समय रहते लॉकडाउन के कारण ही आज अधिक जांच के बावजूद भारत में कोरोना के मामले कम हैं

जानकारी के अभाव में लोग यह भी कह रहे हैं कि कोरोना के साथ जंग में जापान भारत से आगे है, लेकिन हकीकत इससे अलग है। भारत में 24 लोगों की जांच पर एक मरीज निकल रहा है, जबकि जापान में 11.7, इटली में 6.7, अमेरिका में 5.3 और ब्रिटेन में 3.4 जांच करने पर एक मरीज मिल रहा है। इस तरह मरीजों की संख्या के हिसाब से भारत दूसरे देशों के मुकाबले कई गुना अधिक टेस्ट कर रहा है। भारत में कोरोना से मिलते-जुलते दूसरे संक्रमण वाली बीमारियों जैसे, सर्दी, खांसी, साँस लेने में तकलीफ आदि से ग्रसित मरीजों का भी कोरोना टेस्ट किया जा रहा है।

कोरोना मानव अस्तित्व के लिये आज एक बड़ा खतरा बन गया है, जिससे बचने के उपाय फिलहाल बहुत ही कम दिख रहे हैं। सुधारात्मक उपायों को देर से अमलीजामा पहनाने वाले देशों को धीरे-धीरे यह अपनी चपेट में ले रहा है। चूँकि, फिलहाल इस रोग की कोई दवा नहीं है, इसलिये इसके रोकथाम के लिये जरुरी है कि देशव्यापी लॉकडाउन किया जाये साथ ही साथ संभावित मरीजों की अधिक-से-अधिक संख्या में टेस्ट किए जाएं और कोरोना से संक्रमित मरीजों को तुरंत 14 दिनों के क्वारंटाइन में भेजा जाये। इस तरीके से ही संक्रमित और स्वस्थ लोगों को अलग किया जा सकता है।

इस तरीके को अपनाने से कोरोना महामारी को दूर तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन सरकार जरुर कुछ समय तक के लिये कोरोना से होने वाली बड़ी संख्या में मौतों को टाल सकती है। भारत समेत विश्व के अनेक देशों को उम्मीद है कि वैज्ञानिक जल्द ही इस महामारी का टीका और दवा ढूंढने में कामयाब होंगे। विश्व के अनेक देशों के वैज्ञानिक इस बीमारी का समाधान निकालने के लिये विगत महीनों से निरंतर अनुसंधान कर रहे हैं। 

कोरोना से बचने के लिये भारत में समय रहते सरकार ने लॉकडाउन की नीति अपना ली जिस कारण आज भारत की स्थिति उसकी विशाल जनसंख्या  के बावजूद अन्य देशों से बेहतर है। इस बात की तस्दीक आंकड़े भी कर रहे हैं। 16 अप्रैल तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर पश्चिमी देशों के मुकाबले कोरोना के काफी कम मरीज हैं। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि भारत में लॉकडाउन से पहले 3 दिनों में कोरोना के मरीज दोगुने हो रहे थे, अब कोरोना के मरीजों की संख्या दोगुनी होने में औसतन 6.2 दिनों का समय लग रहा है।

देश के 19 राज्यों में यह अवधि और भी ज्यादा है। इन राज्यों में केरल, असम, पंजाब, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा आदि शामिल हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार जो लोग कोरोना से जंग हार रहे हैं उनमें से अधिकांश की उम्र 63 साल से अधिक है। इस उम्र वाले लोग अमूमन पहले से ही दूसरी  गंभीर बीमारियों से ग्रसित होते हैं।        

एक सवाल यह उठाया जा रहा है कि देश में कोरोना की जाँच कम हो रही है जिससे मामले कम आ रहे, लेकिन लोगों की यह धारणा गलत है, क्योंकि भारत में स्क्रीनिंग काफी तेज रफ़्तार से की जा रही है, लेकिन कोरोना के लक्षण मिलने पर ही संभावित मरीजों की जाँच की जाती है। उदाहरण के तौर पर बिहार के 38 जिलों में 2 दिनों (16 एवं 17 अप्रैल) के अंदर 48 लाख से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग की गई है। यह सही भी है, क्योंकि सभी का कोरोना का टेस्ट करने से आमजन भयभीत होंगे, जिससे समस्या और बढ़ने की संभावना खड़ी हो जाएगी।

जानकारी के अभाव में लोग यह भी कह रहे हैं कि कोरोना के साथ जंग में जापान भारत से आगे है, लेकिन हकीकत इससे अलग है। भारत में 24 लोगों की जांच पर एक मरीज निकल रहा है, जबकि जापान में 11.7, इटली में 6.7, अमेरिका में 5.3 और ब्रिटेन में 3.4 जांच करने पर एक मरीज मिल रहा है। इस तरह मरीजों की संख्या के हिसाब से भारत दूसरे देशों के मुकाबले कई गुना अधिक टेस्ट कर रहा है। भारत में कोरोना से मिलते-जुलते दूसरे संक्रमण वाली बीमारियों जैसे, सर्दी, खांसी, साँस लेने में तकलीफ आदि से ग्रसित मरीजों का भी कोरोना टेस्ट किया जा रहा है।

भारत में कोरोना के संक्रमण की गति को कम करने में सरकार को सफलता मिली है। भारत में 10 लाख की जनसंख्या पर कोरोना के 9 मरीज मिलें हैं, जबकि इसका वैश्विक औसत 267 मरीजों का है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि लॉकडाउन को अमलीजामा पहनाने की वजह से ही देश के 736 जिलों में से 325 जिले कोरोना के प्रकोप से मुक्त हैं। देश में 28 जिले ऐसे भी हैं, जहाँ पहले कोरोना के मरीज थे, लेकिन विगत 14 दिनों से कोई कोरोना का नया मरीज नहीं आया है। इतना ही नहीं, भारत अभी भी कोरोना के सामुदायिक संक्रमण से बचा हुआ है।

भारत में कोरोना संक्रमण के प्रसार की संभावनाओं के संबंध में ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म प्रोटिविटी और टाइम्स नेटवर्क ने भी एक अध्ययन किया है, जिसके निहितार्थ बेहद ही सकारात्मक हैं।  टाइम्स फैक्ट-इण्डिया-आउटब्रेक की रिपोर्ट, जो 16 अप्रैल को जारी की गई है, में कहा गया है कि भारत में मई महीने के तीसरे सप्ताह तक ही कोरोना वायरस का प्रभाव रहेगा। उसके बाद यह कमजोर पड़ने लगेगा। इस अध्ययन में 8 राज्यों, देश के शीर्ष 3 हॉट स्पॉटस, स्वास्थ्य मंत्रालय का दैनिक बुलेटिन, विदेशों में कोरोना के बढ़ने की प्रवृति आदि के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

कहा जा सकता है कि कोरोना के बारे में अभी भी जागरूकता फ़ैलाने की जरुरत है। बहुत सारे लोग, जिसमें पढ़े-लिखे लोग भी शामिल हैं, इसकी गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं। मौजूदा समय में जरुरत यह है कि हम कस्बाई, गाँवों और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को इस आपदा के बारे में बतायें और जागरूक करें। वर्तमान में सिर्फ सावधानी बरतकर ही हम कोरोना की धार को कुंद कर सकते हैं, क्योंकि इसका इलाज फ़िलहाल किसी भी देश के पास उपलब्ध नहीं है।

अभी कोरोना से ग्रसित वैसे ही मरीज ठीक हो रहे हैं जिनके शरीर में बीमारियों से लड़ने की बेहतर प्रतिरोधक क्षमता है। हालाँकि, कोरोना के मरीजों को मलेरिया आदि की दवाइयां प्रयोग के तौर पर दी जा रही हैं, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि ठीक होने वाले कोरोना के मरीज दी गई दवाइयों से ठीक हुए हैं या अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के कारण। इसलिये, मौजूदा समय में हम सभी लॉकडाउन का शत-प्रतिशत अनुपालन सुनिश्चित करें, इसी में हमारी और देश की बेहतरी है। सरकार अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रही है, नागरिक के रूप में हमें भी नियमों का पालन कर उसका सहयोग करते रहने की आवश्यकता है। इसी तरह यह लड़ाई जीती जा सकती है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)