कई अर्थों में ऐतिहासिक साबित हुई नौ नवम्बर की तारीख

वास्‍तव में देखा जाए तो अयोध्‍या का फैसला देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र की नई मिसाल बनकर उभरा है। जिस मसले को अभी तक देश में अराजकता का पर्याय माना जाता था, उसी के गर्भ से कौमी एकता और अमन की बातें सामने आएंगी, यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा। निश्चित ही देश में इस निर्णय के बाद से एक नई सुबह का आगाज हुआ है और यह सुबह सकारात्‍मकता की है, सद्भाव की है, समरसता की है।

देश के बहुचर्चित रामजन्‍मभूमि  मामले में सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आ चुका है। यह निर्णय वास्‍तव में राष्‍ट्र के हित में आया है, राष्‍ट्र की एकता व अखंडता, सामाजिक सौहार्द्र के पक्ष में आया है। कानूनी निष्‍कर्ष की बात करें तो विवादित भूमि रामलला को दिए जाने और मस्जिद के लिए मुस्लिम पक्षकार सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड को पृथक से निर्माण के लिए 5 एकड़ भूमि दिए जाने का आदेश है।

इसका पालन व क्रियान्‍वयन केंद्र एवं उत्‍तर प्रदेश की राज्‍य सरकार को करना है। इस फैसले के आने से पहले पूरे देश में, चप्‍पे चप्‍पे पर कड़ी सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे और यह हर्ष का विषय है कि कहीं से भी अप्रिय समाचार प्राप्‍त नहीं हुआ। कहीं शांति भंग नहीं हुई और झड़प, हिंसा, हंगामे, बवाल की कोई घटनाएं नहीं हुई।

निर्णय आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके सबसे शांति बनाए रखने की अपील की और देर शाम को टीवी पर राष्‍ट्र के नाम संबोधन दिया और उसमें मुख्‍य तौर पर यही बात कही कि इसे किसी भी तरह की जीत या हार से जोड़कर ना देखा जाए। यह समय राम भक्ति या रहीम भक्ति से बढ़कर भारत की भक्ति का है।

मोदी ने अपने भाषण में एक बात पर जोर दिया कि आज की तारीख 9 नवंबर हमेशा के लिए याद रखी जाएगी क्‍योंकि इस दिन देश ने विविधता में एकता के फिर से दर्शन किए। उन्‍होंने बर्लिन की दीवार गिरने के प्रसंग का उल्‍लेख करते हुए कहा कि आज के ही दिन वह दीवार गिरी थी और देश में आज के ही दिन करतारपुर कॉरीडोर खुला है तथा अयोध्‍या पर फैसला आया है।

इससे पहले दिन में जिस समय कोर्ट के फैसले पर देश प्रतिक्रियाएं दे रहा था, उसी समय मोदी करतारपुर कॉरीडोर का उद्घाटन कर रहे थे। दूसरे छोर पर, पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी इसका उद्घाटन किया।

असल में 9 नवंबर का दिन सामाजिक सौहार्द्र के रूप में सदा याद रखा ही जाएगा क्योंकि इस दिन रामजन्मभूमि मामले से लेकर करतारपुर कॉरिडोर तक प्रेम और सद्भाव का सन्देश ही दिखाई दिया। देश तो ठीक है, पाकिस्‍तान जैसे बदमाश पड़ोसी ने भी इस दिन कॉरीडोर के बहाने एक गरिमा, एक अस्मिता तो कम से कम बनाए ही रखी।

इतना ही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मोदी से गर्मजोशी से मिले एवं कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लिया। ऐसा लग रहा था मानो गुरु नानकदेव के प्रकाश पर्व की पूर्व संध्‍या पर संत भाव से, मैत्री भाव से समागम हो रहा है। करतारपुर कॉरीडोर वैसे भी दो देशों को जोड़ने का ही काम करेगा। जोड़ने और जुड़ने की बात प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने भाषण में मुख्‍य रूप से कही।

करतारपुर कॉरिडोर की शुरुआत करते प्रधानमंत्री मोदी

उन्‍होंने कहा कि, अयोध्‍या मामले का असर भले ही पीढि़यों पर पड़ा हो लेकिन अब सारी बातें भूलकर हमें नए भारत के निर्माण के लिए जुट जाना चाहिये। नए भारत में नकारात्‍मकता, वैमनस्‍य के लिए कोई स्‍थान नहीं है।

सबसे गौरतलब बात यह रही कि पूरी न्‍यायिक प्रक्रिया के बाद जब फैसला आया तो पता चला सुन्‍नी सेंट्रल वक्‍फ बोर्ड भले ही अपना पक्ष साबित नहीं कर पाया लेकिन उन्‍हें इसका मलाल नहीं है। वे फैसले से पूरी तरह संतुष्‍ट हैं एवं इसे चुनौती भी नहीं देना चाहते।

बोर्ड के अध्‍यक्ष जफर अहमद फारूकी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्‍वागत करते हुए कहा कि वे इसे चुनौती नहीं देंगे। यदि बाद में कोई व्‍यक्ति या अभिभाषक इसे चैलेंज करने की बात करता है तो उसे वैधानिक नहीं माना जाएगा।

वक्‍फ बोर्ड के अलावा भी अनेक मुस्लिम संगठनों, धर्मगुरुओं व नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सिरे से स्‍वागत किया और सबने विवाद को हमेशा के लिए अब समाप्‍त माना। शिया धर्मगुरु मौलाना कल्‍बे जवाद ने कहा कि भले ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड रिवीजन पिटीशन फाइल करे लेकिन मसले को अब खत्‍म ही होना चाहिये। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्‍मान ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने भी किया।

हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने कहा कि उनकी कानून समिति इस फैसले की समीक्षा करेगी। अनेक मुस्लिम संगठनों की एक प्रमुख संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशवरत के अध्यक्ष नावैद हामिद ने शांति और सद्भाव की अपील की है। 

वास्‍तव में देखा जाए तो अयोध्‍या का फैसला देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र की नई मिसाल बनकर उभरा है। जिस मसले को अभी तक देश में अराजकता का पर्याय माना जाता था, उसी के गर्भ से कौमी एकता और अमन की बातें सामने आएंगी, यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा। निश्चित ही देश में इस निर्णय के बाद से एक नई सुबह का आगाज हुआ है और यह सुबह सकारात्‍मकता की है, सद्भाव की है, समरसता की है।

9 नवंबर का दिन भारतीय इतिहास में एक अविस्‍मरणीय दिन के रूप में दर्ज हो चुका है। निश्चित ही इस मामले में भारत की अनेकता में एकता और विविधता की सांस्‍कृतिक विरासत का एक उदाहरण में हमारे सामने आया है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)