मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों को वैश्विक स्वीकार्यता

मूडीज ने भारत सरकार के तमाम आर्थिक सुधारों की दिशा में बढ़ते क़दमों की ओर इंगित करते हुए यह माना है कि आने वाले दिनों में इन सब आर्थिक नीतियों का भारत की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। ज्ञात हो कि अभी कुछ रोज़ पहले विश्व बैंक की ‘इज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस’ की लिस्ट में भी भारत ने तीस अंको की लंबी छलांग लगाई है। इस तरह भारत की आर्थिक स्थिति के चिन्तन में दुबले हो रहे अर्थशास्त्रियों और विपक्षी नेताओं को यह चिंता छोड़ मूडीज और विश्व बैंक द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों को ध्यानपूर्वक देखना चाहिए। तथ्य यही है कि आज भारत की अर्थव्यवस्था मज़बूती के साथ बढ़ रही है, जिसकी सराहना एक के बाद एक वैश्विक संस्थान कर रहे हैं।

पिछला सप्ताह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के लिए काफी बेहतर रहा। एक तरफ़ सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को लेकर आया प्यू का सर्वेक्षण जहाँ मोदी और बीजेपी को आश्वस्त करता है, वहीं नोटबंदी और जीएसटी के बेज़ा विरोध में जुटे विपक्ष को अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की क्रेडिट रेटिंग को बढ़ाकर करारा झटका दिया है।

स्रोत : प्यू सर्वे

गौरतलब है कि अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा करवाए गये सर्वे में पाया गया कि सत्ता में आने के तीन साल बाद भी नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है। इस सर्वे में 24,464 लोगों को शामिल किया गया, जिसके आकलन के उपरांत यह बात निकल कर सामने आई कि 88 प्रतिशत लोगों की आज भी पहली पसंद नरेंद्र मोदी हैं। यह सर्वेक्षण फ़रवरी और मार्च के बीच किया गया। इस सर्वे में स्पष्ट है कि जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार घोषित हुए तबसे अभी तक सत्ता में आये साढ़े तीन साल होने को हैं, किन्तु प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में कमी देखने को नहीं मिली है।

बहरहाल, इसी बीच क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की रेटिंग को बढाते हुए बीएए-3 से बीएए-2 श्रेणी वाले देशों में शामिल कर दिया है। निश्चित रूप से यह केंद्र सरकार के लिए बड़ी उपलब्धी है। रेटिंग में सुधार ऐसे वक्त में आया है, जब विपक्ष से लगाए तमाम अर्थशास्त्रियों ने मोदी सरकार की अर्थनीतियों के खिलाफ़ मोर्चा खोल रखा है। हिमाचल प्रदेश में अभी सम्पन्न हुए चुनाव की बात हो अथवा गुजरात में चल रहे विधानसभा चुनाव की बात, विपक्ष जीएसटी और नोटबंदी पर सरकार को घेरने की असफल कोशिश में लगा हुआ है। परन्तु, विरोधी दल अगर ये सोचते हैं कि नोटबंदी व सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करके जनता को लुभाया जा सकता है, तो उन्हें इस मुगालते से बाहर आना होगा। यदि ऐसा संभव होता तो नोटबंदी के बाद हुए उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत कतई नहीं प्राप्त होता।

बहरहाल, यहाँ यह जानना जरूरी है कि आखिर किस कारण से मूडीज द्वारा भारत को  बीएए-2  श्रेणी में रखा गया है और इसके क्या लाभ देश को होने वाले हैं ? दरअसल, बीएए-2 में उन देशों को शामिल किया जाता है, जो देश आर्थिक तौर पर मजबूती के साथ आगे बढ़ रहे होते हैं तथा जिस देश में निवेश के लिए जटिलतापूर्ण स्थिति न हो, बीएए -2 को सकारात्मक श्रेणी माना जाता है। इस श्रेणी में निवेशकों के निवेश को सुरक्षित माना जाता है, वहीं बीएए-3 श्रेणी में उन देशों को रखा जाता है, जिन देशों की अर्थव्यवस्था गतिमान नहीं होती अर्थात इसे निवेश का सबसे निचला पायदान माना जाता है।

मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों पर मूडीज की मुहर (सांकेतिक चित्र)

गौरतलब है कि जिस जीएसटी के विरोध में विपक्षी दल यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि जीएसटी के लागू होने से देश की आर्थिक हालत चरमरा गई है, वहीं भारत की रेटिंग सुधारने के लिए मूडीज ने जो कारण बताए हैं, उसमें जीएसटी को सबसे प्रमुख बताया है। मूडीज के अनुसार जीएसटी के आने से माल का आवागमन सुगम हो जायेगा, जिससे व्यापार आसान हो जायेगा, अन्तर्राज्यीय व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, आधार कार्ड, नोटबंदी, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी), एनपीए की दिशा में सरकार की गंभीरता तथा बैंको को आर्थिक तौर पर मज़बूत करने के लिए दी गई पूंजी जैसे निर्णयों को भी मूडीज ने रेटिंग सुधार के लिए प्रमुख माना है। जाहिर है, मूडीज ने भारत में आर्थिक सुधारों व संस्थानिक सुधारों की दिशा में बन रहीं नीतियों तथा उनके क्रियान्वयन का गहरा अध्ययन किया होगा, उसके उपरांत ही भारत की रेटिंग स्थिति में सुधार की बात निकल कर सामने आई है।

यह भी एक तथ्य है कि यूपीए सरकार ने 2004 में जब सत्ता संभाली उसके बाद भारत की रेटिंग बीएए-2 से गिरकर बीएए-3 पर पहुँच गई। एक दशक तक सत्ता में रहने वाले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ने भी गिरी हुई रेटिंग को हासिल करने की दिशा में कोई ठोस प्रयास किया होगा, ऐसा प्रतीत नहीं होता अन्यथा इस रेटिंग को उस दौरान ही पुनः हासिल कर लिया गया होता। खैर, तबसे लगभग तेरह वर्ष के वनवास के बाद आज भारत पुनः उन देशों की कतार में खड़ा हो गया जहाँ निवेश करना आसान होगा तथा अपनी सुदृढ़ आर्थिक स्थिति तथा अर्थव्यवस्था में स्थिरता के कारण निवेशकों को अपनी तरफ आकृष्ट कर सकेगा।

यह बात सर्वविदित है कि अगर किसी भी देश की आर्थिक नीतियों को एक प्रतिष्ठित वैश्विक संस्था द्वारा सराहा जाता है, तो उस देश की तरफ विश्व समुदाय उम्मीदों के साथ अपार संभावनाओं की दृष्टि से देखता है। इससे देश की साख तो मजबूत होती ही है साथ में अधिक निवेश की संभावनाएं भी प्रबल होती हैं। मूडीज ने यह बात भी  कही है कि जीएसटी और नोटबंदी के कारण जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन यह अल्पकालिक है, इन निर्णयों के सकारात्मक परिणाम दीर्घकालिक होंगे।

अगर हम मूडीज द्वारा दी गयीं किन्ही दो वजहों की पड़ताल करें जिसके कारण भारत की रैंकिंग सुधरी है, तो वस्तुस्थिति का पता चल सकेगा। इसमें सबसे पहले अगर हम डीबीटी यानी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की बात करें तो इस दिशा में सरकार ने अभूतपूर्व परिणाम हासिल किये हैं। आम जनता का पैसा सीधे तौर पर आम जनता के खाते में जाए, इसके लिए सरकार ने इसकी शुरूआत की, जिसमें रसोई गैस सब्सिडी, यूरिया सब्सिडी, सरकार द्वारा मिलने वाला मुआवजा सहित कई योजनाओं का सीधा लाभ लाभार्थी तक पहुंचाया जा रहा है। सरकार द्वारा सरकारी बैंको को मजबूत बनाने के लिए दो लाख ग्यारह हज़ार करोड़ रूपये की मदद की गयी है, जिससे बैंको की आर्थिक स्थिति में बड़ा सुधार होने की संभावना  है साथ ही इसने एनपीए के बोझ तले दबे बैंको को राहत देने का काम किया है।

मूडीज ने इस तरह भारत सरकार के तमाम आर्थिक सुधारों की दिशा में बढ़ते क़दमों की ओर इंगित करते हुए यह माना है कि आने वाले दिनों में इन सब आर्थिक नीतियों का भारत की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। ज्ञात हो कि अभी कुछ रोज़ पहले विश्व बैंक की ‘इज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस’ की लिस्ट में भी भारत ने तीस अंको की लंबी छलांग लगाई है। इस तरह भारत की आर्थिक स्थिति के चिन्तन में दुबले हो रहे अर्थशास्त्रियों और विपक्षी नेताओं को यह चिंता छोड़ मूडीज और विश्व बैंक द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों को ध्यानपूर्वक देखना चाहिए। तथ्य यही है कि आज भारत की अर्थव्यवस्था मज़बूती के साथ बढ़ रही है, जिसकी सराहना एक के बाद एक वैश्विक संस्थान कर रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)