर चुके हैं।)