वो पांच कारण जिन्होंने एमसीडी चुनाव में ‘आप’ की दुर्गति कर दी !

राजनीति का चरित्र सुधारने का दावा करके सत्ता में आये हुए एक व्यक्ति को आज जनता के जनादेश ने यह संदेश दे दिया कि उसी का राजनैतिक चरित्र सवालों के घेरे में है। आखिर क्या कारण है कि जनता के बीच सिर्फ सेवा का दावा करके आये हुए व्यक्ति को आज वो सब कुछ चाहिए जो सेवा के लिए जरूरी नहीं है ? जो नीयत की शुद्धता की बात करते थे, आज उनकी नीयत पर खुद लोगों ने उंगली उठा दी। पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के  बाद एमसीडी चुनाव में मिली इस पराजय से ये बात भी साबित हो गई है कि ‘आप’ की राजनीतिक जमीन खिसक चुकी है।

एक बहुप्रचलित जुमला है कि वैसे होते तो 2 और 2 मिलाकर चार ही हैं पर सुनो…’मैं नहीं मानता’। इसलिए ख़ुद बदल जाने वालों से बदलाव की उम्मीद बेमानी है। लेकिन न मानने से चीजें बदलती नहीं हैं। कबूतर के आंख मूंद लेने से बिल्ली चली नहीं जाती है। ऐसी तमाम कहावते और मुहावरे एमसीडी दिल्ली चुनाव में हार के बाद आज केजरीवाल पर बिल्कुल फिट बैठते हैं। आज जबकि केजरीवाल सिर्फ 2 साल और कुछ महीने के अंतराल में ही अपनी प्यारी जनता का विश्वास खो चुके हैं। तब अगर वो सच्चाई को कुछ दिन और नहीं स्वीकारेंगे तो उनका क्या होगा, यह किसी से छिपा नहीं है। यह बात गले के नीचे उतारना मुश्किल है कि जिस नेता को लोगों ने कुछ दिन पहले ही 70 में से 67 सीटें दी थीं, वह इतनी जल्दी इतना नीचे कैसे आ सकता है। लेकिन यह सच है और इसे स्वीकार करना ही होगा। आपको बताते चलें कि केजरीवाल का ये हश्र एक दो दिन में नहीं हुआ उन्हें जनता के द्वारा बाकायदा 2  साल का मुकम्मल समय दिया गया था, जिसका सदुपयोग वो नहीं कर पाए।

साभार : गूगल

क्या कारण कि राजनीति का चरित्र सुधारने का दावा करके सत्ता में आये हुए एक व्यक्ति को आज जनता के जनादेश ने यह संदेश दे दिया कि उसी का राजनैतिक चरित्र सवालों के घेरे में है। आखिर क्या कारण है कि जनता के बीच सिर्फ सेवा का दावा करके आये हुए व्यक्ति को आज वो सब कुछ चाहिए जो सेवा के लिए जरूरी नहीं है ? जो नीयत की, शुद्धता की बात करते थे, आज उनकी नीयत पर खुद लोगों ने उंगली उठा दी। पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के  बाद एमसीडी चुनाव में मिली इस पराजय से ये बात भी साबित हो गई कि ‘आप’ की राजनीतिक जमीन खिसक चुकी है। उसके पीछे जो प्रमुख पाँच कारण हैं, वह निम्न हैं….  

1.सनसनीखेजवादी राजनीति

भारत में राजनीति का एक अच्छा खासा लोकतांत्रिक दायरा है। यह कोई क्रिकेट का मैच नहीं है कि आप टी -20 खेल रहे हैं। हां, आप चाहे तो पॉलिटिक्स भी टी-20 शैली में कर सकते हैं। हो सकता है , इसमें एक या दो बार जीत भी मिल जाए, लेकिन ये लांग टर्म पॉलिसी के रूप में काम नहीं कर सकती। दिल्ली में  जिस तरह की जीत ‘आप’ को मिली थी, वह फटाफट राजनीति का हिस्सा थी। लेकिन केजरीवाल और ‘आप’ के तमाम नेता उसे समझने में नाकाम रहे और  जिस फटाफट अंदाज में जीत हुई थी, उसी अंदाज में गोवा, पंजाब, राजौरी गार्डन और अब एमसीडी चुनाव में हार भी हुई, जो कि इसी फटाफट की राजनीति का जवाब भी है।

इसके बाद उन्होंने ईवीएम में खराबी का शिगूफा उछाल अपनी सनसनीखेजवादी राजनीति को धार देने की फिर एक कोशिश की, मगर अबतक जनता उन्हें जान चुकी थी, इसलिए उनका यह दाँव नाकाम साबित हुआ। एक बार अपने एक साक्षात्कार में बड़े गीतकार प्रसून जोशी ने कहा था कि “यदि आप अपनी बालकनी पर नंगे खड़े हो जाएं, तो हो सकता है कि आपको देखने वालों का जमावड़ा लग जाये, लेकिन यकीन मानिए आपके साथ कोई दीर्घकालिक रिश्ता बनाने से बचेगा।” वास्तविकता में आप सनसनी फैला कर प्रसिद्धि तो पा सकते हैं, पर उसे बनाये रखना एक बड़ी चुनौती है। केजरीवाल एंड कंपनी की शुरूआती कुछ जीतें इसी सनसनीखेजवादी राजनीति की देन थीं, लेकिन अब जनता इन्हें पहचान चुकी है। इनकी ताज़ा ईवीएम खराबी की नकारात्मक राजनीति को भी जनता ने एमसीडी चुनावों में करारा जवाब दिया है।

साभार : गूगल

2.राष्ट्रीय नेता बनने की जल्दी

आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पैठ बनाने के लिए देशभ्रमण पर ऐसे निकले जैसे इनके अलावा कोई और नेता इस देश को बचा ही नहीं सकता है। यह किसी भी दायित्व का पहला नियम होता है कि जो काम आपको दिया गया है, उसे आप जब बखूबी करते हैं, तब आपको उससे बड़ा काम सौंपा जाता है। लेकिन केजरीवाल तो पंजाब से लेकर गोवा तक और आगे गोवा से लेकर गुजरात तक ऐसी दौड़ मचाए जैसे देश उनको चुनने के लिए बेचैन बैठा है। देश की जनता के मिजाज को केजरीवाल एंड टीम समझ नहीं पाई और राष्ट्रीय नेता बनने की जल्दी में केजरीवाल गलत लाइन पर दौड़ पड़े। परिणामतः आज स्थिति पूरे देश के सामने है।

3. अंध मोदी विरोध का बेसुरा राग

केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनर्गल और निराधार बुराई करने को अपना शगल बना लिया।  मोदी को तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन जनता के मन मे एक टीस पैदा हो गई कि आखिर जो आदमी सकारात्मक राजनीति का दावा करके आया था, वो अब इस तरह की विरोधवादी राजनीति में कैसे डूब चुका है। इस अंध मोदी विरोध का बड़ा  कारण यह था कि केजरीवाल ने सोचा कि जिस प्रकार मैं कांग्रेस पर आरोप लगाकर वे यहाँ तक पहुँचने में कामयाब हुए, ठीक वैसे ही प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाकर राष्ट्रीय नेता भी बन जाऊँगा। लेकिन, वे शायद भूल गए कि कांग्रेस पर उनके आरोपों का आधार होता था, क्योंकि कांग्रेस में भ्रष्टाचार चरम पर था। मगर, प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार पर लगाए जाने वाले उनके आरोप पूरी तरह से निराधार होते थे। इसलिए जनता ने उनके इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।

साभार : गूगल

4. भ्रष्टाचार में आकंठ डूबती चली गई ‘आप’

भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष कर आम आदमी पार्टी बनी और फिर सत्ता में आई, लेकिन वह भी उसी में डूब गई। ‘आप’ सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और तरह-तरह के आरोप लगे। कोई ऐसा कानून मंत्री बना जिसके ऊपर अपनी ही बीबी को प्रताड़ित करने का आरोप है, तो कोई मंत्री फर्जी डिग्री पर घिरा है, तो कोई सेक्स सीडी में फंस गया और कोई अपनी बेटी को पद देने तो कोई हवाला कांड में फँसा। शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट में भी केजरीवाल सरकार में फैले भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को पोल खुलकर सामने आ गयी। जनता ने इनकी ईमानदार राजनीति का असल चेहरा एकबार फिर देख लिया।

5. बड़बोलापन

केजरीवाल की भाषा का स्तर बढ़ते हुए पद के साथ गिरता चला गया। जो व्यक्ति कभी शालीनता की दुहाई देता था, वह अचानक धमकी देने जैसी राजनीति पर उतर आया। न सिर्फ धमकी बल्कि उससे भी आगे बढ़कर दिल्ली के वोटरों को एक तरह से बददुआएँ तक दे डालीं कि “अगर आम आदमी पार्टी को नहीं जिताया तो अगले पांच साल तक कूड़ा और मच्छर में रहना पड़ेगा।” उन्होंने एमसीडी चुनाव के ठीक एक दिन पहले ये भी कहा कि “अगर किसी के बच्चों को या उनके घर के किसी को डेंगू या चिकनगुनिया होगा तो सरकार इसकी जिम्मेदार नहीं होगी।” वह तमाम गणमान्य पदों पर आसीन लोगों और संस्थाओं के लिए जिस तरह की भाषा इस्तेमाल करते हैं, वह कहीं से भी एक औसत पढ़े-लिखे आदमी से बदतर थी। जाहिर है, दिल्ली की जनता को एक मुख्यमंत्री की ये भाषा रास नहीं आई।

इन पांच कारणों के अलावा एक और बड़ा कारण है ‘केजरीवाल का अहंकार’।  वह अचानक एक राजा की तरह व्यवहार करने लगे थे। अपने आप को तानाशाह समझने लगे थे। लेकिन लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि जनता एक समय जिसे सिर माथे बिठाती है, तो दूसरे पल उसे जमीन पर होने का अहसास भी करा देती है। शायद जनता को भी यह बात गंवारा नहीं हुई और एक ही झटके में आप को जमीन पर ला दिया तथा केजरीवाल के अहंकार को चकनाचूर कर दिया।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)