बाबा साहब की उपेक्षा करने वाली कांग्रेस रामनाथ कोविंद को भला कैसे स्वीकार कर सकती है !

भारतीय संसद में एक परंपरा है, सदन के सदस्यों और महापुरूषों का तैल चित्र लगाने की। इस फेहरिस्त में देश दुनिया की तमाम बड़ी हस्तियों का चित्र लगाया गया था, लेकिन बाबा साहब को लगातार उपेक्षित किया गया। बाबा साहब की तस्वीर तब लगी जब भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से वीपी सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस का दूसरा कुकर्म था, देश के सर्वोच्च सम्मान अथवा भारत रत्न देने में बाबा साहब की अनदेखी करना। बाद में भारतीय जनता पार्टी समर्थित वीपी सिंह सरकार के कार्यकाल में बाबा साहब को भारत रत्न दिया गया।

कल यानी सोमवार 19 जून को जब भारत के अगले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए राजग की ओर से बिहार के मौजूदा राज्यपाल रामनाथ कोविंद जी को उम्मीदवार घोषित किया गया, तब से विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस और वामपंथी दल सन्नाटे में आ गए हैं। दरअसल यह रामनाथ कोविंद अथवा भाजपा-संघ का विरोध नहीं है, यह एक सामंतवादी मानसिकता है जो समय-समय पर उभर कर सामने आती है, उसका स्वरूप अलग होता है, लेकिन सोच एक ही होती है। आजादी के वक्त से लेकर वर्तमान समय तक कांग्रेस और वामियों द्वारा दलितों को किसी ना किसी प्रकार से उपेक्षित किया जाता रहा है। कांग्रेस और वामदल के अंदर ना तो कोई मजबूत दलित नेतृत्व उभरने दिया गया और ना ही जो स्वयं से उभरा, उसको आगे बढ़ने दिया गया।

दलितों के प्रति कांग्रेस की दृष्टि का परिचय हमें मिलता है पहले आम चुनाव के समय, जब बाबा साहब भीमराव अंबेडकर उत्तरी मुंबई की सीट से अनुसुचित जाति संघ अर्थात एससीएफ के उम्मीदवार थे; लेकिन नेहरू के प्रबल विरोध और राजननीतिक सक्रियता के कारण बाबा साहब को पराजय का मुंह देखना पड़ा। उस समय कांग्रेस पर चुनाव में धनबल और जनबल के गलत प्रयोग का भी आरोप लगा था। दूसरी घटना भी बाबा साहब से ही जुड़ी हुई है।

महाराष्ट्र के भंडारा सीट पर 1954 में उप चुनाव हो रहा था और बाबा साहब एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाने के लिए मैदान में थे, लेकिन इस बार भी नियति ने उनका साथ नहीं दिया। या यूं कहें कि पूरी कांग्रेस भंडारा में अपना पड़ाव डाल ली थी बाबा साहब को हराने के लिए, इस चुनाव में खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा तुफानी चुनावी दौरा किया गया। यही नहीं, कांग्रेसियों द्वारा इस चुनाव में भ्रामक तथ्यों का सहारा लिया गया तथा बाबा साहब को देशद्रोही तक बताया गया, परिणाम यह हुआ कि बाबा साहब उस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे।

अगर हम दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस तथ्य का विश्लेषण करेंगे तो इन सब के केन्द्र में एक घृणित मानसिकता ही दिखेगी जहां सबको अपने सामने झुंकाने की कुत्सित मानसिकता काम करती है। यही पूर्वाग्रह नेहरू के मन में भी था, बाबा साहब के प्रति। या यूं कह सकते हैं कि पूरी कांग्रेस की यही मानसिकता थी दलितों के प्रति।

यह कांग्रेस का मूल चरित्र है, जो देश की जनता से छुपाया गया। उक्त दो आम चुनाव के पहले भी नेहरू का अंबेडकर के प्रति पूर्वाग्रह उभरकर सामने आया था। 1942 में बाबा साहब बंबई प्रेसीडेंसी से राज्य सभा के लिए निर्दल सदस्य के रूप में नामित होना चाहते थे, लेकिन यहां भी नेहरू ने अपनी नकारात्मक भूमिका निभायी और बाबा साहब राज्य सभा जाने से रह गए। उक्त घटना से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अत्यंत व्यथित हुए और उन्होने ने प्रण किया कि बाबा साहब के मेधा और दृष्टिकोण का लाभ देश को मिलना चाहिए।

तब बंगाल की राजनीति में डॉ. मुखर्जी एक अलग मुकाम हासिल कर चुके थे, उन्होने बंगाल के साशक्त नेता प्रफुल्लचंन्द्र घोष से डॉ. अंबेडकर को राज्य सभा में मनोनयन करने के लिए सहयोग मांगा। तब कुछ ही दिनों पहले श्री मंडल मनोनित होकर राज्य सभा गए थे, उनसे स्वेच्छा से त्याग-पत्र दिलवा कर बाबा साहब को राज्य सभा में भेजा गया। अगर नेहरू की चली होती तो बाबा साहब कभी संसद में नहीं जा पाते। यह पूर्वाग्रह की भावना नेहरू के उत्तरवर्ती नेताओं में भी रही।

भारतीय संसद में एक परंपरा है, सदन के सदस्यों और महापुरूषों का तैल चित्र लगाने की। इस फेहरिस्त में देश दुनिया की तमाम बड़ी हस्तियों का चित्र लगाया गया था, लेकिन बाबा साहब को लगातार उपेक्षित किया गया। बाबा साहब की तस्वीर तब लगी जब भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से वीपी सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस का दूसरा कुकर्म था, देश के सर्वोच्च सम्मान अथवा भारत रत्न देने में बाबा साहब की अनदेखी करना। बाद में भारतीय जनता पार्टी समर्थित वीपी सिंह सरकार के कार्यकाल में बाबा साहब को भारत रत्न दिया गया।

ये सारी बातें यही दिखाती हैं कि कांग्रेस ने अपने अंदर दलित नेतृत्व को उभरने का कभी कोई बड़ा अवसर नहीं दिया दलितों के प्रति ये बातें कांग्रेस की सोच को उद्घाटित करने के लिए पर्याप्त हैं यह सोच भी एक कारण है कि आज जब भाजपा नीत राजग ने राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद जैसे हर प्रकार से सुयोग्य दलित चेहरे को अपना उम्मीदवार बनाया है, तो कांग्रेस इसका समर्थन नहीं कर पा रही

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं।)