राफेल पर कांग्रेस के झूठ की खुल रही पोल!

कुछ दिन पूर्व ही न्यूज़ चैनल एएनआई को दिए गए साक्षात्कार में दसॉल्ट कंपनी के सीईओ एरेकि ट्रैपियर ने बताया कि 36 विमानों की कीमत बिल्कुल उतनी ही है, जितनी पूर्व में 18 विमानों की तय की गई थी। ट्रैपियर ने कहा कि विमानों की संख्या 18 से बढ़कर 36 हो गई है, तो कुल कीमत में वृद्धि स्वाभाविक है। लेकिन चूंकि यह डील भारत सरकार और फ्रांस सरकार के बीच थी, इसलिए कीमतें उन्होंने तय कीं, जिस कारण इसके दाम 9 फीसद कम हो गए।

अगले वर्ष आम चुनाव होने हैं और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस वर्तमान में इस स्थिति में नहीं है कि वह चुनावों में जनता के भरोसे पर खरी उतर सके। सत्ता में विफल रहने के बाद पिछले साढ़े चार सालों में विपक्ष के रूप में भी कांग्रेस की भूमिका बेअसर रही है। वाजिब मुद्दों के अभाव में कांग्रेस फिजूल के मुद्दों की हवा बनाने में लगी है। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी समेत पूरी पार्टी ने देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर राफेल के मुद्दे पर देशभर में घूम-घूमकर झूठ फ़ैलाने का एक अभियान चला रखा है। लेकिन एक-एक कर उनके झूठ की पोल खुलती जा रही है। 

बीते कुछ दिनों में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनावी सभाओं के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल पर अनगिनत झूठ बोले हैं। कांग्रेस को उसके झूठ पर हर बार केंद्र सरकार ने बेनकाब किया है और तथ्यों से उसका जवाब दिया है। यहाँ तक कि खुद फ्रांस सरकार ने भी कांग्रेस के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। बावजूद इसके कांग्रेस इसे मानने को तैयार नहीं है।

सांकेतिक चित्र (साभार : यूएनआई)

गौरतलब है कि अभी हाल ही में एचएएल (हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड) ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि वह राफेल विमानों की डिलीवरी में किसी भी तरह से पार्टनर नहीं है। कांग्रेस ने आरोप लगाए थे कि 2015 में एचएएल के चेयरमैन ने दसॉल्ट का दौरा किया था, इसे भी एचएएल ने नकार दिया। एचएएल ने साफ़ तौर पर स्पष्ट करते हुए बताया कि इस वक्त लाइसेंस के तहत जिन तीन विमान/हेलिकॉप्टर्स का निर्माण वह कर रहा है, उनमें सुखोई-30, डॉर्नियर डू -228 और चेतक हेलिकॉप्टर शामिल है।

ज्ञात हो कि कुछ दिन पूर्व ही न्यूज़ चैनल एएनआई को दिए गए साक्षात्कार में दसॉल्ट कंपनी के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने बताया कि 36 विमानों की कीमत बिल्कुल उतनी ही है, जितनी पूर्व में 18 विमानों की तय की गई थी। ट्रैपियर ने कहा कि विमानों की संख्या 18 से बढ़कर 36 हो गई है, तो कुल कीमत में भी वृद्धि स्वाभाविक है। लेकिन चूंकि यह डील भारत सरकार और फ्रांस सरकार के बीच की थी, इसलिए कीमत उन्होंने तय की, जिस कारण इसकी कीमत 9 फीसद कम हो गई।

इसके अतिरिक्त कांग्रेस के रिलायंस पर आरोपों पर भी दसॉल्ट के सीईओ ने कहा कि, रिलायंस कंपनी को हमने खुद चुना था। रिलायंस के अलावा भी इसमें 30 पार्टनर और हैं। ट्रैपियर ने बताया कि राफेल विमानों की डील का समर्थन भारतीय वायुसेना भी कर रही है, क्योंकि उन्हें अपनी रक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाए रखने के लिए लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है। अब यहाँ पर सवाल कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों पर उठता है कि जब वायुसेना को और पूरे देश को इस राफेल समझौते में कोई खामी नजर नहीं आ रही है, तो विपक्षी दलों को इसमें क्या समस्या है?

बहरहाल, कांग्रेस पार्टी राफेल पर जिस तरह का रवैया अपना रही है, उससे तो यही लगता है चाहे फ्रांस सरकार हो या देश की सरकार हो, कांग्रेस को किसी पर भी भरोसा नहीं है और ना ही वह सच जानने के लिए उत्सुक हो। बल्कि उन्हें तो सिर्फ झूठ का महल बनाकर उससे अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करना है। अगर ध्यान दें तो कांग्रेस पार्टी हर चुनाव में राफेल को मुद्दा बनाकर मैदान में उतरती है। लेकिन क्योंकि यह सिर्फ कांग्रेस के लिए आवश्यक है जबकि जनता के लिए तो यह कहीं से कहीं तक भी कोई मुद्दा है ही नहीं।

राहुल गांधी खुद हर दूसरी जगह राफेल विमानों के दाम बढ़ाते और घटाते रहते हैं और उनका ध्यान तथ्यों से ज्यादा ट्विटर पर आरोप लगाने में लगा रहता है। बहरहाल, दसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि, ‘मैं झूठ नहीं बोलता, मेरी छवि झूठ बोलने वाली नहीं है और मेरी स्थिति में रहकर आप झूठ नहीं बोलते’। वहीँ इसके उलट कांग्रेस और उनके अध्यक्ष की छवि ऐसी है कि बिना झूठ बोले उनकी छवि का प्रमाण नहीं मिलता है और उनकी स्थिति में रहकर झूठ बोलना आवश्यक है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार है।)