99 प्रतिशत नोटों के वापस आ जाने से नोटबंदी विफल कैसे हो गयी?

रिजर्व बैंक द्वारा 99% बंद मुद्राओं के वापिस आने के संबंध में रिपोर्ट जारी करने के बाद सरकार की आँख मूंदकर आलोचना की जा रही है, लेकिन नोटबंदी से जो फ़ायदे हुए हैं, उनका जिक्र नहीं किया जा रहा। अधिकांश मुद्राओं के वापस आ जाने भर से नोटबंदी जैसे व्यापक प्रभावों वाले कदम की विफलता कैसे तय की जा सकती है। नकली नोटों में कमी, कर संग्रह में वृद्धि आदि नोटबंदी के अनेक लाभ हुए हैं। 

भारतीय रिजर्व बैंक ने 29 जुलाई को 1 जुलाई, 2017 से 30 जून, 2018 की अवधि की अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक बड़े मूल्य वर्ग की मुद्रा, जिसमें 500 और 2000 रूपये के नोट शामिल हैं का कुल मुद्रा संरचना में 80.6% हिस्सा है। विमुद्रीकरण के पहले बड़े मूल्य वर्ग की मुद्रा, जिसमें 500 और 1000 रूपये के नोट शामिल थे का कुल मुद्रा संरचना में 86.4% हिस्सा था। इस प्रकार, छोटे मूल्य वर्ग के नोटों की हिस्सेदारी कुल मुद्रा संरचना में 5.8% बढ़ी, जो राशि में 1 लाख करोड़ रुपये है।  

रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2018 में 500 रूपये के नोट की आपूर्ति को बढ़ा दिया था। विमुद्रीकरण के पहले 500 रूपये नोट का हिस्सा कम होकर कुल मुद्रा संरचना का 22.5% हो गया था, जो विमुद्रीकरण के बाद लगभग दोगुना होकर मार्च, 2018 में 42.9% हो गया, जिससे आम आदमी को नकदी लेनदेन में आसानी हुई। इधर, 2000 रूपये के नोट, जिसकी मार्च, 2017 में उपलब्धता 50.2% थी, जो मार्च, 2018 में घटकर 37.3% रह गई। अभी 200 रूपये मूल्यवर्ग के नोटों की संख्या 1.8 अरब संख्या के साथ निचले स्तर पर बनी हुई है।

नकली नोटों की संख्या में कमी

विमुद्रीकरण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य नकली नोटों के प्रसार को कम या समाप्त करना था। इसकी संख्या मार्च, 2017 में 7.62 लाख थी, जो विमुद्रीकरण के बाद 31.4% कम होकर मार्च, 2018 में 5.23 लाख रह गई। कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण का सबसे बड़ा फायदा नकली नोटों की संख्या का कम होना है, जो स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है। उपलब्ध आंकड़ों से साफ पता चलता है कि नोटबंदी के कारण नकली नोटों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।

कर राजस्व में बढ़ोतरी

विमुद्रीकरण के कारण आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में अभूतपूर्व इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 2018 में 2.24 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया था, जो जुलाई, 2018 में बढ़कर 3.43 करोड़ हो गया। प्रतिशत में यह बढ़ोतरी 53 है।

वित्त वर्ष 2018 के मुक़ाबले आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में 30% की वृद्धि मानने पर अनुमानत: 2 करोड़ नये लोग  चालू वित्त वर्ष में आयकर रिटर्न दाखिल करेंगे, जिसमें 75% शून्य कर राशि का रिटर्न दाखिल करेंगे, जबकि 25% लोग कम से कम हर महीने 5000 रूपये कर का भुगतान करेंगे। इससे सरकार को लगभग 300 अरब रुपये अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होगी। यह आकलन न्यूनतम कर राशि की प्राप्ति पर आधारित है। लिहाजा, सरकार को कम से कम इतनी राशि अतिरिक्त राजस्व के तौर पर जरूर मिलेगी।  

रिजर्व बैंक द्वारा 99% मुद्राओं के वापिस आने के संबंध में रिपोर्ट जारी करने के बाद सरकार की आँख मूंदकर आलोचना की जा रही है, लेकिन नोटबंदी से जो फ़ायदे हुए हैं, उनका जिक्र नहीं किया जा रहा। अधिकांश मुद्राओं का वापस आ जाना नोटबंदी जैसे व्यापक प्रभावों वाले कदम की विफलता कैसे हो सकता है। डर की वजह से ही सही, लेकिन आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में वित्त वर्ष 2018 से जुलाई, 2018 की अवधि के दौरान 1.19 करोड़ लोगों की बढ़ोतरी हुई है।

गौरतलब है कि नये लोगों द्वारा आयकर रिटर्न दाखिल करने की प्रवृति में अभी भी बढ़ोतरी हो रही  है। नोटबंदी के दौरान नकदी की किल्लत होने की वजह से डिजिटलीकरण में भी इजाफा हुआ। अब डिजिटल माध्यम से लेनदेन करना लोगों की आदत बन गई है। भले ही लगभग शत-प्रतिशत नकदी प्रणाली में वापस आ गई, लेकिन इस आधार पर न तो नोटबंदी को विफल कहा जा सकता है और न ही इससे जो फ़ायदे हुए हैं, उनको नकारा ही जा सकता है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)