कोरोना के प्रभाव से मुक्त होकर सुधर रहे सामाजिक-आर्थिक हालात

प्रधानमंत्री जनधन खाताधारकों को सरकार कई सुविधायें भी उपलब्ध भी करा रही है, जैसे नियमित रूप से खाते में लेनदेन करने वाले खाताधारकों को ओवरड्राफ्ट की सुविधा और बीमा की सुविधा दी जा रही है। यह भी देखा गया है कि आमजन के बीच बैंकिंग लेनदेन करने की प्रवृति बढ़ने से नकदी की चोरी के मामलों में भी कमी आ रही है। 

चौदह अक्तूबर के आंकड़ों के अनुसार प्रधान मंत्री जनधन योजना के तहत खोले गये खातों की संख्या 41.05 करोड़ पहुँच गई, जिनमें 1,30,741 करोड़ रूपये जमा थे। अप्रैल, 2020 से 14 अक्तूबर 2020 तक 3 करोड़ प्रधानमंत्री जनधन खाते खोले गये, जिससे इनमें 11,060 करोड़ रूपये की बढ़ोतरी हुई, जबकि वर्ष 2019 की समान अवधि में 1.9 करोड़ प्रधानमंत्री जनधन खाते खोले गये थे और इनमें 7,857 करोड़ रूपये की ही वृद्धि हुई थी।

इस तरह, अगर पिछले साल से तुलना की जाये तो इस साल नये प्रधानमंत्री जनधन खातों में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। विश्लेषण से पता चलता है कि नये प्रधानमंत्री जनधन खातों की संख्या में इजाफा का कारण कोरोना काल में लोगों का रुझान डिजिटल भुगतान की तरफ होना है। दरअसल, कोरोना वायरस की वजह से आमजन नकदी लेनदेन से परहेज कर रहे हैं। 

इधर, जिन महिलाओं का जनधन खाता है, उनके खातों में आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत सरकार अभी हर महीने 500 रूपये डाल रही है, जिसकी वजह से प्रधानमंत्री जनधन खाता के औसत अधिशेष में वृद्धि हुई है।  

आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 70 प्रतिशत प्रधानमंत्री जनधन खाताधारक अपने खातों में सकारात्मक अधिशेष रखते हैं। हालांकि, शुरुआती सालों में प्रधानमंत्री जनधन खाताधारकों की ऐसी प्रवृति नहीं थी, जो इस बात का संकेत है कि अब आमजन भी बैंक खाते का महत्व समझ रहे हैं।

सांकेतिक चित्र (साभार : The Economic Times)

प्रधानमंत्री जनधन खाताधारकों को सरकार कई सुविधायें भी उपलब्ध भी करा रही है, जैसे नियमित रूप से खाते में लेनदेन करने वाले खाताधारकों को ओवरड्राफ्ट की सुविधा और बीमा की सुविधा दी जा रही है। यह भी देखा गया है कि आमजन के बीच बैंकिंग लेनदेन करने की प्रवृति बढ़ने से नकदी की चोरी के मामलों में भी कमी आ रही है।  

भारत में अभी भी पलायन की प्रवृति कुछ मौसमी और कुछ स्थायी है, जिसका कारण राज्यों का असंतुलित विकास होना या फिर राज्यों का औद्योगिकीकरण के दृष्टिकोण से सशक्त नहीं होना है। अमूमन, विकास नहीं होने, उद्योग-धंधों का विकास नहीं होने की वजह से जब गरीब और गैर गरीब दोनों रोजगार हासिल करने के लिए विकसित राज्यों की ओर पलायन करते हैं।

हालांकि, इस साल कोरोना महामारी की वजह से मजदूरों एवं कामगारों को अप्रैल एवं मई-जून में अपने गाँव-घर लौटने पर मजबूर होना। मसलन, बिहार, उत्तर प्रदेश, दक्षिणी मध्य प्रदेश, ओडिसा, राजस्थान आदि राज्यों के रहवासी पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों की ओर पलायन करते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में भी रोजगार के अनेक अवसर मौजूद होने की वजह से गरीब या कम विकसित राज्यों के लोग दिल्ली पलायन करते हैं। 

आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल महीने में तालाबंदी की वजह से मजदूरों या कामगारों द्वारा किया जाने वाला रेमिटेंस रुक गया था, लेकिन जून और जुलाई महीने में धीरे-धीरे इसमें बेहतरी आई। हालांकि, अगस्त महीने में इसमें पुनः कमी आई, जिसका कारण देशभर में भारी बारिश का होना और अनेक राज्यों का बाढ़ से प्रभावित होना था।

पुनश्च: सितंबर महीने में रेमिटेंस का आंकड़ा कोरोना काल से पहले के महीने फरवरी के स्तर पर पहुँच गया। इस आंकड़े से यह पता चलता है कि अधिकांश मजदूर और कामगार अपने काम पर लौट गये हैं और बचे हुए मजदूर एवं कामगार दीवाली और छठ के बाद अपने काम पर लौट सकते हैं।   

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2020 में 110.4 लाख नए कामगार भविष्य निधि से जुड़े। इस वर्ष अप्रैल से अगस्त महीने में 25 लाख नए सदस्य भविष्य निधि से जुड़े, जिनमें से 12.4 लाख सदस्य पहली बार भविष्य निधि संगठन से जुड़े थे। इस वजह से भी रेमिटेंस की राशि में इजाफा देखा जा रहा है। कुल मिलाकर इन आंकड़ों का सारांश यह है कि कोरोना महामारी के बाद अब देश के सामाजिक-आर्थिक हालात फिर से सुधरने लगे हैं और जल्दी-ही चीजें पूरी तरह सामान्य होने की उम्मीद की जा सकती है।   

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)